दिसंबर 09, 2014

रात

दोस्तों,
आप सबको सलाम अर्ज़ है । गुस्ताखी की माफ़ी के साथ अर्ज़ है कि लाख कोशिशों के बावजूद वक़्त नहीं निकल पा रहा हूँ ताकि आप सब दोस्तों के ब्लॉग तक पहुँच सकूँ । कभी कुछ लिखने का मौका मिलता है तो बस उसे पोस्ट कर देता हूँ । इंटरनेट की सुविधा न होने की वजह से और मोबाइल पर वक़्त न मिल पाने की वजह से ऐसा हो रहा है । कोशिश रहेगी की जल्द-अज़-जल्द इस मुश्किल का कोई हल निकाल सकूँ । इस उम्मीद में कि आप सबको स्नेह और प्यार बना रहे । एक ताज़ा नज़्म पेश-ए-खिदमत है , इस उम्मीद में कि आपको पसंद आएगी :-
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हर रात जब मैं अँधेरा
ओढ़कर सोता हूँ,
चाँद दबे पाँव आकर
मेरी पेशानी को चूमता है,

रात भर आवारा हवा
शराबी की तरह बहकती है,
मदहोश करती खुशबू से
रात की रानी महकती है,

दरिया पर हिचकोले लेता
पानी सितार बजाता है,
उसी धुन पर पायल बजाती
मस्त होकर चाँदनी थिरकती है,

नीले आसमां पर ज़री से टके
ये सितारे हीरों से चमकते हैं,
अपनी खुदी से रोशन जुगनू
यहाँ से वहाँ मारे-मारे फिरते है,

देखो ज़रा तुम भी कभी,अपनी
गफलत की नींद से जागकर,
ख्वाबों से सजी इन रातों में
कैसे ये जगत सारा झूमता है,

हर रात जब मैं अँधेरा
ओढ़कर सोता हूँ,
चाँद दबे पाँव आकर
मेरी पेशानी को चूमता है,

© इमरान अंसारी

नवंबर 24, 2014

सवेरा


हर रोज़ सवेरा मेरी
दहलीज़ तक आता है
पंजों के बल खड़े होकर
नदीदे बच्चों की तरह
वो नन्हा सा सूरज
मेरी ऒर ताकता है,

किरणें गालों से मेरे
अठखेलियां करती हैं
दूर किसी शाख पर बैठी
कोई बुलबुल चहकती है,

धूप माँ के जैसे प्यार से
बालों में उँगलियाँ फेरती है
उम्मीदों से भरी अपनी
आस की झोली खोलती है
ज़िंदगी का एक और टुकड़ा
नए दिन का तोहफा देती है,

मेरे साथ-साथ ही जग सारा
अपनी नींद से जागता है
हर रोज़ सवेरा मेरी
दहलीज़ तक आता है,

© इमरान अंसारी

जुलाई 01, 2014

दुःख



हाँ, दुखी हूँ मैं 
करता हूँ इसे स्वीकार 
किया सुख को अंगीकार 
तो इसे कैसे करूँ इंकार 

उदासी की काली चादर 
ढक लेती जब मन को,
विषाद के घनीभूत क्षण 
कचोटते है तब मन को,

निकल भागने को बेचैन 
हो उठता व्याकुल मन,
स्वयं को ही शत्रु मान
आत्मघात को आतुर मन, 

मेरा ये दुःख भी तो 
सुख की ही उत्पत्ति है 
क्या पलायन करने में 
दुःख की निष्पत्ति है ?

जितना है जो संवेदनशील 
होता उसे दुःख का संज्ञान 
जड़ है जो, नहीं होता उसे 
जीवन में दुःख का भान,

दुःख को जीना ही होगा 
यदि इसके पार जाना है,
काँटों पर चलना ही होगा 
यदि विश्राम को पाना है ,

हाँ, दुखी हूँ मैं 
करता हूँ इसे स्वीकार 
किया सुख को अंगीकार 
तो इसे कैसे करूँ इंकार 

© इमरान अंसारी 


जून 24, 2014

किनारा


न तो इस किनारे ही जीवन है 
और न ही उस किनारे पर 
अरसे से रुके हुए थमे हुए ये 
किनारे कभी कहीं नहीं पहुँचते,

दोनों ही किनारों के बीच रहकर 
नदी के प्रवाह सा बहता है जीवन 
जैसे साक्षी भाव बहता है भीतर 
सुख और दुःख दोनों से परे 

