दोस्तों आज पहली बार ज़रा 'हास्य' में कुछ लिखा है । आपके सामने पेश है.... । अच्छा- बुरा जैसा भी लगे ज़रूर बताएं। कसौटी होगी आपकी मुस्कान अगर वो चेहरे तक आ गयी है न छुपाये और हमे भी दाँत दिखाएँ ताकि हम उन्हें गिन पाएँ ...तो न झुंझलाये और लुत्फ़ उठायें :-
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घर से हम थे जैसे ही निकले
थोड़ी ही दूर पर जाकर फिसले,
देखा एक गोरा सा मुखड़ा
हाय ! चाँद का था टुकड़ा,
दिल आया उसके क़दमों के नीचे
फ़ौरन ही हम लग लिए थे पीछे,
सुर्ख होठ थे गालों पर थी लाली
पता चला थानेदार की थी साली,
लम्बे घने रेशम के जैसे थे बाल
किसी नागिन सी उसकी थी चाल,
खड़ा था वहाँ उसका भाई भी निट्ठल्ला
आ गए हम जहाँ वो था उसका मोहल्ला,
हट्टा-कट्टा मुस्टंडा सा था जवान
दंड पेलने वाला था वो पहलवान,
देखते ही कम्बख्त वो ऐसा टूट पड़ा
जिस्म के हर हिस्से से दर्द फूट पड़ा,
काँटे से इश्क़ कि राह में बो दिए गए
हाय ! हम बुरी तरह से धो दिए गए,
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ये मुस्कराहट यूँ ही बनी रहे आने वाला नया साल आप सभी के जीवन में खुशियों की बहार लेकर आये । नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनायें आप सभी को |
बहुत खूब....उम्दा....
जवाब देंहटाएंकाफी सटीक रचना....बधाई...
नयी रचना
"अनसन पर मंथन"
आभार
शुक्रिया राहुल जी |
हटाएंथानेदार की साली पढ़ के ही समझ गयी आगे क्या होने वाला है .... हा... हा... हा... अच्छी रचना....
जवाब देंहटाएंआपको भी नया साल कि बधाई और शुभकामनाएँ .....
शुक्रिया रंजना जी |
हटाएंवाह...अच्छी धुलाई हो गयी..बिन पानी बिन साबुन के..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी |
हटाएंबहुत सुंदर----
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति
नववर्ष की हार्दिक अनंत शुभकामनाऐं----
शुक्रिया खरे साहब |
हटाएंथानेदार की साली थी..... तभी आपको चेत जाना था :) चलिए उम्मीद करते हैं नए वर्ष में एक सफलता की हास्य कविता भी मिलेगी. नया साल मुबारक हो!
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया निहार भाई |
हटाएंबहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया आपका |
हटाएंअफ़सोस कि आपको धुला हुआ हम देख न पाये वर्ना हंसी से फिजा गूंज जाती.. मजा आ गया..
जवाब देंहटाएंआहहाहाहा ……… तभी ग़ालिब ने कहा है कि हुए तुम दोस्त जिसके उसका दुश्मन आसमां क्यों हो :-)
हटाएंwah ji kya bat hai .......badhai .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नवीन जी |
हटाएंशुक्रिया प्रसन्न जी |
जवाब देंहटाएंअनुभव बोलता है जी ...... तो आपको भी हम सा दोस्त भला कुछ और मिसाल क्यों दे गालिब से अलग।
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