न तो इस किनारे ही जीवन है
और न ही उस किनारे पर
अरसे से रुके हुए थमे हुए ये
किनारे कभी कहीं नहीं पहुँचते,
दोनों ही किनारों के बीच रहकर
नदी के प्रवाह सा बहता है जीवन
जैसे साक्षी भाव बहता है भीतर
सुख और दुःख दोनों से परे
बैठ पकड़ कोई भी किनारा
बस सड़ता जाता है जीवन
बहता हुआ स्वीकृति के भाव से
एक रोज़ जा मिलता है सागर में ,
© इमरान अंसारी