जून 16, 2012

शान-ए-लखनऊ


प्रिय ब्लॉगर साथियों,

आज की पोस्ट कुछ अलग सी है आज आपको अपने शहर लखनऊ के इमामबाड़े की सैर पर ले चलता हूँ जहाँ कुछ अपने द्वारा लिए गए फोटो और कुछ जानकारी भी आपसे शेयर करने कि कोशिश कि है उम्मीद है आपको पसंद आये । 
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रूमी दरवाज़ा, इमामबाड़े कि छत से लिया गया फोटो 


रूमी दरवाज़ा, लखनऊ 
रूमी दरवाज़ा लखनऊ के बड़े इमामबाड़े के पास बना हुआ है इसे लखनऊ का प्रवेश द्वार भी कहते है इसका निर्माण आसफउद्दौला ने सत्रहवीं शताब्दी में करवाया था....अपनी वास्तुकला में बेजोड़ है ये दरवाज़ा ।

इमामबाड़े का बहार से लिया गया फोटो 


बड़ा इमामबाड़ा, लखनऊ  
ये मुस्लिम धर्म के शिया समुदाय का एक धार्मिक स्थल है जिसमे मुहर्रम के महीने में ताजिये रखे जाते है इसमें जो खास बात है वो इसमें बना वो हॉल है जिसकी लम्बाई, ऊंचाई और चौड़ाई 50*16*15 मीटर है, जो बिना किसी पिलर या दीवार के सहारे बना है और जिसमे लोहे का इस्तेमाल नहीं हुआ है, यह विश्व के सबसे बड़े हॉलों में से है | इसका निर्माण सत्रहवीं शताब्दी में तत्कालीन अवध के नवाब आसिफ-उद-दौला ने करवाया था तब लखनऊ में अकाल पड़ा था, जिससे लोगों में भुखमरी फैली हुई थी.....उस वक़्त के अवध के लोगों की खासियत थी कि वो माँग कर नहीं खाते थे चाहें भूखे ही मर जाएँ । तब आसिफुदौल्ला ने इस इमामबाड़े का निर्माण करवाना शुरू किया ताकि लोगों को काम मिले इसका निर्माण तक़रीबन 10 सालों  तक चला । इसको रोज़ दिन में बनाया जाता था और रात में तोड़ दिया था ताकि लम्बे अरसे तक लोगों को रोज़गार मिलता रहे । आसिफ-उद-दौला के बारे में एक कहावत मशहूर है -

जिसको न दे मौला, उसको दे आसिफ-उद-दौला

इमामबाड़े कि छत से बाहर दरवाज़े का फोटो 

इमामबाड़े के हॉल में रखा एक ताज़िया 

इमामबाड़े के हॉल में रखा एक ताज़िया 

ताज़िया
मुहर्रम के महीने में हज़रत हुसैन के मकबरे के ताज़िए जुलूस में निकाले जाते हैं और जुलूस के अंत में लाकर इमामबाड़े में रख दिए जाते हैं जो कि अगले साल मुहर्रम के महीने तक वहीँ रहते हैं ।
 

भूल भुलैया का बाहरी फोटो 
भूल भुलैया, लखनऊ 
भूल भुलैया भारत के प्रसिद्द स्थलों में से एक है ये लखनऊ के बड़े इमामबाड़े के ऊपर की तीन मंजिलो में बनी है जिसमे बिना दरवाज़े की लगभग 489 गैलरियां है जो देखने में बिलकुल एक समान हैं,जिनमे से कई आगे जाकर बंद हो जाती हैं और कई उनके जैसी ही दूसरी गैलरी में मिल जाती हैं, कहा जाता है   की इसका इस्तेमाल दुश्मनों को भटकाने के लिए किया जाता था परन्तु ये बात तर्कसंगत नहीं लगती क्योंकि इमामबाड़ा एक धार्मिक स्थल है यहाँ दुश्मनों का कोई काम नहीं । वास्तव में इमामबाड़े के विशाल हॉल में कोई सपोर्ट नहीं है लेकिन यही गैलरियां छत के साथ सपोर्ट के रूप में प्रयोग  की गयी है.....वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है ये भूल भुलैया.....बिना गाइड के इसमें एक बार जाने के बाद निकलना बहुत मुश्किल है खासकर तब जब आप पहली बार इसमें जा रहे हो ।

भूल भुलैया के अन्दर मैं  

भूल भुलैया के अन्दर मेरा भांजा सचिन 

तो साथियों कैसी लगी ये सैर और ये पोस्ट......बताइयेगा ज़रूर ।