सितंबर 23, 2013

आँखें

एक ऐसे शख्स के लिए जिसकी आँखे कुछ कहने के लिए बेक़रार कर जाती है। ……मेरी तरफ से ये प्यार भरा तोहफा खूबसूरत आँखों की उस मल्लिका  के लिए -


लूट के ले जाती हैं दिल का चैन-ओ- करार 
जब भी शरमा के झुकती हैं तेरी आँखें,

दोनों के दिल में अरमानों का सैलाब उठता है 
जब भी मेरी आँखों से मिलती हैं तेरी आँखें,

अपने वजूद में तेरा अक्स दिखने लगता है 
जब मेरे चेहरे को तकती हैं तेरी आँखें, 

इस सूनी जिंदगी में प्यार की फुहार लाती हैं 
सहरा में बादल की तरह बरसती हैं तेरी आँखें, 

आ ! तुझे बाहों में लेकर चूम लूँ इनको 
इक उम्र से प्यार को तरसती हैं तेरी आँखें 

शराबी की तरह पीकर बहक जाता है 'इमरान'
किसी पैमाने की तरह छलकती हैं तेरी आँखें,


सितंबर 16, 2013

इंतज़ार


ज़ख्म रिसने लगते हैं
दर्द बहने लगता है 
आँखे अश्कों में 
भीग जाती हैं आज भी,
जब-जब उस शब 
का ज़िक्र आता है 
जो तेरे इंतज़ार में गुजरी थी....... 

शब भर हौले-हौले चाँद 
फलक पर सरकता रहा 
सितारे थके हुए मुसाफिरों 
की तरह आसमान पर पड़े रहे,

दूर कहीं हवा से कोई 
पत्ता खड़कता था 
तो दिल की धड़कने 
कहती थी तुम ही हो,

दरिया के बहते हुए 
पानी की आवाज़ पर 
तुम्हारे पाज़ेब की झंकार
का गुमां होने लगता,

बहकी-बहकी सी हवा
कुछ यूँ छू के गुज़र रही थी 
जैसे तुम आकर मेरे बालों में 
उँगलियाँ फेर रही हो,

इन्हीं ख्यालों में कहीं गुम 
मैं तमाम शब तेरे आने 
का इंतज़ार करता रहा,
तेरे आने के गुमाँ होते रहे पर 
तूने आने की ज़हमत न उठाई,
नहीं जानता किसने तेरे पैर बाँधे 
वो तेरी मजबूरी थी या मरज़ी, 

चाँद भी आखिर अपनी मंजिल 
पर पहुँच ही गया और 
मुसाफिर सितारे भी एक-एक 
करके अपनी राह चलते बने,

और मैं उस शब को बाँध 
गठरी कंधे पर लादकर 
छोड़ आया था शहर तेरा 
आज भी जब कभी उस 
गठरी को खोलता हूँ तो..... 

ज़ख्म रिसने लगते हैं
दर्द बहने लगता है 
आँखे अश्कों में 
भीग जाती हैं आज भी,
जब-जब उस शब 
का ज़िक्र आता है 
जो तेरे इंतज़ार में गुजरी थी....... 


सितंबर 09, 2013

बचपन



जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……

जब माँ के आँचल में छुप जाता था
जब न किसी गम से मेरा नाता था,

जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……

जब आगे निकल जाने की होड़ न थी 
जब दुनिया की ये पागल दौड़ न थी,

जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……

जब पल में रूठना और पल में मनाना था 
जब दोस्ती का खुबसूरत वो ज़माना था, 

जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे………

जब मोहल्ले से आती शिकायतें थी 
जब हुआ करती मासूम शरारतें थी, 

जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……

जब तोड़ते पेड़ों से बेर, अमरुद और आम थे 
जब रखते एक दूसरे के कैसे-कैसे नाम थे, 

जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……

जब धूप, बारिश, आँधी सब झेला करते थे 
जब सुबह से शाम तक बस खेला करते थे, 

जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……