बैठ पकड़ कोई भी किनारा 
बस सड़ता जाता है जीवन 
बहता हुआ स्वीकृति के भाव से 
एक रोज़ जा मिलता है सागर में ,

© इमरान अंसारी 

जून 17, 2014

पहला पैगाम



महबूब के नाम मैं 
पहला पैगाम लिखूँ, 

चूड़ियाँ वो खनकती 
पायल वो झनकती 
साँसे वो महकती 
या तेरी होठो के वो 
छलकते जाम लिखूँ, 

महबूब के नाम मैं 
पहला पैगाम लिखूँ, 

आँखों पर कहूँ ग़ज़ल 
चेहरे पर बुनूँ नज़्म
या हथेली पर सिर्फ 
एक तेरा नाम लिखूँ, 

महबूब के नाम मैं 
पहला पैगाम लिखूँ, 

हाथों में लिए हाथ 
देर तक होती बात 
कितना हंसी वो साथ 
वो गुजरी शाम लिखूँ, 

महबूब के नाम मैं 
पहला पैगाम लिखूँ, 

दिल के अरमान
इश्क़ के फरमान
नज़र वो मेहरबान 
कैसे सरेआम लिखूँ, 

महबूब के नाम मैं 
पहला पैगाम लिखूँ,

© इमरान अंसारी


जून 03, 2014

कृष्ण


"कृष्ण'' इस पौराणिक चरित्र ने हमेशा से मुझे प्रभावित किया है | कृष्ण के दर्शन में एक जो विरोधाभास है वो वाकई आकर्षण का केंद्र है एक ओर वो जहाँ रासलीला करते नज़र आते हैं तो वही दूसरी ओर गीता के उपदेश देते हुए भी | क्या वाकई जीवन इन विरोधाभासों से घिरा हुआ नहीं है ? और इसी में कमल की भांति खिलता है साक्षी .....दोनों से परे | वैसे तो अपनी इतनी हैसियत नहीं पर फिर भी ये एक छोटा सा प्रयास किया है 'कृष्ण' पर लिखने का | पास-फेल आपके हाथ है | 


साँवला सलोना सा वो 
गोकुल का एक बाँका,
वो तो हो गया उसका
जिसने उसमें झाँका, 

आकर उसके होठों पर 
वेणू भी इतराती, 
फ़िज़ा में एक सुरीली
तान गूँज जाती, 

होठों पर सजाये वो 
एक मंद मुस्कान,
आँखों में लिए मगर 
परम का ज्ञान, 

जहाँ गोपियों संग थे 
उसने खूब रास रचाये,
वहाँ सारथी बन अर्जुन को 
गीता के उपदेश भी सुनाए,

दुनिया को उसने प्रेम के 
देखो कैसे पाठ पढ़ाये,
सत्य के भी जीवन में मगर 
उसने कितने महत्त्व बताये,

डूब इसमें मिलेगा परम भाव 
बड़ा गहरा है कृष्ण का दर्शन, 
निमत्ति मात्र हो तुम यहाँ 
सुख:दुःख सब कर दो अर्पण, 

© इमरान अंसारी

मई 30, 2014

अहसास

दोस्तों,

आप सबको सलाम अर्ज़ करता हूँ और इस बात के लिए माफ़ी का तलबगार हूँ कि एक लम्बे अरसे से ब्लॉगर से गैरहाजिर रहा । कुछ मसरूफियत की वजह से गुज़रे दिनों न ही कुछ लिख पाया और न ही कुछ पढ़ पाया । आइन्दा दिनों में पूरी कोशिश रहेगी कि आप सबके ब्लॉग पर नियमित आना हो और ये निरंतरता बनी रहे | 
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अहसास कहीं हैं खोये हुए
लफ्ज़ मेरे जैसे सोये हुए,
बैठा हूँ कब से इंतज़ार में
मैं हाथ में कलम लिए हुए,

कागज़ पर नक्श बनते हैं 
और बन-बन के बिगड़ते हैं,
लाख सम्भालूँ इन्हें मगर 
फिर भी ज़ेहन से फिसलते हैं,

एक जो तेरा इशारा मिले 
तो फिर कोई ग़ज़ल लिखूँ मैं,
एक जो तेरा सहारा मिले 
तो फिर कोई नज़्म बुनूँ मैं,

