मई 08, 2015

दौर-ए-गर्दिश



लगता है सुलझाने में ही बीतेगी तमाम उम्र 
उलझी है जिंदगी किसी सवालात की तरह,

ज़ाहिर करता है ऐसे पहचानता नहीं मुझे 
मिलता है हर बार पहली मुलाक़ात की तरह,

बदले-बदले से उसके तेवर नज़र आते हैं,
वो भी बदल रहा है जैसे हालात की तरह,

कर सके तो कर वफ़ा मेरी वफ़ा की बदले 
नहीं चाहिए मुहब्बत मुझे खैरात की तरह

क्यूँ दौर-ए-गर्दिश से घबरा न जाये दिल 
गम बढ़े आते है किसी बारात की तरह,

© इमरान अंसारी


7 टिप्‍पणियां:

  1. गम कहीं बाहर से नहीं आते...हम ही उन्हें छिपाए रहते हैं भीतर...बाहर तो बस निमित्त होते हैं...

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  2. बहुत ही बेहतरीन जानकारी है कुछ hindi quotes भी पढ़े

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  3. हूँ ... हर रात की सुबह जरूर होती है . इन्तजार में ...

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  4. वाह क्या रचना है ।Seetamni. blogspot. in

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  5. क्या बात है !.....बेहद खूबसूरत रचना....
    आप को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@आओ देखें मुहब्बत का सपना(एक प्यार भरा नगमा)
    नयी पोस्ट@धीरे-धीरे से

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  6. अंसारी जी, बहुत ही खूबसूरत रचना। मई से आपकी ब्‍लाग पर कोई नई पोस्‍ट अपडेट नहीं हुई है। अपडेट पोस्‍ट डालते रहिए। अब तो हिंदी ब्‍लागिंग में काफी संभावनाएं हैं। ऐसे समय में कदम पीछे खींचना समझदारी नहीं है। कोई तकनीकी दिक्‍कत हो तो उसका निदान भी है।

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...