कच्चे रेशम के धागे जैसा
वो नाज़ुक सा इश्क़........
जो हम दोनों के दरमियाँ
आहिस्ते आहिस्ते पला था,
उसमें अपने मुस्तकबिल को
जवान होते देखा था मैंने,
रूह की पाकीज़गी से इश्क़
के बदन को सींचा था मैंने,
वो नाज़ुक परिंदे जैसा इश्क़
जिसकी रगों में मेरी वफ़ा का खून था
फुसला के ले गई एक रात वो उसे
झूठ की तलवार से उसका क़त्ल किया,
और उसकी बेवफाई के गिद्धों ने
इश्क़ के बदन को नोच-नोच के खाया,
इश्क़ की मासूम लाश को
कन्धों पर लाद कर लाया मैं
उसके ज़ख्मों के निशां
आज भी मेरे कन्धों पर हैं,
और इश्क़ की वो मासूम लाश
आज भी मेरे ज़ेहन में दफन है,
कच्चे रेशम के धागे जैसा
वो नाज़ुक सा इश्क.......