© इमरान अंसारी

अप्रैल 14, 2014

दर्द भरी रात



कितनी कराहों 
चीखों में घिरी 
दर्द भरी रात,

भटक रही थी, 
सदियों से मिलन 
को उजाले से,  

स्याह अँधेरे से
दामन बचाती 
डरती दुनिया, 

कहीं सन्नाटे में  
ध्यान में लीन 
जोगी से टकराई, 

पिया दर्द सारा
उसने रात से 
नज़रें मिलाई,

साक्षात्कार के क्षण में 
पड़ा प्रेम का बीज 
उसकी कोख गरमाई,

प्रसव की असीम 
वेदना से गुज़रकर  
नन्हें सूरज को जन्म दे,  

सदियों की भटकन 
से मुक्ति पा 
दर्द की रात गुज़र गई,

© इमरान अंसारी

अप्रैल 04, 2014

मीठा सा इश्क

दोस्तों,

सबसे पहले तो आप सबसे माफ़ी चाहूँगा । पिछले दिनों अति व्यस्तता के चलते स्वयं अपने और आप सभी के ब्लॉग तक आना नहीं हो पाया | सोशल मीडिया कि तस्वीर पिछले कुछ समय से काफी बदल गई है फेसबुक जैसे त्वरित प्रतिक्रिया वाले प्लेटफार्म पर आवाजाही बढ़ी है तो ब्लॉगजगत में कमी आई है । पर इन सबके बावजूद ब्लॉग का अपना नशा है...... जो ठहराव और इत्मीनान से पोस्ट पढ़ कर ईमानदाराना टिप्पणियों से होकर लेखक और पाठक को जोड़ता है । हरसंभव प्रयास रहेगा कि जल्द ही समय निकल कर आप सबके ब्लॉग तक पहुँच सकूँ और कुछ बेहतर और नवीन पढ़ने को मिल सके । आज ये एक छोटी सी नज़्म पेश है आप सबके लिए :-


तेरे तसव्वुर में डूबी
ख़ुमार से भरी आँखे 
कुछ ख्वाब बुनती हैं, 

जिनकी तासीर लबों पर 
चाशनी सी उतरती है,

क़तरा-क़तरा रूह तक 
मीठा सा इश्क बहता है,
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इसके आलावा  'जनसेवा मेल, झाँसी' में पहली बार मेरी कृति को शामिल किया गया है । जिसके लिए दिल से शुक्रिया । अपने लिखे को प्रकाशित हुए देखने की ख़ुशी अलग ही होती है और वो भी पहली बार तो दोस्तों आप सब भी शरीक हो ।


मार्च 13, 2014

लफ्ज़



गुमशुदा से लफ्ज़ 
आते हैं ज़ेहन 
की दहलीज़ तक,

और कुछ देर 
टहलते भी है 
ख्यालों के साथ,

कागज़ पर उन्हें 
बाँधने की कोशिश में 
हाथ से फिसलते हैं,

मेरी ही तरह 
शायद लफ्ज़ भी 
बंधन से कतराते हैं,

© इमरान अंसारी

फ़रवरी 24, 2014

मुग़ल गार्डन- राष्ट्रपति भवन, दिल्ली

दोस्तों कल इतवार का दिन मुग़ल गार्डन देखने में बीता जो कि राष्ट्रपति भवन, दिल्ली में स्थित है । जो हर साल फरवरी-मार्च के मौसम में आम जनता के लिए खोला जाता है, मुग़ल गार्डन में खूबसूरत प्रकृति की अनुपम छटा देखने को मिलती है जो आपको सम्मोहित सा कर लेती है । वैसे इससे पहले भी दो बार वहाँ जाना हुआ है पर वहाँ सुरक्षा की दृष्टि से अन्दर कुछ भी ले जाना मना होता है, परन्तु इस बार मोबाइल ले जाने पर कोई पाबन्दी नहीं थी तो खाकसार ने बिना कोई मौंका गवाएं कुछ चित्र अपने मोबाइल से उतारे हैं, जो आप सबकी नज़र है | 









































फ़रवरी 11, 2014

प्यार और प्यार

दोस्तों,

आप सभी का शुक्रिया जो 'चल यार मनाएंगे' आपको पसंद आई । कुछ लोगों ने कहा और खुद मुझे भी लगा कि इसे धुन में पिरो कर गुनगुनाने लायक बनाना चाहिए । तो एक छोटा सा प्रयास किया जिसे आप यहाँ (विडियो यू ट्यूब पर ) देख सकते है |
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फरवरी का गुलाबी मौसम
फिजाओं में महकती फूलों की खुशबू  
तन-मन को गुदगुदाती बसंती बयार  
हर तरफ फैला हुआ एक खुमार
कुछ और नहीं बस प्यार और प्यार,

