जून 24, 2014

किनारा


न तो इस किनारे ही जीवन है 
और न ही उस किनारे पर 
अरसे से रुके हुए थमे हुए ये 
किनारे कभी कहीं नहीं पहुँचते,

दोनों ही किनारों के बीच रहकर 
नदी के प्रवाह सा बहता है जीवन 
जैसे साक्षी भाव बहता है भीतर 
सुख और दुःख दोनों से परे 

बैठ पकड़ कोई भी किनारा 
बस सड़ता जाता है जीवन 
बहता हुआ स्वीकृति के भाव से 
एक रोज़ जा मिलता है सागर में ,

© इमरान अंसारी 

6 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन का सुंदर सत्य सरलतम शब्दों में..

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  2. जीवन बहती धारा, एक रोज सागर में समाना ही उसकी नियति और लक्ष्य भी है … बहुत सुन्दर रचना … शुभकामनाएं

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  3. सागर में मिलना ही नियति है ..... सुंदर गहरे भाव

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  4. रचना पसंद आई , मंगलकामनाएं आपको !!

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  5. शाश्वत सत्य.. हमारा अहंकार ही तो किनारा है जो सागर से दूर ही करता है. जो बहने के लिए खुद को छोड़ देता है वही सागर हो जाता है.

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  6. सही कहा..जीवन तो बहने में ही है. ठहरे तो सब छूट गया.

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