दिसंबर 30, 2013

स्माइल प्लीज़


दोस्तों आज पहली बार ज़रा 'हास्य' में कुछ लिखा है । आपके सामने पेश है.... । अच्छा- बुरा जैसा भी लगे ज़रूर बताएं।  कसौटी होगी आपकी मुस्कान अगर वो चेहरे तक आ गयी है न छुपाये और हमे भी दाँत दिखाएँ ताकि हम उन्हें गिन पाएँ ...तो न झुंझलाये और लुत्फ़ उठायें :-
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घर से हम थे जैसे ही निकले 
थोड़ी ही दूर पर जाकर फिसले,

देखा एक गोरा सा मुखड़ा 
हाय ! चाँद का था टुकड़ा,

दिल आया उसके क़दमों के नीचे
फ़ौरन ही हम लग लिए थे पीछे, 

सुर्ख होठ थे गालों पर थी लाली 
पता चला थानेदार की थी साली,

लम्बे घने रेशम के जैसे थे बाल 
किसी नागिन सी उसकी थी चाल, 

खड़ा था वहाँ उसका भाई भी निट्ठल्ला 
आ गए हम जहाँ वो था उसका मोहल्ला,

हट्टा-कट्टा मुस्टंडा सा था जवान 
दंड पेलने वाला था वो पहलवान, 

देखते ही कम्बख्त वो ऐसा टूट पड़ा 
जिस्म के हर हिस्से से दर्द फूट पड़ा,

काँटे से इश्क़ कि राह में बो दिए गए 
हाय ! हम बुरी तरह से धो दिए गए,   

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ये मुस्कराहट यूँ ही बनी रहे आने वाला नया साल आप सभी के जीवन में खुशियों की बहार लेकर आये । नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनायें आप सभी को |



18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब....उम्दा....
    काफी सटीक रचना....बधाई...
    नयी रचना
    "अनसन पर मंथन"
    आभार

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  2. थानेदार की साली पढ़ के ही समझ गयी आगे क्या होने वाला है .... हा... हा... हा... अच्छी रचना....
    आपको भी नया साल कि बधाई और शुभकामनाएँ .....

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  3. वाह...अच्छी धुलाई हो गयी..बिन पानी बिन साबुन के..

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  4. बहुत सुंदर----
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    नववर्ष की हार्दिक अनंत शुभकामनाऐं----

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  5. थानेदार की साली थी..... तभी आपको चेत जाना था :) चलिए उम्मीद करते हैं नए वर्ष में एक सफलता की हास्य कविता भी मिलेगी. नया साल मुबारक हो!

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  6. अफ़सोस कि आपको धुला हुआ हम देख न पाये वर्ना हंसी से फिजा गूंज जाती.. मजा आ गया..

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    1. आहहाहाहा ……… तभी ग़ालिब ने कहा है कि हुए तुम दोस्त जिसके उसका दुश्मन आसमां क्यों हो :-)

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  7. अनुभव बोलता है जी ...... तो आपको भी हम सा दोस्त भला कुछ और मिसाल क्यों दे गालिब से अलग।

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...