अप्रैल 14, 2014

दर्द भरी रात



कितनी कराहों 
चीखों में घिरी 
दर्द भरी रात,

भटक रही थी, 
सदियों से मिलन 
को उजाले से,  

स्याह अँधेरे से
दामन बचाती 
डरती दुनिया, 

कहीं सन्नाटे में  
ध्यान में लीन 
जोगी से टकराई, 

पिया दर्द सारा
उसने रात से 
नज़रें मिलाई,

साक्षात्कार के क्षण में 
पड़ा प्रेम का बीज 
उसकी कोख गरमाई,

प्रसव की असीम 
वेदना से गुज़रकर  
नन्हें सूरज को जन्म दे,  

सदियों की भटकन 
से मुक्ति पा 
दर्द की रात गुज़र गई,

© इमरान अंसारी

अप्रैल 04, 2014

मीठा सा इश्क

दोस्तों,

सबसे पहले तो आप सबसे माफ़ी चाहूँगा । पिछले दिनों अति व्यस्तता के चलते स्वयं अपने और आप सभी के ब्लॉग तक आना नहीं हो पाया | सोशल मीडिया कि तस्वीर पिछले कुछ समय से काफी बदल गई है फेसबुक जैसे त्वरित प्रतिक्रिया वाले प्लेटफार्म पर आवाजाही बढ़ी है तो ब्लॉगजगत में कमी आई है । पर इन सबके बावजूद ब्लॉग का अपना नशा है...... जो ठहराव और इत्मीनान से पोस्ट पढ़ कर ईमानदाराना टिप्पणियों से होकर लेखक और पाठक को जोड़ता है । हरसंभव प्रयास रहेगा कि जल्द ही समय निकल कर आप सबके ब्लॉग तक पहुँच सकूँ और कुछ बेहतर और नवीन पढ़ने को मिल सके । आज ये एक छोटी सी नज़्म पेश है आप सबके लिए :-


तेरे तसव्वुर में डूबी
ख़ुमार से भरी आँखे 
कुछ ख्वाब बुनती हैं, 

जिनकी तासीर लबों पर 
चाशनी सी उतरती है,

क़तरा-क़तरा रूह तक 
मीठा सा इश्क बहता है,
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इसके आलावा  'जनसेवा मेल, झाँसी' में पहली बार मेरी कृति को शामिल किया गया है । जिसके लिए दिल से शुक्रिया । अपने लिखे को प्रकाशित हुए देखने की ख़ुशी अलग ही होती है और वो भी पहली बार तो दोस्तों आप सब भी शरीक हो ।