अप्रैल 14, 2014

दर्द भरी रात



कितनी कराहों 
चीखों में घिरी 
दर्द भरी रात,

भटक रही थी, 
सदियों से मिलन 
को उजाले से,  

स्याह अँधेरे से
दामन बचाती 
डरती दुनिया, 

कहीं सन्नाटे में  
ध्यान में लीन 
जोगी से टकराई, 

पिया दर्द सारा
उसने रात से 
नज़रें मिलाई,

साक्षात्कार के क्षण में 
पड़ा प्रेम का बीज 
उसकी कोख गरमाई,

प्रसव की असीम 
वेदना से गुज़रकर  
नन्हें सूरज को जन्म दे,  

सदियों की भटकन 
से मुक्ति पा 
दर्द की रात गुज़र गई,

© इमरान अंसारी

10 टिप्‍पणियां:

  1. प्रसव की असीम
    वेदना से गुज़र कर
    नन्हे सूरज को जन्म दे ..... अद्भुत ... बहुत ही सुन्दर व ह्रदय स्पर्शी !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही लाजवाब भाव, शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब .. दर्द कि गहरी काली रात गुजरने पे ही किरण फूटती है ...
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं
  4. वेदना की मुखर अभिव्यक्ति ...अति प्रभावी

    जवाब देंहटाएं
  5. आप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया |

    जवाब देंहटाएं
  6. कोई रात ऐसे भी गुज़रती है. अति सुन्दर रचना.

    जवाब देंहटाएं

जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...