जून 24, 2014

किनारा


न तो इस किनारे ही जीवन है 
और न ही उस किनारे पर 
अरसे से रुके हुए थमे हुए ये 
किनारे कभी कहीं नहीं पहुँचते,

दोनों ही किनारों के बीच रहकर 
नदी के प्रवाह सा बहता है जीवन 
जैसे साक्षी भाव बहता है भीतर 
सुख और दुःख दोनों से परे 

बैठ पकड़ कोई भी किनारा 
बस सड़ता जाता है जीवन 
बहता हुआ स्वीकृति के भाव से 
एक रोज़ जा मिलता है सागर में ,

© इमरान अंसारी 

जून 17, 2014

पहला पैगाम



महबूब के नाम मैं 
पहला पैगाम लिखूँ, 

चूड़ियाँ वो खनकती 
पायल वो झनकती 
साँसे वो महकती 
या तेरी होठो के वो 
छलकते जाम लिखूँ, 

महबूब के नाम मैं 
पहला पैगाम लिखूँ, 

आँखों पर कहूँ ग़ज़ल 
चेहरे पर बुनूँ नज़्म
या हथेली पर सिर्फ 
एक तेरा नाम लिखूँ, 

महबूब के नाम मैं 
पहला पैगाम लिखूँ, 

हाथों में लिए हाथ 
देर तक होती बात 
कितना हंसी वो साथ 
वो गुजरी शाम लिखूँ, 

महबूब के नाम मैं 
पहला पैगाम लिखूँ, 

दिल के अरमान
इश्क़ के फरमान
नज़र वो मेहरबान 
कैसे सरेआम लिखूँ, 

महबूब के नाम मैं 
पहला पैगाम लिखूँ,

© इमरान अंसारी


जून 03, 2014

कृष्ण


"कृष्ण'' इस पौराणिक चरित्र ने हमेशा से मुझे प्रभावित किया है | कृष्ण के दर्शन में एक जो विरोधाभास है वो वाकई आकर्षण का केंद्र है एक ओर वो जहाँ रासलीला करते नज़र आते हैं तो वही दूसरी ओर गीता के उपदेश देते हुए भी | क्या वाकई जीवन इन विरोधाभासों से घिरा हुआ नहीं है ? और इसी में कमल की भांति खिलता है साक्षी .....दोनों से परे | वैसे तो अपनी इतनी हैसियत नहीं पर फिर भी ये एक छोटा सा प्रयास किया है 'कृष्ण' पर लिखने का | पास-फेल आपके हाथ है | 


साँवला सलोना सा वो 
गोकुल का एक बाँका,
वो तो हो गया उसका
जिसने उसमें झाँका, 

आकर उसके होठों पर 
वेणू भी इतराती, 
फ़िज़ा में एक सुरीली
तान गूँज जाती, 

होठों पर सजाये वो 
एक मंद मुस्कान,
आँखों में लिए मगर 
परम का ज्ञान, 

जहाँ गोपियों संग थे 
उसने खूब रास रचाये,
वहाँ सारथी बन अर्जुन को 
गीता के उपदेश भी सुनाए,

दुनिया को उसने प्रेम के 
देखो कैसे पाठ पढ़ाये,
सत्य के भी जीवन में मगर 
उसने कितने महत्त्व बताये,

डूब इसमें मिलेगा परम भाव 
बड़ा गहरा है कृष्ण का दर्शन, 
निमत्ति मात्र हो तुम यहाँ 
सुख:दुःख सब कर दो अर्पण, 

© इमरान अंसारी