प्रिय ब्लॉगर साथियों,
आज पहली बार हिंदी में कविता लिखने का प्रयास किया है......आपके समक्ष ये कविता आलोचना के लिए भी प्रस्तुत है आप पाठकों से (अनीता जी, अमृता जी और निहार रंजन से खास) अनुरोध है कि जो भी कमी-बेशी नज़र आए उसे निसंकोच कहें........ ये मुझे आगे अधिक अच्छा लिखने की प्रेरणा देगा.........
एक बात और है मेरे ब्लॉग के पुराने मित्र / पाठकों को मैं ये बताना चाहता हूँ कि अब इस ब्लॉग पर सिर्फ मेरी अपनी लिखी हुई रचनाएँ ही पोस्ट होती हैं जो पिछले काफी अरसे से नियमित हैं पुरानी पोस्टें जो मेरे द्वारा लिखित नहीं थी और ब्लॉग पर प्रकाशित की गईं थी वो सारी मैंने इस ब्लॉग से अब हटा दी हैं और आगे भी अच्छा या बुरा जैसा भी है जज़्बात पर सिर्फ मेरा अपना लिखा हुआ ही मिलेगा........बात इमानदारी की थी और है इसलिए आज ये सूचना आप सबको दी ......उम्मीद है कि आप लोग हमेशा कि तरह हौसला-अफज़ाई करते रहेंगे । तो पेश है ये हिंदी कविता..............
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रात्रि की ये निस्तब्ध नीरवता
नभ में फैली चन्द्र की शीतलता,
सरिता का प्रवाह भी कैसा मंद है
परन्तु हृदय की कली अभी बंद है,
विचारों से दूषित अभी ये मन है
पतझड़ में घिरा अभी उपवन है,
अभी काम, क्रोध, घृणा और द्वेष है
धरता ये मन तरह-तरह के भेष है,
मित्रता, स्नेह और प्रेम के बंधन हैं
बढ़ते पाँवों की ये भी एक जकड़न हैं,
दूरगामी पथ पर चलता एक पथिक
जीवन क्या है और इससे अधिक,
विस्तृत होता हर दिशा में विरोधाभास
कैसे अनुभूत करूँ मैं भीतर की सुवास,
क्षीण ही सही पर होता है ये आभास
पूर्ण होगा स्वयं को पाने का प्रयास,
क्या ये एक विक्षिप्त का प्रलाप है
अथवा ये केवल मेरा एकालाप है,