ये सोये हुए लोगों का देश है ये नींद आज की नहीं सदियों गहरी हैं ये बुद्ध जैसे लोगों के जगाये नहीं जागे.....ज़मीन पर रेंगने की आदत पड़ गयी है लोगों की ......रीड़ तो जैसे खत्म हो चुकी है.....यहाँ की जनगणना में मुर्दों की ही गिनती हो रही है बरसों से.....कहीं भी कुछ भी होता रहे तमाशा देखने में हम भारतीय सबसे आगे हैं तमाशा ख़त्म होते ही उस पर टीका-टिप्पणी करते हुए अपनी अपनी राह लगते हैं कभी सदियों में कोई जागने की कोशिश करता है तो वो दूसरे मुर्दों के द्वारा चुप कर या करा दिया जाता है......ये क्रम न जाने कब से चल रहा है और कब तक चलता रहेगा......बस हमे इंतज़ार है की कोई आएगा और सब कुछ ठीक हो जायेगा हम क्यों चिंता करें ? हमे तो सोने दो अपनी अपनी कब्रों में......क्योंकि हमारे बुज़ुर्ग कह गए हैं जगत माया है सब प्रभु की लीला है तो फिर क्या कर्म करना......जो हो रहा है उसे होने दें.....और खड़े देखते रहें और शुक्र मनाते रहे की हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ.....जब तक हम खुद अपने पैरों पर खड़े नहीं होते लोगों के सामने मदद की भीख मांगना बंद नहीं करते.....कुछ नहीं बदलने वाला यहाँ।
एक फिल्म 'क्रांतिवीर' का एक दृश्य याद आता है जब नायक नाना पाटेकर से एक बच्चा अपनी माँ को बचाने की गुहार लगाता है तब वो कहता है की कब तक ऐसे ही लोगों की मदद माँगता फिरेगा आज कोई बचा लेगा फिर कौन आएगा हर बार बचाने ? ......तब बच्चा खुद एक पत्थर उठा कर आततायी को मरता है उस बच्चे की हिम्मत से उसकी माँ भी लाठी उठा लेती है और हालात का मुकाबला करती है ।
सिर्फ और सिर्फ यही एक ज़रिया है की हमे हर अन्याय के खिलाफ खुद उठाना होगा जब एक हिम्मत करेगा तो और भी जुड़ेंगे.....पर नहीं हमे तो जन्म से बताया गया है की यदा यदा ही धर्मस्य......तो हम तो इंतज़ार कर रहे है की कब भगवान स्वयं आयें और हमे हर अन्याय से बचा लें ।
अंत में बस यही जागो जागो और अपने मसीहा आप बनो -
" कुछ न कहने से भी छीन जाता है एजाज़-ए-सुखन
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है ,
" बना लेता है मौज -ए-दिल से एक चमन अपना
वो पाबन्द-ए -कफस जो फितरतन आज़ाद होता है,
यहाँ तो मर्ज़ी का अम्ल है खुद गिरफ़्तारी
जहाँ बाजू सिमटते है वही सय्याद होता है"
किसी को पुकारने से पहले हम खुद को जगाएं ... आत्मशक्ति से बढ़कर कोई आह्वान नहीं
जवाब देंहटाएंझिंझोड़ने वाला लेख...इंतज़ार करने से कुछ नहीं होगा...खुद हीं जगना होगा...बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंएक बड़ा अच्छा शेर है। किसने लिखा याद नहीं....
जवाब देंहटाएंजौ पैदा हुए केंचुए रेंगने को
उन्हें पंख देकर उड़ाओगे कब तक?
बहुत सारगर्भित विचार...दूसरों पर निर्भर रह कर कभी कुछ नहीं होता. हमें अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होती है.
