खुले हों जो पँख परिंदे के तो परवाज़ कहाँ रूकती है
पर हम खुद को पिंजरों में गिरफ्तार किये बैठे हैं,
वो राह तो सीधी ही मंजिल तक चली जाती है
पर हम अपने ही बुने जालों में फँसे बैठे हैं,
चढ़ी थी जहाँ हमारी मुहब्बत की दास्ताँ परवान
उन्ही राहों को आज भी राहगुज़र बनाये बैठे हैं,
जब तक बुझ नहीं जाती प्यास हमारी रूह की
तब तक हम अलख जगाये तेरे दरबार में बैठे हैं,
बख्श देगा, ए ! मेरे मौला मेरे गुनाहों को तू
इसी उम्मीद पे तेरे दर पे सर झुकाए बैठे हैं,
देगा एक दिन तू अपने जलवों का नज़ारा मुझे
बस इसी एक दुआ को हम हाथ उठाये बैठे हैं,
बख्श देगा, ए ! मेरे मौला मेरे गुनाहों को तू
जवाब देंहटाएंइसी उम्मीद पे तेरे दर पे सर झुकाए बैठे हैं,,,,,,बहुत खूब इमरान जी,,,
RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
बहुत बहुत शुक्रिया धीरेन्द्र जी।
हटाएं
जवाब देंहटाएंसर झुकाकर तूने
खुद को खुद किया है माफ़
तेरी हर दुआ कबूल
तेरे पास ही हूँ मैं ...
बहुत खूब रश्मि जी.....शुक्रिया आपका।
हटाएंबहुत खूब! सदैव की तरह लाज़वाब गज़ल...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया कैलाश जी ।
हटाएंशुक्रिया यशोदा दी हलचल में हमारी पोस्ट शामिल करने का।
जवाब देंहटाएंbahut umdaa ...behtareen ...!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनुपमा जी ।
हटाएंवो राह तो सीधी ही मंजिल तक चली जाती है
जवाब देंहटाएंपर हम अपने ही बुने जालों में फँसे बैठे हैं,
Bahut Umda...
बहुत बहुत शुक्रिया मोनिका जी ।
हटाएंउम्दा पंक्तियाँ ..
जवाब देंहटाएंरहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता..
खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता...
मर्जी बिन खुदा यारो तो जर्रा भी नहीं हिलता
खुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होता
वाह बहुत खूब....इतने सुन्दर शब्दों में टिप्पणी का आभार मदन जी ।
हटाएंवाह वाह शानदार प्रस्तुति है ………बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया वंदना जी ।
हटाएंवाह ! दिल से निकली हर दुआ सीधी वहीं पहुंच जाती है..पर जब पता चल जाये कि परवाज हो सकती है तो खुद को पिंजरों से मुक्त करना ही होगा..बल्कि हम हैं हीं मुक्त..इसका बोध मात्र ही करना है, बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनीता जी....आपको पसंद आई मेहनत सफल हुई :-)
हटाएंसभी शेर लाजवाब ... बख्श देगा ... ये शेर जैसे दिल से निकली चाह है ...
जवाब देंहटाएंबहुत उमड़ा गज़ल ...
बहुत बहुत शुक्रिया दिगंबर जी ।
हटाएंशुक्रिया आपका देव बाबू ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन
जवाब देंहटाएंशानदार गजल..
:-)
bahut sundar:-)
जवाब देंहटाएंएक उम्मीद ही तो है ..जिस पर सारी कायनात टिकी बैठी है ...सुन्दर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन .... हमेशा की तरह ..हरेक शेर पर दाद देने का जी चाहता है|
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया शालिनी जी।
हटाएंसुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट:-
मेरा काव्य-पिटारा:पढ़ना था मुझे
इस रचना के भाव अच्छे लगे।
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया अपनी अमूल्य टिप्पणी देने का ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना..बहुत ही उम्दा भाव..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अमृता जी।
हटाएंवाह ... बेहतरीन भाव लिए उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सदा जी।
हटाएंबख्श देगा, ए ! मेरे मौला मेरे गुनाहों को तू
हटाएंइसी उम्मीद पे तेरे दर पे सर झुकाए बैठे हैं,
kuch or swal liye meri new post
KYUN???
https://udaari.blogspot.in