कोहरे से घिरी सर्द रातों में अक्सर
यूँ भी घर से निकलता हूँ ये सोचकर
कि मेरी ही तरह चाँद को भी
अहसास-ए-तन्हाई सताती होगी,
ठिठुरती हुई इन गलियों में
आवारा चाँदनी भटकती होगी,
गर्म दुशाले में लिपटी वो कहीं
अलाव से हाथों को सेकती
मेरी याद में तड़पती होगी,
अहसासों की गर्म तपिश के सहारे
साँसों के गर्म उजले धुएँ की रौशनी में,
धुंध को चीरता मैं चला जाता हूँ
एक सिर्फ तेरी ही तलाश में,
दूर कहीं कुछ साये से लहराते हैं
दामन का तेरे अहसास कराते है,
कहीं कोई दीप झिलमिलाता है
मिलन की एक आस जगाता है,
कहीं कुछ नज़र नहीं आता
अपने ही क़दमों कि आवाज़ें हैं,
इस सिरे से उस सिरे तक सिर्फ
सफ़ेद कोहरे कि परवाज़ें हैं,
मेरी ही तरह ये चाँद भी जलता है
कैसा मेरा और इसका रिश्ता है,
रजाइयों में दुबक जब सोता है जहाँ
आशिक़ पिया मिलन को तरसता है,
कोहरे से घिरी सर्द रातों में अक्सर
यूँ भी घर से निकलता हूँ ये सोचकर
कि मेरी ही तरह चाँद को भी
अहसास-ए-तन्हाई सताती होगी,
© इमरान अंसारी
बहुत खूब .... ये कैसी तन्हाई है चाँद की ... तारों का साथ भी जैसे होकर नहीं होता ... उनकी यादें होती हैं पर उनका साथ नहीं होता ... गहरी नज़्म प्रेम का एहसास लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया दिग्मबर जी |
हटाएंदिल की गहराइयों से निकली पंक्तियाँ...तनहाई का अहसास ही कितना कोमल है...चाँदनी जैसा...
जवाब देंहटाएंतहेदिल से शुक्रिया अनीता जी ।
हटाएंमन के भावों का सुंदर चित्रण .....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मोनिका जी ।
हटाएंगुनगुनाने का मन हो रहा है ..फिर-फिर पढ़कर.. वाह! बहुत ही बढ़िया..
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया अमृता जी |
हटाएंभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुषमा |
हटाएंसुंदर भावों की अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रंजना जी |
हटाएंआशाएं जीवन का आधार हैं ! मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंहौसलाअफ़ज़ाई का शुक्रिया सतीश जी |
हटाएंहमारे ब्लॉग कि पोस्ट को यहाँ शामिल करने का बहुत बहुत शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रसन्न जी |
जवाब देंहटाएंबेमिसाल रचना. ह्रदय में उतरते शब्द. जिस तरह पथिक तम चीरते गतिमान है ..तो लौ तो जलना ही है अँधेरे में.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया निहार भाई
हटाएंबहुत भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर...
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