दिसंबर 30, 2013

स्माइल प्लीज़


दोस्तों आज पहली बार ज़रा 'हास्य' में कुछ लिखा है । आपके सामने पेश है.... । अच्छा- बुरा जैसा भी लगे ज़रूर बताएं।  कसौटी होगी आपकी मुस्कान अगर वो चेहरे तक आ गयी है न छुपाये और हमे भी दाँत दिखाएँ ताकि हम उन्हें गिन पाएँ ...तो न झुंझलाये और लुत्फ़ उठायें :-
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घर से हम थे जैसे ही निकले 
थोड़ी ही दूर पर जाकर फिसले,

देखा एक गोरा सा मुखड़ा 
हाय ! चाँद का था टुकड़ा,

दिल आया उसके क़दमों के नीचे
फ़ौरन ही हम लग लिए थे पीछे, 

सुर्ख होठ थे गालों पर थी लाली 
पता चला थानेदार की थी साली,

लम्बे घने रेशम के जैसे थे बाल 
किसी नागिन सी उसकी थी चाल, 

खड़ा था वहाँ उसका भाई भी निट्ठल्ला 
आ गए हम जहाँ वो था उसका मोहल्ला,

हट्टा-कट्टा मुस्टंडा सा था जवान 
दंड पेलने वाला था वो पहलवान, 

देखते ही कम्बख्त वो ऐसा टूट पड़ा 
जिस्म के हर हिस्से से दर्द फूट पड़ा,

काँटे से इश्क़ कि राह में बो दिए गए 
हाय ! हम बुरी तरह से धो दिए गए,   

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ये मुस्कराहट यूँ ही बनी रहे आने वाला नया साल आप सभी के जीवन में खुशियों की बहार लेकर आये । नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनायें आप सभी को |



दिसंबर 23, 2013

शक्ति



आँखों में कितने ख्वाब मचलते थे 
हसरतों के दिल में चिराग जलते थे,

झक सफ़ेद एक घोड़े पर सवार 
ख्वाबो का वो सब्ज़ शहज़ादा 
एक रोज़ कहीं दूर से आएगा 
अपने साथ मुझे भी ले जायेगा,

हाय ! कितनी नादाँ थी कितनी भोली मैं 
कच्ची उम्र में बिठा दी गयी डोली में मैं,
बैठी शर्म से सकुचाई फूलों की सेज पर
आते ही रखी थी उसने बोतल मेज पर,

लड़खड़ा रहे थे कदम मुँह से छूटता भभूका था 
खसोटा ज़ालिम ने जैसे भेड़िया कोई भूखा था,
अब तो यही स्वर्ग और यही देवता था मेरा 
यही संस्कृति थी और यही अब धर्म था मेरा,

रीती-रिवाज़ों के बंधन में जकड़ी गई 
कैसे-कैसे और कहाँ-कहाँ मैं पकड़ी गई,
जिसके लिए रखती रही करवा-चौथ
उसने सीने पर बिठा दी लाकर सौत,

मासूम बच्चों की आँखों को देखती रही 
इनका क्या दोष है बस ये सोचती रही, 
हर ज़ुल्म इसलिए चुपचाप सहती रही
दरिया में तिनके कि तरह मैं बहती रही,

पूछती रब से तूने तो जग को बनाया 
इस जग ने तो जननी को ही भुलाया,
सुन कर बात मेरी वो धीरे से मुस्काया 
बोला तूने भी तो अपनी शक्ति को भुलाया,

मत भूल तुझे भी मैंने वो सब दिया है
जिस पर इतराता ये पुरुष जिया है,
देख उठा कर शास्त्रो और पुराणो को 
मारा है शक्ति ने कितने हैवानों को,

भस्म हुए है जिस पर तूने नज़र डाली है 
सिर्फ कोमलांगी नहीं तुझमे भी काली है,
झुक जाती सबके आगे तुझमे वो भक्ति है
और दुष्टों का संहार करे तुझमे वो शक्ति है,  
     
