मेरे देखते देखते ही गुज़र गया मेरा काफ़िला
मैं बिछड़ कर उससे फिर सफ़र में रह न सका,
कहती थी दुनिया जिस दौलत को जहाँ का हासिल
उसे पाने को मैं किसी गरीब का गला काट न सका,
तोड़ते रहे लोग हमेशा मेरे दिल को आईने की तरह
मगर चाहकर भी किसी का बुरा मुझसे हो न सका,
माना उसने दिया मुझे हज़ार बार राह में फरेब
पर किसी और को भी तो महबूब मैं कह न सका,
मिलती रही मुझे सज़ा यकीनन उम्र भर, क्योंकि
किसी और पर होते ज़ुल्म को मैं सह न सका,
उम्र-ए-गुरेज़ाँ से मेरी कभी न बन सकी 'इमरान'
इसने जो भी माँगा था मुझसे, वो मैं दे न सका,
बहुत उम्दा रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अमित जी ।
हटाएंवाह.....
जवाब देंहटाएंउम्र-ए-गुरेजाँ से मेरी कभी न बन सकी इमरान !
इसने जो भी माँगा था मुझसे,वो मैं दे न सका......!!
वो क्या मांग रहा था बिना सोचे दे देना था भाई !
दे ही देते....तो सारे झगड़े ही खत्म हो जाते...!
बहुत बहुत शुक्रिया दी......हाँ आखिर में तो देना ही पड़ता है....दे ही डाला :-)
हटाएंबहुत खूबसूरत ज़ज्बात.....
जवाब देंहटाएंतेरे भी.....!
मेरे भी.....!!
बहुत सुंदर जज़्बात ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ...
शुक्रिया अनुपमा जी।
हटाएंलोग तोड़ते रहे मेरे दिल को आईने की तरह
जवाब देंहटाएंमगर चाह कर भी मुझसे किसी का बुरा हो न सका ...............बहुत उम्दा ..........बहुत अच्छा लिखते हो इमरान हमेशा खुश रहो .........
ये आपकी ज़र्रानवाज़ी है बहुत शुक्रिया प्रतिभा जी ।
हटाएंवाह,,,,खूबशूरती से आपने जज्बातों को पेश करने के लिये बधाई,,,,,
जवाब देंहटाएंचलो अच्छा हुआ अपनों में कोई गैर तो निकला,
अगर होते सभी अपने तो बेगाने कहाँ जाते,,,,,,,( शकील बदायूनी )
RECENT POST:..........सागर
शुक्रिया धीरेन्द्र जी।
हटाएंउम्दा गज़ल
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीता जी।
हटाएंवाह... क्या बात है इमरान जी.... जज्बातों को गज़ल में पिरोना कोई आपसे सीखे..बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शालिनी जी....ये ज़र्रानवाज़ी है आपकी ।
हटाएंआपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (10-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
शुक्रिया वंदना जी....चर्चा मंच पर हमारी पोस्ट के लिए.....दूसरी पारी की शरुआत अच्छी रही.....दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
हटाएंतोड़ते रहे लोग हमेशा मेरे दिल को आईने की तरह
जवाब देंहटाएंमगर चाहकर भी किसी का बुरा मुझसे हो न सका,
Bahut Badhiya.....
शुक्रिया मोनिका जी।
हटाएंबहुत अच्छा लिखते हो... जज्बातों का काफ़िला दिल से दिल तक...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संध्या जी....ये ज़र्रानवाज़ी है आपकी ।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना ....मन गलत राह में चलने की इजाजत दे न सका ....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सूर्यकांत जी ।
हटाएंमाना उसने दिया मुझे हज़ार बार राह में फरेब
जवाब देंहटाएंपर किसी और को भी तो महबूब मैं कह न सका ..
यही तो सच्ची मोहब्बत है .. या कहें कि इबादत है ..
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल ..
बहुत बहुत शुक्रिया मधुरेश जी ।
हटाएंमाना उसने दिया मुझे हज़ार बार राह में फरेब
जवाब देंहटाएंपर किसी और को भी तो महबूब मैं कह न सका,
रूह की यारी एक से ही हो सकती है!!
फिर कितने भी फरेब मिले,
यारी की है तो अपना तो निभाना ही है !!
दिवाली की शुभकामनाएं !!!
बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
हटाएंईमानदारी,सुख भले न दे सके,अपने मन में अपना सम्मान बरकरार रखती है .
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने ....... शुक्रिया प्रतिभा जी ।
हटाएंगहरे जज्बात...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मंटू भाई ।
हटाएंउसने दिया फ़रेब ... मैं न भुला सका ,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
बहुत बहुत शुक्रिया रश्मि जी।
हटाएंबहुत खूबसूरती से पेश किए गए जज्बातों के लिए ... बधाई!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शालिनी जी....ये ज़र्रानवाज़ी है आपकी ।
हटाएंवाह! कमाल..लाजवाब..बेहतरीन नज़्म..दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अमृता जी.....आपको भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
हटाएंलाज़वाब गज़ल...आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएं