मन्द बहती सबा में,
दरख़्त की छाँव में
सूरज की कुछ किरने
उस पुराने पीपल के
पत्तों से छन कर तुम्हारे
चेहरे तक आ रही थी,
सर्दियों की उस अलसाई सी
सुबह की धूप के साये में
तुम्हारे रुखसार पर वो
अश्क़ बहते देखे थे मैंने
वही मेरे लिए तुम्हारा
आखिरी दीदार था,
जानता हूँ कि गुज़री
रात तुम बहुत रोईं थी
जैसे दिल का तमाम दर्द
इन आसूँओं में बहा
देना ही तुम्हारा मकसद था,
और शायद इन आसूँओं
के साथ-साथ तुमने
वो सारा प्यार भी बहा दिया
जिसके गिर्द तुमने अपनी
जिंदगी का हर सपना बुना था,
काश तुम्हारी तरह मैं भी रो पाता
तो मेरा मन भी हल्का हो जाता
अपने दिल पर जो पत्थर रखा मैंने
तमाम उम्र ढोने के लिए
उसके बोझ तले कुचल
सा गया है मेरा वजूद भी,
मैं इसलिए वहाँ से चला आया था
जानता था की अगर तुमने मेरी
आँखों की नमी देख ली होती,
तो तुम कभी मेरा दामन न छोड़तीं,
खुद को स्याह रंग कर ही
मैंने तुमको उजला किया
ताकि जीती दुनिया तक
कोई तुम्हारी तरफ एक
ऊँगली भी न उठा सके,
कहीं पाक किताबों के सफहों
में पढ़ा था मैंने की यही मुहब्बत है,
जहाँ पाना ही सब कुछ नहीं होता
जहाँ महबूब की ख़ुशी
अपनी ज़िन्दगी से बड़ी हो जाती है
हाँ, सच यही मुहब्बत है..... यही।
bahut hi umda!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अवन्ती जी ।
हटाएंजहाँ महबूब की ख़ुशी
जवाब देंहटाएंअपनी ज़िन्दगी से बड़ी हो जाती है
हाँ, सच यही मुहब्बत है..... यही,,,,अति सुन्दर पन्तियाँ,,
recent post...: अपने साये में जीने दो.
शुक्रिया धीरेन्द्र जी ।
हटाएंहां सच में यही मोहब्बत है.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अमित जी ।
हटाएंएक दर्द से गुज़रती जिंदगी का अहसास ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंपूरी कविता में दर्द ही दर्द बोलता प्रतीत होता है .....बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अंजू जी ।
हटाएं
जवाब देंहटाएंइमरान जी,बहुत लाजबाव रचना !
जो तेरे अश्को की शबनम में नहाई न होती
सबा की सीली सी रमक यूँ फिजाओं में छाई न होती.....
बहुत बहुत शुक्रिया शालिनी जी ।
हटाएंवाह ||||
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़ियाँ..
जहाँ महबूब की ख़ुशी अपनी
जिन्दगी से बड़ी हो वही सच्ची मोहब्बत है..
बहुत ही बेहतरीन रचना..
:-)
बहुत बहुत शुक्रिया रीना।
हटाएंमुहब्बत इसको कहते हैं.....!!
जवाब देंहटाएंकुछ लोग तो खुद की गलती को छुपाने के लिए
अपने महबूब को ही बदनाम कर देते हैं.....!!
उम्दा.....
उम्दा......
उम्दा........
मुहब्बत इसको कहते हैं.....
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों के लिए मुहब्बत अपने तक ही सिमट के रह जाती है
खुद की गलतियों को छुपाने के लिए महबूब पर ही इलज़ाम लगा देते हैं....!!
उम्दा.....
उम्दा.......
उम्दा........
बहुत बहुत शुक्रिया पूनम दी ।
हटाएंशब्दों की जीवंत भावनाएं.सुन्दर चित्रांकन,पोस्ट दिल को छू गयी..कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने.बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मदन जी ।
हटाएंइतनी गहन भावनाएं हैं ...और दर्द से भरपूर .....बहुत सुंदर जज़्बात .....!!बहुत ही सुंदर ...इमरान जी ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनुपमा जी ।
हटाएंकहीं पाक किताबों के सफहों
जवाब देंहटाएंमें पढ़ा था मैंने की यही मुहब्बत है,
जहाँ पाना ही सब कुछ नहीं होता
जहाँ महबूब की ख़ुशी
अपनी ज़िन्दगी से बड़ी हो जाती है
नि:शब्द करते भाव इस अभिव्यक्ति के ...
बहुत शुक्रिया सदा जी ।
हटाएंअपना दर्द ज़ाहिर ना करना हीं प्यार में सही इबादत है ...शब्द,भाव और इनका संयोजन सब उम्दा हैं।।।बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया स्वाति।
हटाएंमुहोब्बत में छुपे दर्द के एहसास को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है आपने...बहुत खूब ह्रदय स्पर्शी रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया पल्लवी जी ।
हटाएं
जवाब देंहटाएंखुद को स्याह रंग कर ही
मैंने तुमको उजला किया
ताकि जीती दुनिया तक
कोई तुम्हारी तरफ एक
ऊँगली भी न उठा सके,
mohabbat hoti hi aisi hai, uski khushi me hi apni khushi hai.
sache zazbat.
बहुत शुक्रिया आपका।
हटाएंमैं हो जाऊँ फ़ना ये मंज़ूर है मुझे!
जवाब देंहटाएंतेरी बदनामी हरगिज़ गवारा नहीं!
वैसे मियाँ! कैसा रहे के अगर दुनिया जाए तेल लेने?!
ढ़
शुक्रिया आशीष ।
हटाएंबेहतरीन एहसास उकेरे हैं आपने शब्दों में इमरान भाई.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया निरंजन जी।
हटाएंबहुत भावपूर्ण रचना है |
जवाब देंहटाएंआशा
शुक्रिया आशा जी।
हटाएंजहाँ महबूब की ख़ुशी
जवाब देंहटाएंअपनी ज़िन्दगी से बड़ी हो जाती है ..
बेहद उम्दा पोस्ट ... गुलज़ार साहब सरीखी संवेदनाओं की लय ..
बहुत शुक्रिया मधुरेश भाई ।
हटाएंमुहब्बत का दर्द क्या खूब अभिव्यक्त हुआ है! बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया देव बाबू ।
हटाएंआमीन ... वो खुश रहें ...
जवाब देंहटाएंफिर हमारी खुशी भी तो इसी में है ...