कितनी कराहों
चीखों में घिरी
दर्द भरी रात,
भटक रही थी,
सदियों से मिलन
को उजाले से,
स्याह अँधेरे से
दामन बचाती
डरती दुनिया,
कहीं सन्नाटे में
ध्यान में लीन
जोगी से टकराई,
पिया दर्द सारा
उसने रात से
नज़रें मिलाई,
साक्षात्कार के क्षण में
पड़ा प्रेम का बीज
उसकी कोख गरमाई,
प्रसव की असीम
वेदना से गुज़रकर
नन्हें सूरज को जन्म दे,
सदियों की भटकन
से मुक्ति पा
दर्द की रात गुज़र गई,
© इमरान अंसारी
प्रसव की असीम
जवाब देंहटाएंवेदना से गुज़र कर
नन्हे सूरज को जन्म दे ..... अद्भुत ... बहुत ही सुन्दर व ह्रदय स्पर्शी !
लाजबाब अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंलाजवाब......
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब भाव, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .. दर्द कि गहरी काली रात गुजरने पे ही किरण फूटती है ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
लाजबाब उम्दा प्रस्तुति ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - आज चली कुछ ऐसी बातें.
वेदना की मुखर अभिव्यक्ति ...अति प्रभावी
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंकोई रात ऐसे भी गुज़रती है. अति सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar...wah
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