उम्र गुज़रती रही ज़िन्दगी कटती रही
हर मोड़ पर यहाँ कहानी बदलती रही,
एक ख़ुशी की खातिर मैं तड़पता रहा
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,
बचपन की शरारतें बस्तों में सिमट गईं
दोस्तों की वो टोलियाँ सब उचट गईं,
मैं अकेला और अकेला सिमटता रहा
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,
जवानी की मदभरी नज़र ने प्यार सिखाया
एक नाज़नीन ने मुझको भी दिल से लगाया,
घनी जुल्फों का साया मुझ पर पड़ता रहा
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,
मिला प्यार में जुदाई और बेवफाई का सिला
सब लिया अपने हिस्से नहीं किया कोई गिला,
एक काँटा सा मगर सदा सीने में गड़ता रहा
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,
न जाने कितने लोग आए और चले गए
हम तो कितनी बार कैसे-कैसे छले गए
किताबों की तरह मैं चेहरों को पढ़ता रहा
और वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ता रहा,
© इमरान अंसारी
वाह ! बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति ,,,
जवाब देंहटाएंकाव्यान्जलि: हमने कितना प्यार किया था.
गुज़रते वक़्त की चाल और हमारे एहसास ......सुंदर चित्रांकन ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना इमरान भाई. सच में वक़्त पंख लगा भागता रहता है और हम असहाय देखते रहते है. एकाकीपन का सही ज़िक्र किया है. कदम बढाते हम आगे बढ़ते हैं और सबकी राहें अलग हो जाती है. और तन्हाई भरने को रह जाता है बस अपने रुचियों का साथ.
जवाब देंहटाएंसमय के साथ उपजे कुछ अहसास ..... बहुत सुंदर लिखा है ....
जवाब देंहटाएंवक्त तो ना दिखाये वो कम है दोस्त ...फिर भी इस जहान में वक्त और ज़िंदगी से अच्छा कोई गुरु नहीं...:)
जवाब देंहटाएंदिल को कचोट रहा है ये उम्दा नज़्म..यक़ीनन ये उड़ता हुआ वक्त सब कुछ अपने संग उड़ा कर ले जाता है और हम देखते रह जाते हैं..
जवाब देंहटाएंयही जिंदगी है …समय कभी नहीं रुकता . ....
जवाब देंहटाएंभाईदूज पर बहना का हक़ है। .... कुछ लेने का तो ये पोस्ट ले गई। ....
जवाब देंहटाएंभाई का क्या फर्ज (*_*)
फर्ज को क़र्ज़ नहीं रहने देना
मंगलवार 29/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
मंगलवार 05/11/2013 को
जवाब देंहटाएंअहह...वक्त पंख लगाकर उड़ता जाता है ....
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