© इमरान अंसारी    

दिसंबर 17, 2013

दीवानी



छलक न पड़े इनमें से दर्द कहीं इसलिए
आँखों को काजल से सजाकर रखती थी,

मिलते ही चला न जाये दिल का करार 
इसलिए नज़रों को झुकाकर रखती थी, 

पहचान न ले कहीं चेहरे से ये ज़माने वाले  
प्यार को मेरे सीने में दबाकर रखती थी,

नहीं कर पाई होठों से इक़रार इश्क़ का मगर 
तस्वीर मेरी किताबों में छुपाकर रखती थी,

अजीब दीवानी सी लड़की थी वो 'इमरान'
इंतज़ार में तेरे पलकें बिछाकर रखती थी,


दिसंबर 06, 2013

अहसास-ए-तन्हाई



कोहरे से घिरी सर्द रातों में अक्सर 
यूँ भी घर से निकलता हूँ ये सोचकर 
कि मेरी ही तरह चाँद को भी 
अहसास-ए-तन्हाई सताती होगी,

ठिठुरती हुई इन गलियों में 
आवारा चाँदनी भटकती होगी,
गर्म दुशाले में लिपटी वो कहीं 
अलाव से हाथों को सेकती
मेरी याद में तड़पती होगी,

अहसासों की गर्म तपिश के सहारे 
साँसों के गर्म उजले धुएँ की रौशनी में, 
धुंध को चीरता मैं चला जाता हूँ 
एक सिर्फ तेरी ही तलाश में, 

दूर कहीं कुछ साये से लहराते हैं  
दामन का तेरे अहसास कराते है, 
कहीं कोई दीप झिलमिलाता है 
मिलन की एक आस जगाता है,

कहीं कुछ नज़र नहीं आता 
अपने ही क़दमों कि आवाज़ें हैं, 
इस सिरे से उस सिरे तक सिर्फ
सफ़ेद कोहरे कि परवाज़ें हैं,

मेरी ही तरह ये चाँद भी जलता है 
कैसा मेरा और इसका रिश्ता है,
रजाइयों में दुबक जब सोता है जहाँ 
आशिक़ पिया मिलन को तरसता है,

कोहरे से घिरी सर्द रातों में अक्सर 
यूँ भी घर से निकलता हूँ ये सोचकर 
कि मेरी ही तरह चाँद को भी 
अहसास-ए-तन्हाई सताती होगी,

© इमरान अंसारी

नवंबर 30, 2013

याद



रात फिर आयी थी याद तेरी 
रोती रही, गिड़गिड़ाती रही 
हिचकियों की आवाज़ें 
मेरे कानों में गूँजती रही   
ज़ेहन की देहरी से लगी तेरी याद 
रात भर सिसकती रही, 

अरसा गुज़र गया है
उस वक़्त को बीते हुए,
पर आज भी तेरी याद 
मेरा पीछा नहीं छोड़ती,   

जब भीड़ में होता हूँ, 
तो ये तनहा कर देती है, 
जब तनहा हूँ तो 
गुज़रे लम्हों का एक 
मज़मा सा लगा देती है,

और फिर मुझे उसी अतल
गहराई में धकेल देती है 
जहाँ अतीत और वर्तमान
के बीच सब धुंधला सा जाता है,

और मैं गुमराह राही सा अनजान 
ये सोच ही नहीं पाता कि 
कौन सा रास्ता अतीत के 
काले अंधेरों में जाकर गुम हो जाता है
और कौन सा वर्तमान के उजियारे में,  

तंग आ गया हूँ अब मैं  
इसकी पिघला देने वाली 
मनुहारों से बचने के लिए, 
अपने ज़ेहन कि कोठरी के 
दरवाज़े मज़बूती से बंद कर दिए,

रात फिर आयी थी याद तेरी 
रोती रही, गिड़गिड़ाती रही 
हिचकियों की आवाज़ें 
मेरे कानों में गूँजती रही   
ज़ेहन की देहरी से लगी तेरी याद 
रात भर सिसकती रही, 

© इमरान अंसारी


नवंबर 26, 2013

कागज़ की नाव



अरमानों को मोड़कर
हसरतो को जोड़कर,
एक कश्ती बनाई थी मैंने
और ये सोच कर पानी में बहा दी
कि एक रोज़ इसे साहिल मिलेगा,
मेरे दिल के किनारे से छूटी ये
कभी तो तेरे दिल के किनारे लगेगी,

