tag:blogger.com,1999:blog-24630268262456520942024-03-13T01:52:09.954-07:00जज़्बात...दिल से दिल तकएक दरिया है ये जज़्बातों का जिसमे लफ़्ज़ों की किश्तियाँ तैरती हैं........... जज़्बात मेरे.....तुम्हारे और हम सबके......एक ज़रिया जिससे जज़्बातों का ये सैलाब एक दिल से दूसरे दिल की दहलीज़ तक पहुँच जाए......लफ़्ज़ों की किश्ती पर सवार ......आओ डूब जाएँ जज़्बात के इस दरिया में.......इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.comBlogger75125tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-47056415158889496012016-09-29T03:37:00.000-07:002016-09-29T03:37:11.420-07:00ज़िल्लत
खर्च करते हैं जो अपना माल ख़ुदा की राह में
उनको ज़िन्दगी में कभी किल्लत नहीं होती,
और करते हैं जो अपने बुज़ुर्गों की इज़्ज़त
इस जहाँ में कभी उनकी ज़िल्लत नहीं होती,
©इमरान अंसारी
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*किल्लत - कमी, *ज़िल्लत -बेइज़्ज़ती
इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-2252712076151668972016-09-26T00:50:00.002-07:002016-09-26T00:56:12.453-07:00सावन
पल-पल बदलता है जीवन मौसम हो जैसे
धूप ही धूप है बस, छाँव कुछ ही अरसा है
बहार फ़क़त तेरी आँखों का इक धोखा है
ये वो सावन है जो मेरी आँखों से बरसा है,
© इमरान अंसारी
इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-36563078782930473772015-05-08T22:29:00.000-07:002015-05-08T22:29:19.931-07:00दौर-ए-गर्दिश
लगता है सुलझाने में ही बीतेगी तमाम उम्र
उलझी है जिंदगी किसी सवालात की तरह,
ज़ाहिर करता है ऐसे पहचानता नहीं मुझे
मिलता है हर बार पहली मुलाक़ात की तरह,
बदले-बदले से उसके तेवर नज़र आते हैं,
वो भी बदल रहा है जैसे हालात की तरह,
कर सके तो कर वफ़ा मेरी वफ़ा की बदले
नहीं चाहिए मुहब्बत मुझे खैरात की तरह
क्यूँ दौर-ए-गर्दिश से घबरा न जाये दिल
गम बढ़े आते है किसी इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-89783689020686222032014-12-09T02:29:00.000-08:002015-09-25T10:06:43.383-07:00 रात
दोस्तों,
आप सबको सलाम अर्ज़ है । गुस्ताखी की माफ़ी के साथ अर्ज़ है कि लाख कोशिशों के बावजूद वक़्त नहीं निकल पा रहा हूँ ताकि आप सब दोस्तों के ब्लॉग तक पहुँच सकूँ । कभी कुछ लिखने का मौका मिलता है तो बस उसे पोस्ट कर देता हूँ । इंटरनेट की सुविधा न होने की वजह से और मोबाइल पर वक़्त न मिल पाने की वजह से ऐसा हो रहा है । कोशिश रहेगी की जल्द-अज़-जल्द इस मुश्किल का कोई हल निकाल सकूँ । इस उम्मीद में कि आप इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-65306016400289318142014-11-24T01:16:00.000-08:002014-11-24T01:16:21.696-08:00सवेरा
हर रोज़ सवेरा मेरी दहलीज़ तक आता है पंजों के बल खड़े होकर नदीदे बच्चों की तरह वो नन्हा सा सूरज मेरी ऒर ताकता है,
किरणें गालों से मेरे अठखेलियां करती हैं दूर किसी शाख पर बैठी कोई बुलबुल चहकती है,
धूप माँ के जैसे प्यार से बालों में उँगलियाँ फेरती है उम्मीदों से भरी अपनी आस की झोली खोलती है ज़िंदगी का एक और टुकड़ा नए दिन का तोहफा देती है,
मेरे साथ-साथ ही जग सारा इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-21890466990892075022014-07-01T02:39:00.002-07:002014-07-01T02:39:52.077-07:00दुःख
हाँ, दुखी हूँ मैं
करता हूँ इसे स्वीकार
किया सुख को अंगीकार
तो इसे कैसे करूँ इंकार
उदासी की काली चादर
ढक लेती जब मन को,
विषाद के घनीभूत क्षण
कचोटते है तब मन को,
निकल भागने को बेचैन
हो उठता व्याकुल मन,
स्वयं को ही शत्रु मान
आत्मघात को आतुर मन,
मेरा ये दुःख भी तो
सुख की ही उत्पत्ति है
क्या पलायन करने में
इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-51706731108787401202014-06-24T22:47:00.000-07:002014-06-24T22:47:16.780-07:00किनारा
न तो इस किनारे ही जीवन है
और न ही उस किनारे पर
अरसे से रुके हुए थमे हुए ये
किनारे कभी कहीं नहीं पहुँचते,
दोनों ही किनारों के बीच रहकर
नदी के प्रवाह सा बहता है जीवन
जैसे साक्षी भाव बहता है भीतर
सुख और दुःख दोनों से परे
बैठ पकड़ कोई भी किनारा
बस सड़ता जाता है जीवन
बहता हुआ स्वीकृति के भाव से
एक रोज़ जा मिलता है सागर में ,
इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-34381070453689360112014-06-17T01:15:00.000-07:002014-06-17T01:15:20.841-07:00पहला पैगाम
महबूब के नाम मैं
पहला पैगाम लिखूँ,
चूड़ियाँ वो खनकती
पायल वो झनकती
साँसे वो महकती
या तेरी होठो के वो
छलकते जाम लिखूँ,
महबूब के नाम मैं
पहला पैगाम लिखूँ,
आँखों पर कहूँ ग़ज़ल
चेहरे पर बुनूँ नज़्म
या हथेली पर सिर्फ
एक तेरा नाम लिखूँ,
महबूब के नाम मैं
पहला पैगाम लिखूँ,
हाथों में लिए हाथ&इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-36088331143278227642014-06-03T21:25:00.002-07:002014-06-03T21:25:57.298-07:00कृष्ण
"कृष्ण'' इस पौराणिक चरित्र ने हमेशा से मुझे प्रभावित किया है | कृष्ण के दर्शन में एक जो विरोधाभास है वो वाकई आकर्षण का केंद्र है एक ओर वो जहाँ रासलीला करते नज़र आते हैं तो वही दूसरी ओर गीता के उपदेश देते हुए भी | क्या वाकई जीवन इन विरोधाभासों से घिरा हुआ नहीं है ? और इसी में कमल की भांति खिलता है साक्षी .....दोनों से परे | वैसे तो अपनी इतनी हैसियत नहीं पर फिर भी ये एक छोटा सा प्रयास किया है 'इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-90087777683399921772014-05-30T02:16:00.000-07:002014-05-30T02:52:32.100-07:00अहसास
दोस्तों,
आप सबको सलाम अर्ज़ करता हूँ और इस बात के लिए माफ़ी का तलबगार हूँ कि एक लम्बे अरसे से ब्लॉगर से गैरहाजिर रहा । कुछ मसरूफियत की वजह से गुज़रे दिनों न ही कुछ लिख पाया और न ही कुछ पढ़ पाया । आइन्दा दिनों में पूरी कोशिश रहेगी कि आप सबके ब्लॉग पर नियमित आना हो और ये निरंतरता बनी रहे |
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अहसास कहीं हैं खोये हुए
लफ्ज़ मेरे जैसे सोये हुएइमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-45452692869568070222014-04-14T03:27:00.000-07:002014-04-14T03:27:30.403-07:00दर्द भरी रात
कितनी कराहों
चीखों में घिरी
दर्द भरी रात,
भटक रही थी,
सदियों से मिलन
को उजाले से,
स्याह अँधेरे से
दामन बचाती
डरती दुनिया,
कहीं सन्नाटे में
ध्यान में लीन
जोगी से टकराई,
पिया दर्द सारा
उसने रात से
नज़रें मिलाई,
साक्षात्कार के क्षण में
पड़ा प्रेम का बीज
उसकी कोख गरमाई,
प्रसव की असीम&इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-80119536907568512102014-04-04T00:20:00.000-07:002014-04-04T00:20:04.861-07:00मीठा सा इश्क
दोस्तों,
सबसे पहले तो आप सबसे माफ़ी चाहूँगा । पिछले दिनों अति व्यस्तता के चलते स्वयं अपने और आप सभी के ब्लॉग तक आना नहीं हो पाया | सोशल मीडिया कि तस्वीर पिछले कुछ समय से काफी बदल गई है फेसबुक जैसे त्वरित प्रतिक्रिया वाले प्लेटफार्म पर आवाजाही बढ़ी है तो ब्लॉगजगत में कमी आई है । पर इन सबके बावजूद ब्लॉग का अपना नशा है...... जो ठहराव और इत्मीनान से पोस्ट पढ़ कर ईमानदाराना टिप्पणियों से होकर लेखक इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-25542072699409955682014-03-13T01:22:00.000-07:002014-03-13T01:22:12.063-07:00लफ्ज़
गुमशुदा से लफ्ज़
आते हैं ज़ेहन
की दहलीज़ तक,
और कुछ देर
टहलते भी है
ख्यालों के साथ,
कागज़ पर उन्हें
बाँधने की कोशिश में
हाथ से फिसलते हैं,
