तिनका तिनका जोड़ कर बनाया था जिसे
इक पल में तुमने उस आशियाँ को आग लगाई,
दिया हर क़दम पर मुझे रुसवाइयों का तोहफा
गुनाह था मेरा इतना कि तुमसे की आशनाई,
मुद्दतों बाद सीखा था मैंने फिर से मुस्कुराना
पर तुम्हें तो मेरी ख़ुशी कभी रास ही न आई,
या मेरे खुदा ! क्या खूब है तेरी भी खुदाई
अगरचे इश्क है दुनिया में तो संग में जुदाई,
बाँधा करते थे हम तुमसे उल्फत की उम्मीदें
पर कहाँ तुमने कभी रस्म-ए-मुहब्बत निभाई,
भर सके जो मेरे इन गहरे ज़ख्मों को
ढूंढ रहा हूँ मैं हर जगह वो मसीहाई,
छोड़ दिया है अब तो मैंने खुद को उसके जिम्मे
चल रहा हूँ बेख़ौफ़, जबसे ये राह उसने सुझाई,
डूबते हुए को कोई गैर क्यूँ दे बढ़ाकर अपना हाथ
बुरे वक़्त में तो साथ छोड़ देती है अपनी भी परछाईं,
मेल में मिली टिप्पणी-
जवाब देंहटाएंप्रिय इमरान,
तुम बहुत ही उम्दा लिखते हो.कितनी भी तारीफ कि जाए कम है.
पूर्णिमा.
आपका तहेदिल से शुक्रिया पूर्णिमा जी ।
हटाएंइसमें कोई शक की गुंजाईश नही है...आप लिखते ही उम्दा हों |
हटाएंबहुत सुन्दर लिखा आपने
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया उपासना जी ।
हटाएंज़ख्मों को कौन भर सका है
जवाब देंहटाएंज़ख्म होते ही हैं कुरेदने के लिए
बहुत बहुत शुक्रिया रश्मि जी ।
हटाएंबहुत बढ़िया गज़ल..... हर शेर बहुत शानदार
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हटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया शालिनी जी ।
इमरान ...हर दिल के ज़ज्बात को लिखते हो .....बहुत खूब
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हटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया अनु जी ।
या मेरे खुदा ! क्या खूब है तेरी भी खुदाई
जवाब देंहटाएंअगरचे इश्क है दुनिया में तो संग में जुदाई,,,,,,
आपने सच कहा.बहुत उम्दा गजल,,,,,,
RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
आपका बहुत बहुत शुक्रिया धीरेन्द्र जी ।
हटाएंगहन अर्थ लिए ....बहुत खूबसूरत शायरी ...!!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया अनुपमा जी ।
हटाएंछोड़ दिया है अब तो मैंने खुद को उसके जिम्मे
जवाब देंहटाएंचल रहा हूँ बेख़ौफ़, जबसे ये राह उसने सुझाई,
kya baat kya baat kya baat ....ansari ji
in panktiyo ne mann chhu liya..bahut khoob
आपका बहुत बहुत शुक्रिया आशा जी ।
हटाएंएक और उम्दा रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया मंटू भाई ।
हटाएंexcellent
जवाब देंहटाएंआपका बहुत शुक्रिया ।
हटाएंआपके ब्लॉग पर आकर बढिया लगा आप भी पधारें पता है http://pankajkrsah.blogspot.com
जवाब देंहटाएंआपका बहुत शुक्रिया ।
हटाएंआपकी यह पोस्ट पढ़कर जाने क्यूँ वो गीत याद आया...तड़प-2 इस दिल से आह निकलती रही मुझको साज दी प्यार की ऐसा क्या गुनाह किया जो लुट गए हम तेरी मूहोब्बत में...उम्मीद है इस एक गीत से ही आप समझ गए होंगे मेरे कहने का अर्थ गहन भाव अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया पल्लवी जी ।
हटाएंबहुत ही सुंदर गजल ..........इमरान वाकई तुम्हारे ब्लॉग पर आकर जाना मुश्किल है बहुत उम्दा लिखते हो हमेशा खुश रहो :)
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया प्रतिभा जी आपका।
हटाएंमुद्दतों बाद सीखा था मैंने फिर से मुस्कुराना
जवाब देंहटाएंपर तुम्हें तो मेरी ख़ुशी कभी रास ही न आई,
Bahut..Bahut Umda
बहुत शुक्रिया मोनिका जी ।
हटाएंमुद्दतों बाद मैंने सीखा था फिर से मुस्कुराना
जवाब देंहटाएंमगर तुम्हें मेरी खुशी कभी भी रास न आई...
बहुत खूब इमरान...
सुन्दर गज़ल के लिए बधाई के हक़दार हो...!!
बहुत शुक्रिया पूनम दी ।
हटाएंलाजवाब भाई इमरान। दर्द भी है, जुनून-ए-इश्क़ भी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया मनोज जी।
हटाएंएक तरफ शिकायत है, जगत से ही नहीं परमात्मा से भी, फिर हार कर किया गया समर्पण भी है... बहुत खूब ! हर इंसान की यही कहानी है..
जवाब देंहटाएंहाँ अनीता जी कमोबेश यही है सबकी कहानी ।
हटाएंवाह ! जिसने भी ये राह सुझाई है उसको तो शुक्रिया कहना ही चाहिए..कि परछाहीं को भी मुकम्मल पोशाक मिल जाता है. उम्दा नज़्म..
जवाब देंहटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंand last line is very true