वक़्त के तूफान को पर ये मंज़ूर न था 
हालातों के एक ही भंवर ने
आँसूओं का वो सैलाब पैदा किया
जिसमें गर्क हो गई कश्ती मेरी,

मजबूत कश्ती समझा था मैं जिसे 
वो तो फ़क़त कागज़ की नाव थी,
और कागज़ों की नावों के मुक़द्दर में
साहिल नहीं हुआ करते हैं,
उनके नसीब में तो मझधार में
डूब जाना ही लिखा होता है,

© इमरान अंसारी

नवंबर 18, 2013

साहिल



आज भी जा बैठती हूँ 
सागर के उसी साहिल पर 
जहाँ बैठे घंटो हम दूर 
अस्त होते सूरज को 
निहारा करते थे, 

इन लहरों पर कितनी ही 
प्यार भरी अठखेलियाँ 
किया करते थे हम दोनों,

इसी सागर पर किश्ती 
पर बैठे हमने कितनी ही 
मौजों का सामना किया
एक दूसरे का हाथ थामे,

एक दिन एक बड़ी सी 
मौज तुम्हे सागर के 
दूसरे किनारे तक ले गई 
क्योंकि एक दिन तुम्हे 
महत्वकांक्षा के जहाज पर 
बैठकर इस सागर के 
सीने को कुचलना था,

जानती हूँ उस किनारे से 
इस किनारे तक तैर के आना 
अब तुम्हारे लिए मुमकिन नहीं 
और जहाज़ पर बैठना मेरे लिए,

फिर भी मैं इस इंतज़ार में 
रोज़ इस साहिल पर आती हूँ
कि शायद कोई मौज तुम्हें 
उस किनारे से बहाकर फिर 
इस किनारे तक ले आये,


नवंबर 07, 2013

मेरी टॉप 10 लिस्ट - 4



आज एक बार फिर आप सब से रूबरू हो रहा हूँ| इस महीने मेरे ब्लॉग की चौथी वर्षगाँठ है| इस मौके पर पिछली तीन बार की तरह इस बार भी मेरी टॉप 10 लिस्ट हाज़िर हैं पुराने ब्लॉगर साथी इससे वाकिफ होंगे जो कदरन नए हैं उनके लिए पिछली लिस्ट के लिंक दे रहा हूँ:-


उन सब लोगों का तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने अपना कीमती वक़्त इस ब्लॉग को दिया और हौसला अफजाई कीपिछले एक साल में बहुत कुछ बदल गया है मेरे देखे अब ब्लॉगर पर लोगों कि सक्रियता लगातार घटती जा रही है ये एक विचारणीय समस्या है मेरा अपने सभी ब्लॉगर साथियों से अनुरोध है कि वो ब्लॉगर पर अपनी सक्रियता को बनाये रखे क्योंकि इस ब्लॉगर ने हम सबको अंतर्जाल पर एक पहचान दी है और एक दूसरों से मिलवाया है जिसके लिए हम सदा इसके आभारी रहेंगे  

मैं सबसे ये गुज़ारिश करता हूँ की ये सिर्फ मेरा सलाम है उन लोगों को जो बेहतरीन ब्लॉग लिख रहे हैं अन्यथा मैं कोई नहीं होता किसी का आंकलन करने वाला.......कृपया इसको बिलकुल भी अन्यथा लें   हर बार की तरह मैंने यहाँ किसी ब्लॉग को उसके रचनाकार के तजुर्बे, उम्र, उसके फॉलोवर या उसकी पोस्ट पर टिप्पणीयों या किसी अन्य वजह से नहीं,.......बल्कि सिर्फ और सिर्फ उस ब्लॉग की रचनाओ को आधार बनाया है। दूसरी बात ये लिस्ट सिर्फ मेरी व्यक्तिगत रूचि पर आधारित है, जो पिछले एक साल में मैंने पढ़े हैं और जो मुझे पसंद आये .........कृपया इसे बिलकुल भी अन्यथा लें.......हो सकता है किसी को मुझसे इत्तेफाक हो|