अनगिनत परिभाषाएं,असंख्य अभिव्यक्तियाँ
फिर भी अनकहा सा,  अनसुलझा सा 
सिर्फ मेरे और तुम्हारे अनुभव पर आधारित 
कहाँ बाँध सका कोई इसे शब्दों में 
कहाँ कह सका कोई इसे जुबां से
दिल से दिल तक बंधा एक तार 
कुछ और नहीं बस प्यार और प्यार,



जनवरी 31, 2014

चल यार मनाएंगे


मिसरा एक सूफी कव्वाली का  'चल यार मनाएं' सुना था कहीं । उसके गिर्द एक सूफियाना क़लाम बुना है, इसमें सिर्फ इस एक मिसरे के सिवा बाकि सब इस 'इमरान' ने ही कहा है | यहाँ 'यार' 'गुरु' को कहा गया है, इसे ख्याल में रखें और सब कुछ भूल कर कुछ देर को डूब जाएँ इस समंदर में |
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चल री सखी ! चल यार मनाएंगे

जिसके रंग में रंगे हम जोगी 
साथ उसके ही रास रचाएंगे, 

चल री सखी ! चल यार मनाएंगे

नज़रों ने किया घायल जिसकी  
उसको ही हम दिलदार बनाएंगे, 

चल री सखी ! चल यार मनाएंगे

आई है जिससे ज़िंदगी में बहार
    वफ़ा का उसको हार पहनाएंगे,  

चल री सखी ! चल यार मनाएंगे

छुपाने से कहीं खो न जाएँ ख़ज़ाने 
पाई दौलत दोनों हाथों से लुटाएंगे, 

चल री सखी ! चल यार मनाएंगे

जहाँ खोजी ख़ुशी वहाँ मिले गम 
 अब न यूँ बाकि उमर गवाएंगे, 

चल री सखी ! चल यार मनाएंगे

ख़ाली झोली कुछ नहीं अपने पल्ले 
रोज़ फ़क़ीर मगर त्योहार मनाएंगे, 

चल री सखी ! चल यार मनाएंगे

खुद भी जिसमें होश बाकि  न रहे 
करके ऐसा रक़्स उसको रिझाएंगे, 

चल री सखी ! चल यार मनाएंगे

जनवरी 23, 2014

अवसाद (डिप्रेशन) और उसके बाद - मेरा अनुभव



अवसाद, एक ऐसा शब्द जो भीतर तक सिहरन पैदा कर देता है । इसे न जानने वालों के लिए ये एक शब्द मात्र ही है परन्तु इसकी विभीषका से वही परिचित हो सकते हैं जिन्होंने इसे कभी जाना या भुगता है | आँकड़ों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी अवसाद का सामना करना पड़ता है । मेरे जीवन में भी ऐसा एक दौर गुज़रा है जब इस अवसाद ने मुझे सब तरफ से घेर लिया था| बाकी सबकी तरह मेरे लिए भी पहले ये एक शब्द मात्र ही था जो कहीं किसी लेख में या अख़बार में यदा-कदा पढ़ लिया करता था और ये ही सोचता था भला मैं कभी इसकी चपेट में कैसे आ सकता हूँ और कैसे लोग ऐसी हालत तक पहुँच जाते हैं जहाँ आत्महत्या तक कर सकते हैं | जी हाँ, ठीक वैसे ही जैसे आप और अन्य लोग सोचते हैं ।

आज भी हमारे समाज में अवसाद या अन्य किसी मानसिक बीमारी को गम्भीरता से नहीं लिया जाता है । लोग समाज के द्वारा उपहासित होने अथवा भय के कारण ये बीमारियाँ छुपाते रहते हैं और ये विकराल रूप धारण करती जाती है । मैंने अवसाद के बारे में बहुत सारे लेख और विचार पढ़े पर वो सब एक उपदेश की भाँति ही लगे। क्योंकि मैंने इसे जिया और भोगा है इसलिए मुझे लगा कि मुझे अपने अनुभव साझा करना चाहिए ताकि अन्य लोगों को इससे सहायता मिल सके और वो इस भयावह स्थिति से स्वयं को बाहर ला सके । यदि मेरे अनुभव से किसी एक को भी सहायता मिल सके तो ये मेरे लिए बहुत संतोष की बात होगी । 

