दिसंबर 12, 2011

कुन फाया कुन


आज एक बहुत ही प्यारा गीत फिल्म 'रॉक स्टार' से जिसे 'इरशाद कामिल' ने लिखा है  'जावेद अली' ने गाया है और 'रहमान' ने इसमें अपने संगीत से जादू भर दिया है.......रूह को सुकून देने वाला ये रूहानी सूफी गीत मुझे बहुत पसंद आया.......दिल हुआ आपसे बाँटने का | ये आज पहली बार है जब मैंने किसी फिल्म के गीत को चुना है पर मैं रोक नहीं पाया खुद को क्योंकि मुझे ये बहुत पसंद आया.......सलाम है इसके बनने में जुड़ने वाले सभी लोगों को|

'कुन फाया कुन' कुरान शरीफ की एक आयत 'यासीन शरीफ' से लिया गया है जिसका मतलब है जब दुनिया में कुछ नहीं था तो खुदा ने दुनिया से कहा हो जा और वो हो गयी यानि जब कुछ नहीं था तब भी खुदा था और जब कुछ नहीं होगा तब भी खुदा होगा........या मौला हमे नेकी की राह पर चलने की तौफिक दे.......आमीन|
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कदम बढ़ा ले हदों को मिटा ले
आजा खाली पल में पी (पिया) का घर तेरा
तेरे बिन खाली  आ जा खालीपन में

कुन फाया कुन फाया कुन

जब कहीं पे भी नहीं था
वही था, वही था

वो जो मुझमें समाया 
वो जो तुझमें समाया
मौला वही-वही माया

रंगरेज़ा रंग मेरा तन मेरा मन
ले ले रंगाई चाहे तन चाहे मन

सजरा सवेरा मेरे तन बरसे
कजरा अँधेरा तेरी जलती लौ
कतरा मिला जो तेरे दर बरसे

मुझपे करम सरकार तेरा अरज तुझे 
कर दे मुझे मुझसे ही रिहा
अब मुझको भी हो दीदार मेरा
कर दे मुझे मुझसे ही रिहा


मन के मेरे ये भरम 
कच्चे मेरे ये करम
लेके चले हैं कहाँ 
मैं तो जानूँ ही ना

तू है मुझमें समाया 
कहाँ लेके मुझे आया
मैं हूँ तुझमें समाया 
तेरे पीछे चला आया

तेरा ही मैं एक साया 
तूने मुझको बनाया 
मैं तो जग को न भाया 
तूने गले से लगाया

हक तू ही है खुदाया
सच तू ही है खुदाया
कुन फाया कुन फाया कुन

दिसंबर 05, 2011

आत्मदाह


प्रिय ब्लॉगर साथियों,

आज की पोस्ट एक सत्य घटना पर आधारित है, जो मेरे आस पास के समाज में घटित हुई थी अभी कुछ दिन पहले की ही बात है एक किशोरी ने खुद को जलाकर आत्महत्या कर ली | मैं उसे उसके बचपन से जानता था.......पहले तो काफी वक़्त मैं यकीन ही नहीं कर पाया| पर सच को स्वीकार करना ही पड़ता है .......खैर आपसे बांटना चाहता था पर समझ नहीं आता था कि इसको शब्द कैसे दूँ..... पहले सोचा कि गद्य रूप में लिखूँ पर बाद में लगा शायद इस रूप में ज्यादा बेहतर हो.......आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी कि मैं  अपने प्रयास में कहाँ तक सफल रहा ?.......कोई सुझाव हो या कोई गलती लगे तो निसंकोच कहें|  
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क्या उम्र रही होगी उस किशोरी की
शायद यही कोई सोलह या सत्रह बरस
अभी तो जिंदगी की दहलीज़ पर  
जैसे उसके क़दम बस पड़े ही थे,

ज़ेहन में ये सवाल बार-बार उठता है
की आखिर क्यूँ ? उसने इतना बड़ा फैसला किया
आखिर क्या वजह रही होगी इसकी?
जो उसने 'आत्मदाह' जैसा क़दम उठा लिया,

अभी कल ही की तो बात लगती है
कितने बरस हुए होंगे?
यही कोई शायद पाँच या छः बरस 
जब पहली बार मैंने उसे देखा था,

बात-बेबात पर हँसने वाली 
अपनी बहन की चोटी खींचने वाली
छोटे भाइयों से लड़ने वाली
मासूम सी एक बच्ची ही तो थी वो,

आखिर क्या वजह थी 'आत्मदाह' की
शायद घर में होती हर वक़्त की कलह
रोज़ पीकर आता शराबी बाप
या बात-बात पर ताने मारती माँ,

अन्दर ही अन्दर घुटती उसकी आकांक्षाये 
या सिर्फ देहरी पर खड़े हो जाने से
अपने हमउम्र किसी से हँस-बोल लेने से
चरित्र पर ऊँगली उठाता ये तथाकथित समाज,

कितना अकेला पाया होगा उसने खुद को
अपने ही परिवार में कोई साथी नहीं
जबसे बहन की शादी हुई, कोई भी तो नहीं
जिससे वो अपने मन की व्यथा कह पाती

आज भी न जाने क्यूँ यकीन नहीं आता
की आखिर उसने 'आत्मदाह' क्यूँ किया?
जब कभी सोचता हूँ उसके बारे में
तो एक हँसता मुस्कुराता चेहरा 
आँखों के आगे घूम जाता है,

कितना वीभत्स हो गया था वही चेहरा
ऐसा कि दृश्य भी सर झुका ले
दफ़न के वक़्त आखिरी बार देखने कि रस्म
पर लोगों में  हिम्मत नहीं थी शायद देखने की,

पर सुना है उसके जाने के बाद 
अब उसके बाप ने शराब छोड़ दी है,
और सुधर गयी अब माँ भी 
ढूँढ रहा है समाज अब नया शिकार,

वो 'आत्मदाह' था या 'बलि'
यही सवाल गूँज उठता है 
आखिर कौन था दोषी ?
उसके 'आत्मदाह' के पीछे 

क्या उम्र रही होगी उस किशोरी की
शायद यही कोई सोलह या सत्रह बरस
अभी तो जिंदगी की दहलीज़ पर  
जैसे उसके क़दम बस पड़े ही थे,