तो शुरू करते हैं नंबर 10  से -

ब्लॉग का नाम       - उड़ान 
लिंक                    -  http://udaari.blogspot.in/
ब्लॉग लेखक         -  उड़ता पक्षी (टीना )

ये ब्लॉग कदरन नया है मेरे लिए इसमें प्यार के कुछ रूहानी अहसासों को समेटे कुछ लाजवाब पोस्ट पढ़ने को मिली इस साल । मेरी तरफ से टीना को शुभकामनायें |

नम्बरपर हैं -

ब्लॉग का नाम    -   मेरे अनुभव
लिंक                 -  http://mhare-anubhav.blogspot.in/ 
ब्लॉग लेखक      -  पल्लवी सक्सेना 

पल्लवी जी विदेश में रहने वाली एक पूर्ण भारतीय महिला है | इस ब्लॉग पर उन्होंने समसामयिक घटनाओ को अपने नज़रिये को अपने अनुभवो के साथ साझा किया है । एक आम आदमी का दृष्टिकोण लिए एक सुन्दर ब्लॉग | 

नम्बरपर हैं -

ब्लॉग का नाम        -  स्वप्न मेरे 
लिंक                     - http://swapnmere.blogspot.in/
ब्लॉग लेखक          -  दिगंबर नासवा 

दिगंबर नासवा जी के इस ब्लॉग पर पिछले साल "माँ" विषय पर कुछ बहुत ही बेहतरीन रचनाएं पढ़ने को मिली । मैं उनके इस जज़बे को सलाम करता हूँ | 


नम्बरपर हैं -

ब्लॉग का नाम    -   Kasish – My Poetry
लिंक                 -  http://sharmakailashc.blogspot.com/
ब्लॉग लेखक      -  कैलाश शर्मा 



कैलाश जी एक जाने माने ब्लॉगर हैं पर शायद मैं ही इनके ब्लॉग तक देर में पहुँच पाया । कैलाश जी मुक्तक बहुत ही सटीक और सुन्दर लिखते हैं जिनमे उनके जीवन से प्राप्त अनुभव झलकते हैं| 

नम्बरपर हैं -

ब्लॉग का नाम        -  मेरी कलम मेरे जज़्बात 
लिंक                    -  http://shalini-anubhooti.blogspot.in/
ब्लॉग लेखक          -  शालिनी रस्तोगी 

शालिनी जी हिंदी कविता के साथ-साथ उर्दू गज़लें भी बहुत कमल कि लिखती हैं । पेशे से अध्यापक शालिनी जी के इस ब्लॉग पर शानदार ग़ज़लों के साथ ही आपको सवैया और दोहे जैसी रचनाएं भी मिल जाएँगी | 

नम्बरपर हैं

ब्लॉग का नाम       -  परवाज़....शब्दों के पंख
लिंक                     - http://meri-parwaz.blogspot.in/
ब्लॉग लेखक         -  डॉ॰ मोनिका शर्मा

डॉक्टर मोनिका जी भी विदेश में रहने वाली एक भारतीय महिला है । समसामायिक, भारतीय संस्कृति और आम जीवन से जुड़े उनके आलेख उत्कृष्ट लेखन का नमूना हैं । मेरी नज़र में पूरे ब्लॉगजगत में इतनी सटीकता और उपयुक्त शब्दों के साथ शायद ही कोई आलेख लिखता हो ।

नम्बर 4 पर हैं -

ब्लॉग का नाम       -  मेरे गीत 
लिंक                    -  http://satish-saxena.blogspot.in/
ब्लॉग लेखक         -  सतीश सक्सेना 

सतीश सक्सेना ये नाम ब्लॉगजगत का खूब पहचाना हुआ नाम है । हैरानी है मुझे खुद पर कि मैं इतने समय से कैसे इनके ब्लॉग से दूर रह पाया । इनके लिखे गीतों में सब कुछ है अहसास, व्यंग्य, कटाक्ष, भावनाएं सब कुछ । 

नम्बर 3 पर हैं -

ब्लॉग का नाम       -  मेरी भावनायें...
लिंक                     -   http://lifeteacheseverything.blogspot.in
ब्लॉग लेखक         -  रश्मि प्रभा...

