"कृष्ण'' इस पौराणिक चरित्र ने हमेशा से मुझे प्रभावित किया है | कृष्ण के दर्शन में एक जो विरोधाभास है वो वाकई आकर्षण का केंद्र है एक ओर वो जहाँ रासलीला करते नज़र आते हैं तो वही दूसरी ओर गीता के उपदेश देते हुए भी | क्या वाकई जीवन इन विरोधाभासों से घिरा हुआ नहीं है ? और इसी में कमल की भांति खिलता है साक्षी .....दोनों से परे | वैसे तो अपनी इतनी हैसियत नहीं पर फिर भी ये एक छोटा सा प्रयास किया है 'कृष्ण' पर लिखने का | पास-फेल आपके हाथ है |
साँवला सलोना सा वो
गोकुल का एक बाँका,
वो तो हो गया उसका
जिसने उसमें झाँका,
आकर उसके होठों पर
वेणू भी इतराती,
फ़िज़ा में एक सुरीली
तान गूँज जाती,
होठों पर सजाये वो
एक मंद मुस्कान,
आँखों में लिए मगर
परम का ज्ञान,
जहाँ गोपियों संग थे
उसने खूब रास रचाये,
वहाँ सारथी बन अर्जुन को
गीता के उपदेश भी सुनाए,
दुनिया को उसने प्रेम के
देखो कैसे पाठ पढ़ाये,
सत्य के भी जीवन में मगर
उसने कितने महत्त्व बताये,
डूब इसमें मिलेगा परम भाव
बड़ा गहरा है कृष्ण का दर्शन,
निमत्ति मात्र हो तुम यहाँ
सुख:दुःख सब कर दो अर्पण,
© इमरान अंसारी
अति उत्तम भाव
जवाब देंहटाएंदिख रहा है ...इस बाँका का उस बाँका के लिए प्रेम .
जवाब देंहटाएंकृष्ण की बातें कहते सुनते..कृष्ण की चर्चा करते करते उससे लगाव हो जाना स्वाभाविक है..सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव लिए कृष्ण को शब्दों में भावपूर्ण अभिव्यक्ति .... !!
जवाब देंहटाएंनिमत्ति मात्र हो तुम यहाँ
जवाब देंहटाएंसुख:दुःख सब कर दो अर्पण,
... बहुत ही अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्यक्ति में
बधाई इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये
उत्कृष्ट भाव......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंपूर्ण परिभाषा दी है आपने. पूरी तरह पास हुए हैं आप इमरान भाई (१००/१००).
जवाब देंहटाएंआप सभी कद्रदानों का दिल से शुक्रिया |
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