मेरी ही तरह
शायद लफ्ज़ भी
बंधन से कतराते हैं,
© इमरान अंसारी
इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-66094049739314762542014-02-24T01:42:00.000-08:002014-02-24T01:42:28.463-08:00मुग़ल गार्डन- राष्ट्रपति भवन, दिल्ली
दोस्तों कल इतवार का दिन मुग़ल गार्डन देखने में बीता जो कि राष्ट्रपति भवन, दिल्ली में स्थित है । जो हर साल फरवरी-मार्च के मौसम में आम जनता के लिए खोला जाता है, मुग़ल गार्डन में खूबसूरत प्रकृति की अनुपम छटा देखने को मिलती है जो आपको सम्मोहित सा कर लेती है । वैसे इससे पहले भी दो बार वहाँ जाना हुआ है पर वहाँ सुरक्षा की दृष्टि से अन्दर कुछ भी ले जाना मना होता है, परन्तु इस बार मोबाइल ले जाने पर कोई इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-57340824592437026492014-02-11T23:42:00.002-08:002014-02-12T01:06:15.334-08:00प्यार और प्यार
दोस्तों,
आप सभी का शुक्रिया जो 'चल यार मनाएंगे' आपको पसंद आई । कुछ लोगों ने कहा और खुद मुझे भी लगा कि इसे धुन में पिरो कर गुनगुनाने लायक बनाना चाहिए । तो एक छोटा सा प्रयास किया जिसे आप यहाँ (विडियो यू ट्यूब पर ) देख सकते है |
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फरवरी का गुलाबी मौसम
फिजाओं में महकती फूलों की खुशबू
तन-मन को इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-9859148231101386672014-01-31T22:23:00.000-08:002014-01-31T22:23:35.113-08:00चल यार मनाएंगे
मिसरा एक सूफी कव्वाली का 'चल यार मनाएं' सुना था कहीं । उसके गिर्द एक सूफियाना क़लाम बुना है, इसमें सिर्फ इस एक मिसरे के सिवा बाकि सब इस 'इमरान' ने ही कहा है | यहाँ 'यार' 'गुरु' को कहा गया है, इसे ख्याल में रखें और सब कुछ भूल कर कुछ देर को डूब जाएँ इस समंदर में |
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चल री सखी ! चल यार मनाएंगे
जिसके रंग में रंगे इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com25tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-13944629670001722292014-01-23T21:34:00.000-08:002014-02-14T21:14:00.056-08:00अवसाद (डिप्रेशन) और उसके बाद - मेरा अनुभव
अवसाद, एक ऐसा शब्द जो भीतर तक सिहरन पैदा कर देता है । इसे न जानने वालों के लिए ये एक शब्द मात्र ही है परन्तु इसकी विभीषका से वही परिचित हो सकते हैं जिन्होंने इसे कभी जाना या भुगता है | आँकड़ों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी अवसाद का सामना करना पड़ता है । मेरे जीवन में भी ऐसा एक दौर गुज़रा है जब इस अवसाद ने मुझे सब तरफ से घेर लिया था| बाकी सबकी तरह मेरे लिए भी पहले ये एक इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com28tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-50713481280940788872014-01-18T00:40:00.001-08:002015-09-28T00:09:20.246-07:00समंदर
समंदर के किनारे
दूर तक फैली रेत पर
ताड़ के पेड़ से पीठ टिका
मैं देखता रहा सोचता रहा
विराट में छुपे कितने संकेत,
हज़ारो मील दूसरे किनारे पर
अपने अस्तित्व को समेटे
गहराई में कहीं विलीन होते
पिघलते हुए लाल सूरज को,
बच्चों का पेट भरने निकले
दिन भर की मशक्कत से लौटते
घोसलों तक पहुँचने की जल्दी में
परवाज़ें भरते हुए परिंदों को,
इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-36448617318635762822013-12-30T01:53:00.000-08:002013-12-30T01:53:50.277-08:00स्माइल प्लीज़
दोस्तों आज पहली बार ज़रा 'हास्य' में कुछ लिखा है । आपके सामने पेश है.... । अच्छा- बुरा जैसा भी लगे ज़रूर बताएं। कसौटी होगी आपकी मुस्कान अगर वो चेहरे तक आ गयी है न छुपाये और हमे भी दाँत दिखाएँ ताकि हम उन्हें गिन पाएँ ...तो न झुंझलाये और लुत्फ़ उठायें :-