रश्मि प्रभा जी के बारे में जितना भी कहा जाये उतना कम है । ब्लॉगजगत के लिए वह एक बरगद के सामान है जिसकी छत्रछाया में छोटे पौधे पनपते हैं । उनकी लेखन शैली उन्हें दूसरो से अलग खड़ा करती है । भावो का अद्भुत संयोजन, शब्दों का उन्मुक्त चयन उनके लेखन कि विशेषता हैं |

नम्बर 2 पर हैं -

ब्लॉग का नाम       -  बातें अपने दिल की 
लिंक                     -  http://kalambinbaat.blogspot.in/
ब्लॉग लेखक         -  निहार रंजन 

निहार भाई के इस ब्लॉग पर इसी साल जाना हुआ । अहसासों का समंदर सा समेटे इस ब्लॉग पर कई स्तब्ध कर देने वाली पोस्ट पढ़ने को मिली जिनकी तारीफ़ में कुछ भी कहने लायक नहीं रह पाया । निहार भाई को शुभकामनायें उत्कृष्ट लेखन के लिए |

और नम्बर 1 पर हैं -

ब्लॉग का नाम       -  Amrita Tanmay
लिंक                     -  http://amritatanmay.blogspot.in
ब्लॉग लेखक         -  अमृता तन्मय

पिछली बार की तरह इस बार भी अमृता जी नम्बर एक हैं उनके लेखन के बारे में कहने के लिए कभी मेरे पास शब्द नहीं होते । साहित्यिक कोटि कि कवियत्री हैं अमृता जी जो हमारे सौभाग्य से ब्लॉगजगत में मौजूद है उन्हें पढ़ने वाले मेरी राय से इत्तेफ़ाक़ ज़रूर रखेंगे । ईश्वर से दुआ है वो यूँ ही लिखती रहे |
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इनके आलावा और भी बहुत अच्छे ब्लॉग रह गए है, जिन्हें सिर्फ टॉप 10 होने के कारण यहाँ शामिल करना संभव नहीं है | उन सब से माफ़ी चाहूँगा।


और अंत में एक बार फिर कहना चाहूँगा की ये लिस्ट सिर्फ मेरी व्यक्तिगत रूचि पर आधारित है, कृपया आप सबसे अनुरोध है इसे अन्यथा लें........ये सिर्फ मेरी एक कोशिश है जिसका पास-फेल आपने ही निकालना है आपकी प्रतिक्रिया अच्छी या बुरी जैसी भी हो, ज़रूर दें| आपकी अमूल्य राय की प्रतीक्षा में

अक्तूबर 28, 2013

लाज



इस खुबसूरत पेंटिंग को देखकर दिल से निकले कुछ ख्याल :-

नैनो में डाल के कजरा 
केशों में बाँध के गजरा,
बल खा के चली मैं आज
जग से मोहे आती है लाज,

पनघट पे खड़ा होगा बैरी
तोड़ेगा फिर गगरी मोरी,
मरती हैं जिस पर सभी गोरी 
करता है जो माखन की चोरी, 

वेणु पर लिए वो मधुर तान 
होठों पर एक मंद मुस्कान, 
झुक जाएगी पलके लाज से 
छोड़ेगा नैनो से ऐसे बान, 

मेरे इस जीवन का अंग है आधा 
वो मेरा कृष्णा , मैं उसकी राधा 

© इमरान अंसारी

अक्तूबर 21, 2013

वक़्त



उम्र गुज़रती रही ज़िन्दगी कटती रही 
हर मोड़ पर यहाँ कहानी बदलती रही, 
एक ख़ुशी की खातिर मैं तड़पता रहा 
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,

बचपन की शरारतें बस्तों में सिमट गईं
दोस्तों की वो टोलियाँ सब उचट गईं,
मैं अकेला और अकेला सिमटता रहा    
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,

जवानी की मदभरी नज़र ने प्यार सिखाया 
एक नाज़नीन ने मुझको भी दिल से लगाया, 
घनी जुल्फों का साया मुझ पर पड़ता रहा 
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,

