दिसंबर 06, 2013

अहसास-ए-तन्हाई



कोहरे से घिरी सर्द रातों में अक्सर 
यूँ भी घर से निकलता हूँ ये सोचकर 
कि मेरी ही तरह चाँद को भी 
अहसास-ए-तन्हाई सताती होगी,

ठिठुरती हुई इन गलियों में 
आवारा चाँदनी भटकती होगी,
गर्म दुशाले में लिपटी वो कहीं 
अलाव से हाथों को सेकती
मेरी याद में तड़पती होगी,

अहसासों की गर्म तपिश के सहारे 
साँसों के गर्म उजले धुएँ की रौशनी में, 
धुंध को चीरता मैं चला जाता हूँ 
एक सिर्फ तेरी ही तलाश में, 

दूर कहीं कुछ साये से लहराते हैं  
दामन का तेरे अहसास कराते है, 
कहीं कोई दीप झिलमिलाता है 
मिलन की एक आस जगाता है,

कहीं कुछ नज़र नहीं आता 
अपने ही क़दमों कि आवाज़ें हैं, 
इस सिरे से उस सिरे तक सिर्फ
सफ़ेद कोहरे कि परवाज़ें हैं,

मेरी ही तरह ये चाँद भी जलता है 
कैसा मेरा और इसका रिश्ता है,
रजाइयों में दुबक जब सोता है जहाँ 
आशिक़ पिया मिलन को तरसता है,

कोहरे से घिरी सर्द रातों में अक्सर 
यूँ भी घर से निकलता हूँ ये सोचकर 
कि मेरी ही तरह चाँद को भी 
अहसास-ए-तन्हाई सताती होगी,

© इमरान अंसारी

19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब .... ये कैसी तन्हाई है चाँद की ... तारों का साथ भी जैसे होकर नहीं होता ... उनकी यादें होती हैं पर उनका साथ नहीं होता ... गहरी नज़्म प्रेम का एहसास लिए ...

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  2. दिल की गहराइयों से निकली पंक्तियाँ...तनहाई का अहसास ही कितना कोमल है...चाँदनी जैसा...

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  3. मन के भावों का सुंदर चित्रण .....

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  4. गुनगुनाने का मन हो रहा है ..फिर-फिर पढ़कर.. वाह! बहुत ही बढ़िया..

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  5. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...

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  6. सुंदर भावों की अभिव्यक्ति !!

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  7. आशाएं जीवन का आधार हैं ! मंगलकामनाएं आपको !

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  8. हमारे ब्लॉग कि पोस्ट को यहाँ शामिल करने का बहुत बहुत शुक्रिया |

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  9. बेमिसाल रचना. ह्रदय में उतरते शब्द. जिस तरह पथिक तम चीरते गतिमान है ..तो लौ तो जलना ही है अँधेरे में.

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  10. बहुत भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर...

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...