अवसाद के कारण :- 

लोगों का अक्सर ये सोचना होता है कि अवसाद विफलताओं या निराशा से उत्पन्न होता है । काफी हद तक ऐसा है परन्तु जैसा कि 'महात्मा बुद्ध' ने कहा है कि 'तुम्हारा आज ही तुम्हारे आने वाले कल का निर्माण करता है और तुम्हारा आज ही गुज़रा हुआ कल बन जायेगा' । हम सब जीवन में सुख की ही तलाश करते हैं इस पृथ्वी पर ऐसा कोई भी व्यक्ति खोजना मुश्किल है जिसने कभी दुःख चाहा हो परन्तु फिर भी लोग दुखी है क्योंकि हर सुख अंततः दुःख में बदल जाता है । 

कई बार जीवन में कुछ ऐसे आकस्मिक परिवर्तन होते हैं जिसके लिए हम मानसिक तौर से तैयार नहीं होते वो भी अवसाद के गहन कारण बन जाते हैं । जैसे- विश्वास का टूटना, धोखा या छल-कपट, किसी प्रिय का बिछुड़ना या किसी की आकस्मिक मृत्यु, पारिवारिक कलह अथवा जीवन के भौतिक उद्देश्य में विफल होने पर एक हताशा और निराशा की जो स्थिति उत्पन्न होती है यदि व्यक्ति उससे जल्द ही न उभर पाये तो अवसाद बहुत जल्द उसे अपनी चपेट में ले लेता है | यहाँ ये कहना उपयुक्त होगा कि अलग-अलग लोगों में इसके कारण भी अलग-अलग हो सकते हैं | ये किसी समस्या अथवा परिवर्तन से हमारे जूझने की सामर्थ्य और मनोस्थिति पर निर्भर करता है । किसी के लिए कोई छोटा सा कारण भी बहुत बड़ा बन सकता है और किसी के लिए बहुत बड़ा कारण भी कुछ नहीं होता ।

अवसाद के लक्षण :-

ये सबसे ज़रूरी है कि व्यक्ति या उसके प्रिय वक़्त रहते अवसाद के लक्षणों को पहचान लें ताकि इसकी उचित रोकथाम की जा सके । अवसाद के लक्षण भी अलग-अलग लोगों में अलग-अलग हो सकते हैं । इसके लक्षण सबसे पहले मानसिक तौर पर प्रकट होते है जिनमें निराशा और हताशा कि स्थिति होना,  किसी भी काम में मन न लगना (जिन कामों में बहुत रूचि थी उनसे भी मन उचाट होने लगना), किसी का साथ अच्छा न लगना या किसी से बात करने का मन न होना, घबराहट और बेचैनी का अनुभव होना, एक खालीपन सा लगना, अयोग्यता और लाचारी का भाव आना, रोज़मर्रा के कामों में अरुची, याद्दाश्त में कमी होना आदि । 

मानसिक आवेग के कुछ क्षणों में इतनी अधिक उत्कंठा होती है जैसे एक गहरे अँधेरे कुएँ में गिरने जैसा भ्रम होता है । रोगी को ऐसा लगता है जैसे उसका मन और दिमाग उसके काबू से बाहर जा चुके है वो खुद को असहाय महसूस करता है । ऐसी ही भयावह परिस्थिति में रोगी के मन में आत्महत्या तक का विचार पनपने लगता है और मानसिक आवेग के चलते वो ऐसा कदम उठा भी सकता है |

मानसिक लक्षणो के साथ-साथ अवसाद शरीर भी बहुत प्रभाव डालता है, जिसमे सबसे पहले रोगी कि नींद प्रभावित होती है इसमें कई बार तो नींद आती ही नहीं, कई बार बिलकुल सुबह आँख खुल जाती है और कई बार रात में बार-बार नींद उचटती है । नींद के बाधित होने से शरीर में और भी प्रभाव होने लगते हैं जैसे शरीर में थकान और ऊर्जा की कमी, भोजन से अरुचि, वज़न का कम होना, हमेशा रहने वाला सरदर्द, बदन और पेट में दर्द रहना आदि । 

अवसाद मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूपों में व्यक्ति को पूरी तरह से तोड़ देता है इसलिए इसके लक्षणो को तुरंत पहचान कर इसका निदान करने में जुट जाना चाहिए ।

