दिसंबर 13, 2012

नाज़ुक सा इश्क़




कच्चे रेशम के धागे जैसा
वो नाज़ुक सा इश्क़........

जो हम दोनों के दरमियाँ
आहिस्ते आहिस्ते पला था,
उसमें अपने मुस्तकबिल को
जवान होते देखा था मैंने,
रूह की पाकीज़गी से इश्क़
के बदन को सींचा था मैंने,

वो नाज़ुक परिंदे जैसा इश्क़
जिसकी रगों में मेरी वफ़ा का खून था
फुसला के ले गई एक रात वो उसे
झूठ की तलवार से उसका क़त्ल किया,
और उसकी बेवफाई के गिद्धों ने
इश्क़ के बदन को नोच-नोच के खाया,

इश्क़ की मासूम लाश को
कन्धों पर लाद कर लाया मैं
उसके ज़ख्मों के निशां
आज भी मेरे कन्धों पर हैं,
और इश्क़ की वो मासूम लाश
आज भी मेरे ज़ेहन में दफन है,

कच्चे रेशम के धागे जैसा
वो नाज़ुक सा इश्क.......

दिसंबर 01, 2012

शमां


प्रिय साथियों......इम्तिहानों का दौर है और पास भी होना है तो वक़्त की दरकार है की कुछ दिनों मेहनत का दामन थाम लिया जाए........इन्ही वजुहात  से कुछ दिनों तक आप सबसे दूर रहूँगा..........इंशाल्लाह 10 दिनों बाद मुलाक़ात होगी........आप सब अपना ख्याल रखें........खुश रहें.........खुदा हाफिज। 

पेश है ये ताज़ा ग़ज़ल....नोश फरमाएं और अपनी बेबाक राय ज़रूर ज़ाहिर करें.........


परवाने तो मिट कर पा गए इश्क़ कि मंज़िल मगर 
अपनी ही आग में खुद को जलाती रही शमां रात भर,

अश्क़ भरी आँखों से दीवारों को तकता रहा मैं 
और मेरे दामन को जलाती रही शमां रात भर,

हर बार चाहा कि उतार कर फेंक दूँ जिस्म से मगर 
लिबास तेरी यादों का जलाती रही शमां रात भर,

वो ख़त लिखे थे जो तुमने कभी मुझे प्यार में 
हर्फ़-ब-हर्फ़ उनका जलाती रही शमां रात भर,

गुज़री रात ने बदल के रख दिया मुझको 'इमरान'
मेरे माज़ी के गुनाहों को जलाती रही शमां रात भर,