मिला प्यार में जुदाई और बेवफाई का सिला   
सब लिया अपने हिस्से नहीं किया कोई गिला, 
एक काँटा सा मगर सदा सीने में गड़ता रहा 
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,

न जाने कितने लोग आए और चले गए 
हम तो कितनी  बार कैसे-कैसे छले गए 
किताबों की तरह मैं चेहरों को पढ़ता रहा 
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,

© इमरान अंसारी

अक्तूबर 08, 2013

दीया



आस का एक दीया
जलता है मुझमें 
विश्वास का एक दीया
जलता है मुझमें,

बारिशो ने जोर लगाया 
आधियों ने फूँक मारी 
पर इस दिए की लौ 
किसी से भी न हारी, 

लाख कोशिशें की मिलकर 
बेदर्द ज़माने वालों ने 
हर तरकीब अपनाई 
मुझको बुझाने वालों ने,

इस दीये की लौ नहीं काँपती
क्योंकि ये तुझसे लगाई है 
जब-जब भी हवा चली है 
ये और मुस्कुराई है,

आस का एक दीया
जलता है मुझमें 
विश्वास का एक दीया
जलता है मुझमें,

सितंबर 23, 2013

आँखें

एक ऐसे शख्स के लिए जिसकी आँखे कुछ कहने के लिए बेक़रार कर जाती है। ……मेरी तरफ से ये प्यार भरा तोहफा खूबसूरत आँखों की उस मल्लिका  के लिए -


लूट के ले जाती हैं दिल का चैन-ओ- करार 
जब भी शरमा के झुकती हैं तेरी आँखें,

दोनों के दिल में अरमानों का सैलाब उठता है 
जब भी मेरी आँखों से मिलती हैं तेरी आँखें,

अपने वजूद में तेरा अक्स दिखने लगता है 
जब मेरे चेहरे को तकती हैं तेरी आँखें, 

इस सूनी जिंदगी में प्यार की फुहार लाती हैं 
सहरा में बादल की तरह बरसती हैं तेरी आँखें, 

आ ! तुझे बाहों में लेकर चूम लूँ इनको 
इक उम्र से प्यार को तरसती हैं तेरी आँखें 

शराबी की तरह पीकर बहक जाता है 'इमरान'
किसी पैमाने की तरह छलकती हैं तेरी आँखें,


सितंबर 16, 2013

इंतज़ार


ज़ख्म रिसने लगते हैं
दर्द बहने लगता है 
आँखे अश्कों में 
भीग जाती हैं आज भी,
जब-जब उस शब 
का ज़िक्र आता है 
जो तेरे इंतज़ार में गुजरी थी....... 

शब भर हौले-हौले चाँद 
फलक पर सरकता रहा 
सितारे थके हुए मुसाफिरों 
की तरह आसमान पर पड़े रहे,

दूर कहीं हवा से कोई 
पत्ता खड़कता था 
तो दिल की धड़कने 
कहती थी तुम ही हो,

दरिया के बहते हुए 
पानी की आवाज़ पर 
तुम्हारे पाज़ेब की झंकार
का गुमां होने लगता,

बहकी-बहकी सी हवा
कुछ यूँ छू के गुज़र रही थी 
जैसे तुम आकर मेरे बालों में 
उँगलियाँ फेर रही हो,

इन्हीं ख्यालों में कहीं गुम 
मैं तमाम शब तेरे आने 
का इंतज़ार करता रहा,
तेरे आने के गुमाँ होते रहे पर 
तूने आने की ज़हमत न उठाई,
नहीं जानता किसने तेरे पैर बाँधे 
वो तेरी मजबूरी थी या मरज़ी, 

चाँद भी आखिर अपनी मंजिल 
पर पहुँच ही गया और 
मुसाफिर सितारे भी एक-एक 
करके अपनी राह चलते बने,

और मैं उस शब को बाँध 
गठरी कंधे पर लादकर 
छोड़ आया था शहर तेरा 
आज भी जब कभी उस 
गठरी को खोलता हूँ तो..... 

ज़ख्म रिसने लगते हैं
दर्द बहने लगता है 
आँखे अश्कों में 
भीग जाती हैं आज भी,
जब-जब उस शब 
का ज़िक्र आता है 
जो तेरे इंतज़ार में गुजरी थी....... 