अवसाद का निदान और बचाव :-

अपने अनुभव के आधार पर मैं ये कह सकता हूँ कि जब व्यक्ति अवसाद के शिकंजे में फंसा होता है तो निराशा कि स्थिति इतनी अधिक प्रबल होती है कि उसे लगता है कि वो कभी बाहर नहीं आ सकेगा इससे परन्तु अपने ही अनुभव से मैं ये भी कहता हूँ कि हर रात के बाद सवेरा होता है और व्यक्ति अवसाद के अँधेरे से निकलकर जीवन के प्रकाश में फिर से खड़ा हो सकता है, होता है ।     

सबसे पहले तो ये जानने का प्रयास करना चाहिए कि अवसाद का कारण क्या है क्योंकि हमारे मन के गहरे अचेतन हिस्से में कहीं कुछ ऐसा दबा होता है जो अवसाद के क्षणों में उभरता है और एक दर्द और दुःख देता है । कई बार रोगी खुद नहीं जान पाते कि आखिर क्या बात या क्या कारण है अवसाद का या जानते होने पर भी वो कह नहीं पाते किसी से, ऐसे में किसी विश्वासपात्र और करीबी दोस्त या रिश्तेदार को अपने मन कि सारी बातें कहें अगर कोई भी न हो तो मनोचिकित्सक से परामर्श करें अगर वहाँ जाने में भी असमर्थ हैं तो एक डायरी में अपने मन में आने वाली हर बात लिखे फिर वो चाहें कितनी ही बुरी या भली हो, हाँ, एक बार लिखने के बाद उसे दुबारा पढ़े नहीं पन्ने को फाड़ दे या जला दें । जब भी मन में तनाव सा हो इस क्रिया को दोहराएँ इससे मन में भरे तनाव को बाहर निकलने का रास्ता मिलेगा |      

मन में चल रहे विचारों से लड़ने की, उन्हें हटाने की या उनसे भागने की कोशिश न करें, विचारों को जैसे वो आते हैं आने दें | हालाँकि ऐसा करना अवसाद की स्थिति में बहुत अधिक मुश्किल होता है । विचारों का एक अत्यंत तीव्र प्रवाह व्यक्ति को अपने साथ बहा ले जाता है । ऐसी स्थिति में यदि रोने का , चिल्लाने का मन हो तो उस प्रवाह को बाधित न करे । जितना अधिक विरोध होगा विचारों का उनका आवेग उतना ही अधिक बढ़ता रहेगा । यदि आँसू निकलते हैं तो उन्हें निकलने दें , चीखने या चिल्लाने की क्रिया को भी मत दबाएँ इससे यदि भीतर कहीं क्रोध दबा हुआ है तो उसे बाहर निकलने का रास्ता मिल जायेगा ।

हालाँकि अवसाद कि स्थिति में व्यक्ति अधिक से अधिक अकेला रहना चाहता है और ये बात सदा उसे गहन अंधकार की तरफ ले जाती है । जितना हो सके लोगों के साथ मिलने और बैठने का प्रयास करें, चाहें कितनी ही नीरसता लगे या बातें करने में दिल न लगे तब भी अकेले होने से बचें । अपनी रूचि के अनुसार जिस भी कार्य में आपको आनंद आता रहा हो उसमे डूबने का प्रयास करे, व्यस्त रहें |

सुबह या शाम को जब भी वक़्त मिले किसी पार्क, बाग़ या जहाँ भी प्राकृतिक वातावरण उपलब्ध हो वहाँ जाकर थोड़ी देर टहलें या विश्राम करें । पेड़-पौधे, फूलों और पशु पक्षियों को देखें । इससे आपको जीवन के बहुआयामी होने का आभास मिलता रहेगा । बच्चों के साथ समय व्यतीत करने का प्रयास करें, उनके साथ खेलें उनसे बातें करें ।

जीवन के प्रति सकरात्मक दृष्टीकोण रखने का प्रयास करे, जीवन के परिवर्तन को स्वीकार करें इसके लक्ष्य को समझने की चेष्टा करें इसके लिए सबसे बेहतर होता है ध्यान करना । अपने धर्म के अनुसार ध्यान करने का प्रयास करे | ईश्वर की सत्ता पर विश्वास रखे और स्वयं को समर्पित करते हुए उसके निर्णय को स्वीकार करें । ध्यान करना अवसाद के लिए सबसे अच्छा इलाज है, इससे आपका जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदलता है और आपका अपने मस्तिष्क और शरीर पर नियंत्रण बढ़ता है | 

