मई 08, 2015

दौर-ए-गर्दिश



लगता है सुलझाने में ही बीतेगी तमाम उम्र 
उलझी है जिंदगी किसी सवालात की तरह,

ज़ाहिर करता है ऐसे पहचानता नहीं मुझे 
मिलता है हर बार पहली मुलाक़ात की तरह,

बदले-बदले से उसके तेवर नज़र आते हैं,
वो भी बदल रहा है जैसे हालात की तरह,

कर सके तो कर वफ़ा मेरी वफ़ा की बदले 
नहीं चाहिए मुहब्बत मुझे खैरात की तरह

क्यूँ दौर-ए-गर्दिश से घबरा न जाये दिल 
गम बढ़े आते है किसी बारात की तरह,

© इमरान अंसारी