तेरे देखते-देखते दुनिया कहाँ से कहाँ निकल गई
एक तू है जो अभी तक ख्यालों में कहीं खो रहा है,
देखना इन्हीं से होंगे एक रोज़ खुद तेरे पाँव घायल
आज जिन काँटों को तू दूसरों के लिए बो रहा है,
शायद यही है जिंदगी की हकीक़त ए ! मेरे खुदा
मौजों में है सफीना और माँझी गाफ़िल सो रहा है,
बख्श देगा शायद क़यामत के रोज़ ख़ुदा उसको
करके तौबा अब अमाल से गुनाहों को धो रहा है,
यहाँ कौन है जो किसी के बोझ को उठा ले 'इमरान'
हर शख्स अपना सलीब अपनी पीठ पर खुद ढो रहा है,