मानसिक लक्षणो के साथ यदि शरीर पर भी असर हो रहा है तो बिना देर किये तुरन्त मनोचिकित्सक की सलाह के अनुसार दवाइयाँ लें । बाज़ार में अवसाद निरोधी दवाएँ उपलब्ध हैं जिनसे अवसाद की अवस्था में रोगी को बहुत अधिक आराम मिलता है । हाँ, ये ज़रूर याद रखें कि बिना डॉक्टर की सलाह के न तो दवाई शुरू करें और न ही बंद । याद रखें कि शरीर में प्रकट होने वाले लक्षण वैसे तो मानसिक आवेग के कारण ही शुरू होते हैं पर ये दवाइयों से बहुत हद तक नियंत्रित किये जा सकते हैं |

ये आशा न करें कि आप एक पल या एक दिन में इससे बाहर आ जायेंगे । समय सबसे बड़ा चिकित्सक है, धीरे-धीरे हालत में सुधार होता चला जायेगा और एक दिन आप खुद महसूस करेंगे कि आप इस दलदल से बाहर आ गए हैं । 

उन लोगों के लिए जिनका कोई दोस्त, रिश्तेदार या अन्य कोई प्रिय अवसाद से ग्रस्त हो तो उनके साथ धैर्य से पेश आये, उनकी बाते सुनें और हो सके तो प्रतिक्रिया न दें । कई बार व्यक्ति बहुत चिड़चिड़ा हो सकता है, कई बार आपके बाते करने पर वो सिर्फ मौन भी रह सकता है । उसे उपदेश देने कि बजाय उसके मन की बात बाहर निकालने का, उसके साथ रहने का प्रयास करे । यक़ीन करे सिर्फ आपका साथ भी उसे बहुत दिलासा देगा और उसकी सहायता करेगा उसे ये प्रतीत होगा कि वो अकेला नहीं है |

और अंत में ये कहूँगा कि जीवन ईश्वर का दिया एक अनमोल उपहार है । यहाँ सुख है तो दुःख भी है इंसान वही है जो दोनों को ही स्वीकार करे । जीवन प्रतिपल बदलता है और कई बार दुःख हमे तराशने के लिए और हमे नई राहें दिखाने के लिए भी जीवन में आता है । 

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ये पोस्ट मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है । पाठकों को सलाह दी जाती है कि वो पेशेवर मनोचिकित्सक या डॉक्टरी सलाह ज़रूर लें |  यदि आप में से कोई या आपका कोई प्रिय इस समस्या से जूझ रहे हैं तो मैं यथासम्भव सहायता के लिए हमेशा प्रस्तुत हूँ । आप मेरे ई-मेल-  imran241084@gmail.com पर मुझसे संपर्क कर सकते हैं | 

© इमरान अंसारी

जनवरी 18, 2014

समंदर



समंदर के किनारे
दूर तक फैली रेत पर 
ताड़ के पेड़ से पीठ टिका 
मैं  देखता रहा सोचता रहा
विराट में छुपे कितने संकेत, 

हज़ारो मील दूसरे किनारे पर 
अपने अस्तित्व को समेटे 
गहराई में कहीं विलीन होते
पिघलते हुए लाल सूरज को, 

बच्चों का पेट भरने निकले
दिन भर की मशक्कत से लौटते
घोसलों तक पहुँचने की जल्दी में 
परवाज़ें भरते हुए परिंदों को,

समंदर के बीचो-बीच से कहीं
जोश और तरंग से उठती
सब बहा ले जाने की उम्मीद में 
साहिल पर दम तोड़ती लहरों को,   

रेत में भी जड़ों को समेटे 
गीली हवाओं में सिहरते 
आनंद से झूमते और गाते 
स्वयं में ही लीन इन पेड़ों को,

कहीं जन्म-जन्म के वादे करते 
एक दूसरे में सिमटते हुए लोग  
तो कहीं अकेले बैठे आँसू बहाते
सूनी आँखों से तकते  हुए लोग,

समंदर के किनारे
दूर तक फैली रेत पर 
ताड़ के पेड़ से पीठ टिका 
मैं  देखता रहा सोचता रहा
विराट में छुपे कितने संकेत, 

© इमरान अंसारी