जवाब देंहटाएंअन्याय के खिलाफ खुद को आगे आना होगा,,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुती,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
हमारी अपनी जागरूकता और मनोबल ही काम आएगा.... सार्थक विचार
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंसही है हाथ पे हाथ रखे बैठकर सोचते रहने से कुछ नहीं होगा, जागना होगा... सार्थक अभिव्यक्ति... शुक्रिया
जवाब देंहटाएंहरेक को अपने भीतर ही उस परमात्मा की शक्ति को जगाना है, परमात्मा हमारे सामने भी खड़े हों तो भी कुछ नहीं कर सकते जब तक हम स्वयं उसे स्वीकार नहीं करते... मानव को परम स्वतंत्रता प्रदान की है परमात्मा ने..जोश भरती हुई सार्थक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंसंध्या जी , अनीता जी शुक्रिया आपका।
जवाब देंहटाएंआत्म बल सर्वोतम बल ....आत्म चेतना ...सबसे बड़ी जागृति .....और जब ऐसा हो जाता है ...तो ईश्वर खुद ब खुद रूबरू हो जाता है .....और ईश्वर उसी रूप में अपने कथन "यदा यदा धर्मस्य .....को चरितार्थ करता है ..../ क्यूंकि वो बाहर नही भीतर है .....और जब हम भीतर से जागरूक हो ...स्वार्थ से उपर उठ जाते हैं ...तो कोई भय ...कोई विवेचना ...नही रहती ...आत्मशक्ति प्रज्वलित हो जाती है .....// अपेक्षाओं से परे ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही जागृत लेख ...सच में कुछ कहीं सोने जैसा हो गया था ...इससे फिर से एक बल मिला है...नाना पाटेकर कि वो तीखी हंसी ....आँखों के आगे बार बार आ रही है ...और ये आह्वान भी .....शुभकामनाएँ....
बहुत बहुत शुक्रिया अंजू.....बहुत सुन्दर शब्दों में टिप्पणी दी है ।
हटाएंइंसानों और भेड़ बकरियों मैं यही मौलिक फ़र्क है ...की हमारे पास दिमाग है .....सोचने की शक्ति है ...उसे अम्ल करने का जज़्बा पैदा करने की देर है ..जिसे हम स्वयं ही कर सकते हैं.....अपनी सोच से चलिए ...जब तक दूसरों की सोच से चलेंगे...भेड़ बकरियों की तरह हांक दिए जायेंगे...इंसान बनिए...और अपने को इश्वर की श्रेष्ठ कृति कहलाने योग्य बनिए ....ज़ुल्म के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाइए ....!!!!!.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने सरस जी.....शुक्रिया आपका।
हटाएंजब तक खुद नही जागेंगे कभी नही संभलेंगे
जवाब देंहटाएंशुक्रिया वंदना जी।
हटाएंआत्म -जागृति की ललकार अंदर तक झझकोर रही है . अक्षरश : सहमती ..और नाना पाटेकर वाला दृश्य फिर जीवित हो गया..सार्थक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अमृता जी सहमति का।
हटाएंदिल की बात कह दी आपने। सचमुच अक्सर ऐसा ही लगता है।
जवाब देंहटाएं............
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शुक्रिया अर्शिया जी ब्लॉग पर आने और सहमति का।
हटाएंबहुत ठीक कहा आपने ....जो अपनी मदद खुद करता है उसकी मदद खुदा भी करता है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया उपासना जी।
हटाएंसच कहा है ... खुद ही जागना होता है .. अपनी रक्षा के लिए सबसे पहला हाथ खुद को ही उठाना होता है ... सार्थक ... ओज़स्वी लिखा है ..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया दिगंबर जी।
हटाएंबिल्कुल सही है - जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मनोज जी ।
हटाएं@ ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है ....
जवाब देंहटाएंकई बार आप इतनी गहरी बात कह जाते हैं की सोचने पर मजबूर हो जाती हूँ ....
क्या हम सारी ज़िन्दगी उनकी मदद ही करते रहे .....???
शुक्रिया हीर जी.....यही तो बात है की जागने पर ये भ्रम दूर होता है ।
हटाएंहम बहुत गिरे हुए लोग हैं। अपने गिरेबां के अलावा कहीं झांकने का हमें हक़ नहीं।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका......बिलकुल सही आपने।
हटाएंइमरान भाई ...आपका ये रूप पहली बार देखा...
जवाब देंहटाएंओज से ओतप्रोत रचना
आभार
कुछ इस तरह से जख्म हैं अब तो वतन पे आज ।
जवाब देंहटाएंगुमसुम हुआ है दर्द उठें भी तो कहाँ से ॥
देश में नैतिकता का पतन युद्ध स्तर पर हो रहा है । इमान बेचने की होड़ सी लगी है ........मानवीय मूल्यों का पलायन ही एक दिन देश के हजारों तुकडे कर देगा । अच्छी पोस्ट के लिए आदर के साथ आभार अंसारी जी ।