जुलाई 23, 2012

मुर्दों का वतन


ये सोये हुए लोगों का देश है ये नींद आज की नहीं सदियों गहरी हैं ये बुद्ध जैसे लोगों के जगाये नहीं जागे.....ज़मीन पर रेंगने की आदत पड़ गयी है लोगों की ......रीड़ तो जैसे खत्म हो चुकी है.....यहाँ की जनगणना में मुर्दों की ही गिनती हो रही है बरसों से.....कहीं भी कुछ भी होता रहे तमाशा देखने में हम भारतीय सबसे आगे हैं तमाशा ख़त्म होते ही उस पर टीका-टिप्पणी करते हुए अपनी अपनी राह लगते हैं कभी सदियों में कोई जागने की कोशिश करता है तो वो दूसरे मुर्दों के द्वारा चुप कर या करा दिया जाता है......ये क्रम न जाने कब से चल रहा है और कब तक चलता रहेगा......बस हमे इंतज़ार है की कोई आएगा और सब कुछ ठीक हो जायेगा हम क्यों चिंता करें ? हमे तो सोने दो अपनी अपनी कब्रों में......क्योंकि हमारे बुज़ुर्ग कह गए हैं जगत माया है सब प्रभु की लीला है तो फिर क्या कर्म करना......जो हो रहा है उसे होने दें.....और खड़े देखते रहें और शुक्र मनाते रहे की हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ.....जब तक हम खुद अपने पैरों पर खड़े नहीं होते लोगों के सामने मदद की भीख मांगना बंद नहीं करते.....कुछ नहीं बदलने वाला यहाँ।

एक फिल्म 'क्रांतिवीर' का एक दृश्य याद आता है जब नायक नाना पाटेकर से एक बच्चा अपनी माँ को बचाने की गुहार लगाता है तब वो कहता है की कब तक ऐसे ही लोगों की मदद माँगता फिरेगा आज कोई बचा लेगा फिर कौन आएगा हर बार बचाने ? ......तब बच्चा खुद एक पत्थर उठा कर आततायी को मरता है उस बच्चे की हिम्मत से उसकी माँ भी लाठी उठा लेती है और हालात का मुकाबला करती है ।

सिर्फ और सिर्फ यही एक ज़रिया है की हमे हर अन्याय के खिलाफ खुद उठाना होगा जब एक हिम्मत करेगा तो और भी जुड़ेंगे.....पर नहीं हमे तो जन्म से बताया गया है की यदा यदा ही धर्मस्य......तो हम तो इंतज़ार कर रहे है की कब भगवान स्वयं आयें और हमे हर अन्याय से बचा लें ।

अंत में बस यही जागो जागो और अपने मसीहा आप बनो -

" कुछ न कहने से भी छीन जाता है एजाज़-ए-सुखन
  ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है ,

" बना लेता है मौज -ए-दिल से एक चमन अपना 
  वो पाबन्द-ए -कफस जो फितरतन आज़ाद होता है,
   यहाँ तो मर्ज़ी का अम्ल है खुद गिरफ़्तारी 
   जहाँ बाजू सिमटते है वही सय्याद होता है"