सितंबर 09, 2013

बचपन



जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……

जब माँ के आँचल में छुप जाता था
जब न किसी गम से मेरा नाता था,

जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……

जब आगे निकल जाने की होड़ न थी 
जब दुनिया की ये पागल दौड़ न थी,

जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……

जब पल में रूठना और पल में मनाना था 
जब दोस्ती का खुबसूरत वो ज़माना था, 

जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे………

जब मोहल्ले से आती शिकायतें थी 
जब हुआ करती मासूम शरारतें थी, 

जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……

जब तोड़ते पेड़ों से बेर, अमरुद और आम थे 
जब रखते एक दूसरे के कैसे-कैसे नाम थे, 

जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……

जब धूप, बारिश, आँधी सब झेला करते थे 
जब सुबह से शाम तक बस खेला करते थे, 

जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे 
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……

अगस्त 31, 2013

तामीर


अपनी हसरतों के गारे से 
उम्मीदों की ईंटों की चुनाई कर 
यकीन की बुनियाद पर 'रिश्तों'
की ईमारत तामीर की थी मैंने,  

इश्क के छप्पर तले  
कई सुनहले दिन और 
कई खवाबों भरी रातें
कितने सुकूँ से बीती थी,

पर एक रात जब खुद को 
दुनिया के गम से महफूज़ समझ 
मैं गफलत की नींद सो रहा था 
तभी वक़्त का ज़लज़ला उठा 

जिसने यकीन की बुनियाद को 
जड़ से हिला कर रख दिया  
पल भर में ईमारत धूल में मिल गई 
और मैं मलबे के नीचे कहीं दब गया,

बामुश्किल बाहर आ सका, मेरे आलावा 
मेरा कुछ भी बाकी न बचा,
भीड़ अपनी-अपनी इमारतें बचाने में लगी रही 
शिकायतों और सलाहों से भरी आवाजें गूँजती  
वजह बुनियाद का कमज़ोर होना था 
या फिर कच्चे गारे की वो चुनाई 
जो एक ही बारिश में दरक गई थी,

समझाया लोगों ने कि यूँ मायूस न हो 
फिर से कोशिश करो और एक 
नई बुनियाद पर नयी ईमारत तामीर होगी,        

और मैं अपने ज़ख्मों को कुरेदता
दिल में ये सोचता रहा कि हम 
इन्हें बनाते रहेंगे और वक़्त गिराता रहेगा 
यहाँ बनी सभी कच्ची-पक्की इमारतें 
एक न एक दिन धूल में मिल जानी हैं,

तब से ये आसमान ही मेरे सर की छत है 
और ये ज़मीं मुझे अपने आगोश में लेकर 
दुनिया के हर फ़िक्र-ओ-गम से महफूज़ रखती है,
जब खोने को कुछ बाकी न बचा 
तब मुझे वो मिला जो कभी नहीं खोता…….

पिंजड़ों में परवाज़ें नहीं हुआ करती 
उसके लिए पंखों का खुलना ज़रूरी है,

अगस्त 17, 2013

पूरे चाँद की अधूरी रात



वो पूरे चाँद की एक अधूरी सी रात,
जो जिंदगी में ठहर सी गई है,  

वो दरिया का किनारा 
पूरे चाँद की नीली सी रौशनी 
जो दरिया के पानी पर हिचकोले लेती 
दूर तक तैरती चली जाती थी,

उसके साथ-साथ वक़्त 
और हम भी बहते रहे, 
इस एक आखिरी मुलाक़ात में 
एक लम्बी ख़ामोशी के दरमियाँ 
तुम्हारे होंठ कुछ कहने के लिए 
कई बार काँपते रह गए,

और मैं जान के भी अनजान 
गुमसुम सा पानी के उठते 
बुलबुलों को एकटक देखता 
दिल में उनकी लम्बी जिंदगी 
की दुआ माँगता रहा…….

