अक्तूबर 28, 2013

लाज



इस खुबसूरत पेंटिंग को देखकर दिल से निकले कुछ ख्याल :-

नैनो में डाल के कजरा 
केशों में बाँध के गजरा,
बल खा के चली मैं आज
जग से मोहे आती है लाज,

पनघट पे खड़ा होगा बैरी
तोड़ेगा फिर गगरी मोरी,
मरती हैं जिस पर सभी गोरी 
करता है जो माखन की चोरी, 

वेणु पर लिए वो मधुर तान 
होठों पर एक मंद मुस्कान, 
झुक जाएगी पलके लाज से 
छोड़ेगा नैनो से ऐसे बान, 

मेरे इस जीवन का अंग है आधा 
वो मेरा कृष्णा , मैं उसकी राधा 

© इमरान अंसारी

अक्तूबर 21, 2013

वक़्त



उम्र गुज़रती रही ज़िन्दगी कटती रही 
हर मोड़ पर यहाँ कहानी बदलती रही, 
एक ख़ुशी की खातिर मैं तड़पता रहा 
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,

बचपन की शरारतें बस्तों में सिमट गईं
दोस्तों की वो टोलियाँ सब उचट गईं,
मैं अकेला और अकेला सिमटता रहा    
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,

जवानी की मदभरी नज़र ने प्यार सिखाया 
एक नाज़नीन ने मुझको भी दिल से लगाया, 
घनी जुल्फों का साया मुझ पर पड़ता रहा 
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,

मिला प्यार में जुदाई और बेवफाई का सिला   
सब लिया अपने हिस्से नहीं किया कोई गिला, 
एक काँटा सा मगर सदा सीने में गड़ता रहा 
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,

न जाने कितने लोग आए और चले गए 
हम तो कितनी  बार कैसे-कैसे छले गए 
किताबों की तरह मैं चेहरों को पढ़ता रहा 
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,

© इमरान अंसारी

अक्तूबर 08, 2013

दीया



आस का एक दीया
जलता है मुझमें 
विश्वास का एक दीया
जलता है मुझमें,

बारिशो ने जोर लगाया 
आधियों ने फूँक मारी 
पर इस दिए की लौ 
किसी से भी न हारी, 

लाख कोशिशें की मिलकर 
बेदर्द ज़माने वालों ने 
हर तरकीब अपनाई 
मुझको बुझाने वालों ने,

इस दीये की लौ नहीं काँपती
क्योंकि ये तुझसे लगाई है 
जब-जब भी हवा चली है 
ये और मुस्कुराई है,

आस का एक दीया
जलता है मुझमें 
विश्वास का एक दीया
जलता है मुझमें,