प्रिय साथियों......इम्तिहानों का दौर है और पास भी होना है तो वक़्त की दरकार है की कुछ दिनों मेहनत का दामन थाम लिया जाए........इन्ही वजुहात से कुछ दिनों तक आप सबसे दूर रहूँगा..........इंशाल्लाह 10 दिनों बाद मुलाक़ात होगी........आप सब अपना ख्याल रखें........खुश रहें.........खुदा हाफिज।
पेश है ये ताज़ा ग़ज़ल....नोश फरमाएं और अपनी बेबाक राय ज़रूर ज़ाहिर करें.........
परवाने तो मिट कर पा गए इश्क़ कि मंज़िल मगर
अपनी ही आग में खुद को जलाती रही शमां रात भर,
अश्क़ भरी आँखों से दीवारों को तकता रहा मैं
और मेरे दामन को जलाती रही शमां रात भर,
हर बार चाहा कि उतार कर फेंक दूँ जिस्म से मगर
लिबास तेरी यादों का जलाती रही शमां रात भर,
वो ख़त लिखे थे जो तुमने कभी मुझे प्यार में
हर्फ़-ब-हर्फ़ उनका जलाती रही शमां रात भर,
गुज़री रात ने बदल के रख दिया मुझको 'इमरान'
मेरे माज़ी के गुनाहों को जलाती रही शमां रात भर,
काफी समय बाद ब्लॉग पर हूं....
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहद उम्दा रचना....
स्वागत है आपका......शुक्रिया वीणा जी।
हटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंशुक्रिया वंदना जी।
हटाएंbahut badhiya lagi gazal...imtihan ke liye shubh kamnayen ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया शारदा जी।
हटाएंवाह भाई वाह.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....!!
शुक्रिया दी ।
हटाएंbhaut khubsurat nazam.....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुषमा जी........ये नज़्म नहीं ग़ज़ल है :-))
हटाएंपरवाने जिस आग में जलतें हैं नुमाइश के लिए
जवाब देंहटाएंशम्मा उसी आग में.. ताउम्र जली जाती है
... bahut khoobsurat gazal imraan ji..
aapke imtehaanon ke liye bahut bahut shubhkamnayen
बहुत बहुत शुक्रिया शालिनी जी ।
हटाएंलाज़वाब ग़ज़ल..हरेक शेर बहुत उम्दा...इम्तहान के लिए हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया कैलाश जी ।
हटाएंअश्क़ भरी आँखों से दीवारों को तकता रहा मैं
जवाब देंहटाएंऔर मेरे दामन को जलाती रही शमां रात भर,
बहुत उम्दा गजल,,,बधाई
recent post : तड़प,,,
शुक्रिया धीरेन्द्र जी ।
हटाएंअच्छी ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंशुक्रिया निधि जी ।
हटाएंImran ji,
जवाब देंहटाएंme too have exam this week. So, I am also preparing for the same. All the best for your exams.
for your poetry I want to say in Punjabi :--
prem nagar da rang vakhra duniya to,
prem nagar di ehi reet,
sar jaye, par jaye na preet
jaise parvana or shama vakhra duniya to.
Good Luck.
बहुत बहुत शुक्रिया आपका........आपके इम्तिहान के लिए शुभकामनायें ......अपने पंजाबी में जो कहा वो कुछ समझ आया कुछ नहीं :-)........मैं उड़ते पक्षी का नाम ज़रूर जानना चाहूँगा ।
हटाएंकाश! शमा जला पाती..यादों का लिबास!!
जवाब देंहटाएंशमा रातभर में बहुत जला देती है देव बाबू ।
हटाएंवाह! कमाल! लाजवाब!बेहतरीन..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अमृता जी ।
हटाएंबेहतरीन गज़ल. लाजवाब.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अमित जी ।
हटाएंबहुत खूब ... लाजवाब गज़ल है ... हर शेर खिलता हुवा अपना अंदाज लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया दिगंबर जी ।
हटाएंवाह वाह वाह ...बहुत खूब ...आपके कलम की धार तो बहुत तेज़ हो गयी ....वाकई काफी दिनों बाद आना हुआ आपके ब्लॉग पर ....:)
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सरस जी........स्वागत है आपका ।
हटाएंबेहतरीन गज़ल है...वैसे यूं तो परवाने से सभी हमदर्दी रखा करते हैं मगर शमा के दर्द को कोई कोई ही समझ पाता है। जो सारी-सारी रात खुद जलकर भी दूसरों के अँधेरों को रोशन किया करती है...:)
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया पल्लवी जी........ग़ज़ल के मर्म तक पहुंची हैं आप ।
हटाएंkya khoob keha!
जवाब देंहटाएंअरे वाह.......बहुत दिनों बाद आपको देखना बहुत अच्छा लगा पारुल जी......बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
हटाएंइमरान भाई, बेहतरीन शायरी. एक एक शेर लाजवाब. उम्मीद है इम्तिहान अब खत्म हो गया होगा और अच्छा हुआ होगा. आपकी नयी रचना का इंतज़ार रहेगा.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया निहार जी..........हाँ इम्तिहान ख़त्म हो गएँ हैं और आप सबकी दुआ से अच्छे हुए हैं ।
हटाएंboht khoob..
जवाब देंहटाएंyu shama ki baat ki dar-o-diwar roshan kar diye...