दिसंबर 30, 2013

स्माइल प्लीज़


दोस्तों आज पहली बार ज़रा 'हास्य' में कुछ लिखा है । आपके सामने पेश है.... । अच्छा- बुरा जैसा भी लगे ज़रूर बताएं।  कसौटी होगी आपकी मुस्कान अगर वो चेहरे तक आ गयी है न छुपाये और हमे भी दाँत दिखाएँ ताकि हम उन्हें गिन पाएँ ...तो न झुंझलाये और लुत्फ़ उठायें :-
--------------------------------------------------------


घर से हम थे जैसे ही निकले 
थोड़ी ही दूर पर जाकर फिसले,

देखा एक गोरा सा मुखड़ा 
हाय ! चाँद का था टुकड़ा,

दिल आया उसके क़दमों के नीचे
फ़ौरन ही हम लग लिए थे पीछे, 

सुर्ख होठ थे गालों पर थी लाली 
पता चला थानेदार की थी साली,

लम्बे घने रेशम के जैसे थे बाल 
किसी नागिन सी उसकी थी चाल, 

खड़ा था वहाँ उसका भाई भी निट्ठल्ला 
आ गए हम जहाँ वो था उसका मोहल्ला,

हट्टा-कट्टा मुस्टंडा सा था जवान 
दंड पेलने वाला था वो पहलवान, 

देखते ही कम्बख्त वो ऐसा टूट पड़ा 
जिस्म के हर हिस्से से दर्द फूट पड़ा,

काँटे से इश्क़ कि राह में बो दिए गए 
हाय ! हम बुरी तरह से धो दिए गए,   

-------------------------------------------------

ये मुस्कराहट यूँ ही बनी रहे आने वाला नया साल आप सभी के जीवन में खुशियों की बहार लेकर आये । नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनायें आप सभी को |



दिसंबर 23, 2013

शक्ति



आँखों में कितने ख्वाब मचलते थे 
हसरतों के दिल में चिराग जलते थे,

झक सफ़ेद एक घोड़े पर सवार 
ख्वाबो का वो सब्ज़ शहज़ादा 
एक रोज़ कहीं दूर से आएगा 
अपने साथ मुझे भी ले जायेगा,

हाय ! कितनी नादाँ थी कितनी भोली मैं 
कच्ची उम्र में बिठा दी गयी डोली में मैं,
बैठी शर्म से सकुचाई फूलों की सेज पर
आते ही रखी थी उसने बोतल मेज पर,

लड़खड़ा रहे थे कदम मुँह से छूटता भभूका था 
खसोटा ज़ालिम ने जैसे भेड़िया कोई भूखा था,
अब तो यही स्वर्ग और यही देवता था मेरा 
यही संस्कृति थी और यही अब धर्म था मेरा,

रीती-रिवाज़ों के बंधन में जकड़ी गई 
कैसे-कैसे और कहाँ-कहाँ मैं पकड़ी गई,
जिसके लिए रखती रही करवा-चौथ
उसने सीने पर बिठा दी लाकर सौत,

मासूम बच्चों की आँखों को देखती रही 
इनका क्या दोष है बस ये सोचती रही, 
हर ज़ुल्म इसलिए चुपचाप सहती रही
दरिया में तिनके कि तरह मैं बहती रही,

पूछती रब से तूने तो जग को बनाया 
इस जग ने तो जननी को ही भुलाया,
सुन कर बात मेरी वो धीरे से मुस्काया 
बोला तूने भी तो अपनी शक्ति को भुलाया,

मत भूल तुझे भी मैंने वो सब दिया है
जिस पर इतराता ये पुरुष जिया है,
देख उठा कर शास्त्रो और पुराणो को 
मारा है शक्ति ने कितने हैवानों को,

भस्म हुए है जिस पर तूने नज़र डाली है 
सिर्फ कोमलांगी नहीं तुझमे भी काली है,
झुक जाती सबके आगे तुझमे वो भक्ति है
और दुष्टों का संहार करे तुझमे वो शक्ति है,  
     
© इमरान अंसारी    

दिसंबर 17, 2013

दीवानी



छलक न पड़े इनमें से दर्द कहीं इसलिए
आँखों को काजल से सजाकर रखती थी,

मिलते ही चला न जाये दिल का करार 
इसलिए नज़रों को झुकाकर रखती थी, 

पहचान न ले कहीं चेहरे से ये ज़माने वाले  
प्यार को मेरे सीने में दबाकर रखती थी,

नहीं कर पाई होठों से इक़रार इश्क़ का मगर 
तस्वीर मेरी किताबों में छुपाकर रखती थी,

अजीब दीवानी सी लड़की थी वो 'इमरान'
इंतज़ार में तेरे पलकें बिछाकर रखती थी,


दिसंबर 06, 2013

अहसास-ए-तन्हाई



कोहरे से घिरी सर्द रातों में अक्सर 
यूँ भी घर से निकलता हूँ ये सोचकर 
कि मेरी ही तरह चाँद को भी 
अहसास-ए-तन्हाई सताती होगी,

ठिठुरती हुई इन गलियों में 
आवारा चाँदनी भटकती होगी,
गर्म दुशाले में लिपटी वो कहीं 
अलाव से हाथों को सेकती
मेरी याद में तड़पती होगी,

अहसासों की गर्म तपिश के सहारे 
साँसों के गर्म उजले धुएँ की रौशनी में, 
धुंध को चीरता मैं चला जाता हूँ 
एक सिर्फ तेरी ही तलाश में, 

दूर कहीं कुछ साये से लहराते हैं  
दामन का तेरे अहसास कराते है, 
कहीं कोई दीप झिलमिलाता है 
मिलन की एक आस जगाता है,

कहीं कुछ नज़र नहीं आता 
अपने ही क़दमों कि आवाज़ें हैं, 
इस सिरे से उस सिरे तक सिर्फ
सफ़ेद कोहरे कि परवाज़ें हैं,

मेरी ही तरह ये चाँद भी जलता है 
कैसा मेरा और इसका रिश्ता है,
रजाइयों में दुबक जब सोता है जहाँ 
आशिक़ पिया मिलन को तरसता है,

कोहरे से घिरी सर्द रातों में अक्सर 
यूँ भी घर से निकलता हूँ ये सोचकर 
कि मेरी ही तरह चाँद को भी 
अहसास-ए-तन्हाई सताती होगी,

© इमरान अंसारी