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घर से हम थे जैसे ही निकले
थोड़ी ही दूर पर जाकर फिसले,
देखा एक गोरा इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-7968114745703720412013-12-23T02:18:00.000-08:002013-12-23T02:18:06.548-08:00शक्ति
आँखों में कितने ख्वाब मचलते थे
हसरतों के दिल में चिराग जलते थे,
झक सफ़ेद एक घोड़े पर सवार
ख्वाबो का वो सब्ज़ शहज़ादा
एक रोज़ कहीं दूर से आएगा
अपने साथ मुझे भी ले जायेगा,
हाय ! कितनी नादाँ थी कितनी भोली मैं
कच्ची उम्र में बिठा दी गयी डोली में मैं,
बैठी शर्म से सकुचाई फूलों की सेज पर
आते ही रखी थी उसने बोतल मेज पर,
लड़खड़ा रहे थे कदम मुँह से छूटता भभूकाइमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-65142885549229963012013-12-17T01:44:00.000-08:002013-12-17T01:44:20.622-08:00दीवानी
छलक न पड़े इनमें से दर्द कहीं इसलिए
आँखों को काजल से सजाकर रखती थी,
मिलते ही चला न जाये दिल का करार
इसलिए नज़रों को झुकाकर रखती थी,
पहचान न ले कहीं चेहरे से ये ज़माने वाले
प्यार को मेरे सीने में दबाकर रखती थी,
नहीं कर पाई होठों से इक़रार इश्क़ का मगर
तस्वीर मेरी किताबों में छुपाकर रखती थी,
अजीब दीवानी सी लड़की थी वो 'इमरान'
इंतज़ार में तेरे पलकें बिछाकर इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-23618965048023515582013-12-06T23:52:00.001-08:002013-12-07T00:27:58.993-08:00अहसास-ए-तन्हाई
कोहरे से घिरी सर्द रातों में अक्सर
यूँ भी घर से निकलता हूँ ये सोचकर
कि मेरी ही तरह चाँद को भी
अहसास-ए-तन्हाई सताती होगी,
ठिठुरती हुई इन गलियों में
आवारा चाँदनी भटकती होगी,
गर्म दुशाले में लिपटी वो कहीं
अलाव से हाथों को सेकती
मेरी याद में तड़पती होगी,
अहसासों की गर्म तपिश के सहारे
साँसों के गर्म उजले धुएँ की रौशनी में,
धुंध को चीरता इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com19tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-51367618819706292262013-11-30T01:25:00.000-08:002013-11-30T01:25:45.721-08:00याद
रात फिर आयी थी याद तेरी
रोती रही, गिड़गिड़ाती रही
हिचकियों की आवाज़ें
मेरे कानों में गूँजती रही
ज़ेहन की देहरी से लगी तेरी याद
रात भर सिसकती रही,
अरसा गुज़र गया है
उस वक़्त को बीते हुए,
पर आज भी तेरी याद
मेरा पीछा नहीं छोड़ती,
जब भीड़ में होता हूँ,
तो ये तनहा कर देती है,
जब तनहा हूँ तो
गुज़रे लम्हों काइमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-86436407779280731892013-11-26T01:40:00.000-08:002013-11-26T01:40:27.558-08:00कागज़ की नाव
अरमानों को मोड़कर
हसरतो को जोड़कर,
एक कश्ती बनाई थी मैंने
और ये सोच कर पानी में बहा दी
कि एक रोज़ इसे साहिल मिलेगा,
मेरे दिल के किनारे से छूटी ये
कभी तो तेरे दिल के किनारे लगेगी,
वक़्त के तूफान को पर ये मंज़ूर न था
हालातों के एक ही भंवर ने
आँसूओं का वो सैलाब पैदा किया
जिसमें गर्क हो गई कश्ती मेरी,
मजबूत कश्ती समझा था मैं जिसे
वो तो फ़क़त कागज़ की नाव थी,
और कागज़ों की इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2463026826245652094.post-39137910078882709582013-11-18T20:44:00.000-08:002013-11-18T20:44:17.448-08:00साहिल
आज भी जा बैठती हूँ
सागर के उसी साहिल पर
जहाँ बैठे घंटो हम दूर
अस्त होते सूरज को
निहारा करते थे,
इन लहरों पर कितनी ही
प्यार भरी अठखेलियाँ
किया करते थे हम दोनों,
इसी सागर पर किश्ती
पर बैठे हमने कितनी ही
मौजों का सामना किया
एक दूसरे का हाथ थामे,
एक दिन एक बड़ी सी
मौज तुम्हे सागर के
दूसरे किनारे तक ले गई&इमरान अंसारी http://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.com14