दोस्तों,
अभी कुछ ही दिन पहले मैं एक ऐसे लड़के को जानता था जिसने आत्महत्या कर ली........उसी वाकये को मैंने यहाँ शब्दों में ढालने की कोशिश की है......ये पोस्ट एक सत्य घटना से प्रेरित है और बहुत गहरे सवाल छोड़ती है.......कि आखिर क्यों ऐसा होता है ? लोग किसी के दिल से क्यों खेलते हैं ?........फिर क्या 'आत्महत्या' कोई सही उपाय है ?......मेरी नज़र में हरगिज़ नहीं.....जीवन ईश्वर का दिया एक अनमोल उपहार है उसे ख़त्म करने का उसके सिवा किसी को अधिकार नहीं......युवाओं को ये सन्देश है कि वो जीवन के महत्व को समझे.....माना प्यार बहुत कुछ है पर सब कुछ नहीं ।उम्मीद है आप लोगों को पसंद आये......अपनी निष्पक्ष राय रखे ।
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सुना, कल रात उसने आत्महत्या कर ली.........
सत्रह बरस की कच्ची उम्र में घर छोड़ा था उसने
'बड़ा आदमी' बनने के लिए वो गाँव से
'बड़े शहर' में पढ़ने को चला था
अपने सब सपने साकार करने को चला था,
नया माहौल, नए दोस्त सभी कुछ मिला
भूल गया धीरे-धीरे पीछे का सिलसिला,
देखते ही देखते 'बड़े शहर' का रंग चढ़ा
जेब में पिता के भेजे पैसे, हाथ में सिगरेट
पढ़ाई तो जैसे कहीं बहुत पीछे छूट गई,
उसे 'बड़े शहर' की एक रंगीन तितली मिली
जो उस के इर्द गिर्द मंडराती पाई जाने लगी,
तितली धीरे-धीरे फूल का रस चूसने लगी,
वो गाँव का नादाँ छोकरा इस आँख-मिचोली
को दिल से लगा तितली से प्यार करने लगा,
पर तितली कब किसी फूल पर सदा रही है,
जब फूल का रस पीकर उसका दिल भर गया
तो वो फुर्र से दूसरे फूल की और उड़ चली,
तितली जाते-जाते बहुत गहरी गंध छोड़ गई
दूसरा फूल मिलते ही उसे बिलकुल भूल गई
सब कुछ खोकर ये फूल मुरझा सा गया,
बड़े शहरों की जिंदगी का अकेलापन,
धोखा , छल, फरेब इससे अंजान था वो,
इस सब को सहने की ताब न ला सका
अकेलेपन ने इस दर्द को और बढ़ा दिया,
किसी नाज़ुक से पल में वो बहक गया
आख़िर उसने वही कदम उठा लिया
'बड़े शहर' ने एक मासूम लड़के को
फिर से निगल लिया............
सुना, कल रात उसने आत्महत्या कर ली.........