जहाँ कहीं जिस ओर भी इशारा मिला
उसी तरफ उसे ढूँढता रहा बढ़ता रहा
कभी इससे पूछता तो कभी उससे
कहीं कोई सुराग नहीं मिलता था
दूसरे तो जैसे अंजान थे उससे,
ये ख़ुशबू सिर्फ उसे ही आती
दिल-ओ-दिमाग पर छा जाती
एक मदहोशी का आलम बनता
कुछ देर अपने को भी भूल जाता
जहाँ भी वो जाता उसके साथ होती
ढूँढने पर न जाने कहाँ खो जाती
यहाँ वहाँ जाने कहाँ कहाँ ढूँढा उसे
जिसने जो बताया वही किया उसने
एक रोज़ थक कर बैठ गया वो
बंद करके आँखें देखा अपने भीतर
जो उसे पागल बनाये दे रही थी
वो खुशबू तो थी उसके अपने ही अन्दर
अब उसने जाना वो तो सदा से थी
बस वही कभी उसे जान नहीं पाया
वो खुशबू जो उसे एक मामूली से
'कस्तूरी' बनाती है सदा के लिए,
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नोट - ये पोस्ट मैंने दोनों को ख्याल में ले कर लिखी है 'हिरन' और 'मनुष्य' जो आपको भाए आप वो मतलब लें ले । इसलिए कहीं पर भी दोनों का ही ज़िक्र नहीं किया है.......प्रयास कैसा रहा.....आपकी अमूल्य राय की प्रतीक्षा में.......