मार्च 13, 2014

लफ्ज़



गुमशुदा से लफ्ज़ 
आते हैं ज़ेहन 
की दहलीज़ तक,

और कुछ देर 
टहलते भी है 
ख्यालों के साथ,

कागज़ पर उन्हें 
बाँधने की कोशिश में 
हाथ से फिसलते हैं,

मेरी ही तरह 
शायद लफ्ज़ भी 
बंधन से कतराते हैं,

© इमरान अंसारी