हमारा प्यार भी तो ऐसा ही था,
वक़्त का तेज़ बहाव आज इसे 
अपने साथ बहा ले जाएगा,
लरज़ते हाथो से तुमने अपना 
हाथ मेरे हाथ में लेकर 
हमेशा के लिए विदा माँगी थी,

उस रोज़ तुमने कहा था 
हम इस दरिया के दोनों 
किनारे जैसे ही हैं जो...... 
एक दूसरे के बिना मुक़म्मल नहीं 
एक दूसरे से जुदा भी नहीं,
पर जिनका कभी मिलन नहीं होता, 
  
वो पूरे चाँद की एक अधूरी सी रात,
जो जिंदगी में ठहर सी गई है,  

       

अगस्त 05, 2013

करम


बहुत सख्त हो कर भी टूट जाता है दरख़्त 
बचता है वही जो अन्दर से कुछ नरम हो, 

कोई किसी का दुश्मन न रहे जहाँ में  
काश के दुनिया में एक ऐसा धरम हो, 

मिलेगी तुझे भी पाक सुराही से शराब 
शर्त है ये मगर की प्यास तेरी चरम हो,

बच जाता है वो शख्स गुनाहों से अक्सर 
बाकी जिसके अन्दर थोड़ी सी शरम हो,

अपनी तलाश निकालती है गौतम*को बाहर 
दुनिया की ऐश से भरा चाहें उसका हरम हो, 

सवालिया निशान लगते हैं तेरे वजूद पर भी 
दिखा अपना जलवा दूर दुनिया का भरम हो, 

मंजिल खुद तुम्हें ढूँढ लेगी एक रोज़  'इमरान' 
तेरे मौला का बस एक तुझ पर जो करम हो, 

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*गौतम* - यहाँ आशय गौतम बुद्ध से है । 

जुलाई 25, 2013

एकालाप

प्रिय ब्लॉगर साथियों,

आज पहली बार हिंदी में कविता लिखने का प्रयास किया है......आपके समक्ष  ये कविता आलोचना के लिए भी प्रस्तुत है आप पाठकों से (अनीता जी, अमृता जी और निहार रंजन से खास) अनुरोध है कि जो भी कमी-बेशी नज़र आए उसे निसंकोच कहें........ ये मुझे आगे अधिक अच्छा लिखने की प्रेरणा देगा.........

एक बात और है मेरे ब्लॉग के पुराने मित्र / पाठकों को मैं ये बताना चाहता हूँ कि अब इस ब्लॉग पर सिर्फ मेरी अपनी लिखी हुई रचनाएँ ही पोस्ट होती हैं जो पिछले काफी अरसे से नियमित हैं पुरानी पोस्टें जो मेरे द्वारा लिखित नहीं थी और ब्लॉग पर प्रकाशित की गईं थी वो सारी मैंने इस ब्लॉग से अब हटा दी हैं और आगे भी अच्छा या बुरा जैसा भी है जज़्बात पर सिर्फ मेरा अपना लिखा हुआ ही मिलेगा........बात इमानदारी की थी और है इसलिए आज ये सूचना आप सबको दी ......उम्मीद है कि आप लोग हमेशा कि तरह हौसला-अफज़ाई करते रहेंगे । तो पेश है ये हिंदी कविता..............
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रात्रि की ये निस्तब्ध नीरवता 
नभ में फैली चन्द्र की शीतलता,

सरिता का प्रवाह भी कैसा मंद है 
परन्तु हृदय की कली अभी बंद है,

विचारों से दूषित अभी ये मन है  
पतझड़ में घिरा अभी उपवन है,

अभी काम, क्रोध, घृणा और द्वेष है
धरता ये मन तरह-तरह के भेष है,

मित्रता, स्नेह और प्रेम के बंधन हैं 
बढ़ते पाँवों की ये भी एक जकड़न हैं, 

दूरगामी पथ पर चलता एक पथिक 
जीवन क्या है और इससे अधिक,

विस्तृत होता हर दिशा में विरोधाभास 
कैसे अनुभूत करूँ मैं भीतर की सुवास, 

क्षीण ही सही पर होता है ये आभास 
पूर्ण होगा स्वयं को पाने का प्रयास, 

क्या ये एक विक्षिप्त का प्रलाप है
अथवा ये केवल मेरा एकालाप है,