सितंबर 27, 2012

जोगी



जबसे देखी है झलक मैंने तेरी
बन गया हूँ तब से मैं तेरा जोगी,

तेरे रहम का हूँ तलबगार कबसे
बख्श देगा तो रहमत तेरी होगी,

पा लूँगा जब खुद में तेरा वजूद
हाथों में तब क़ायनात सारी होगी  

लगा है जबसे ये इश्क़ वाला रोग
बीमार हूँ तेरा, दुनिया कहे रोगी,

कैसे झेलूँगा तेरे जलवों की ताब
जब तुझसे मुलाक़ात मेरी होगी,

झुका दी है अब तेरे क़दमों में ख़ुदी 
कभी तो बारिश तेरे नूर की होगी,  

नहीं भटकोगे तुम कभी रास्ता
    साथ तुम्हारे उसकी रहनुमाई होगी,  

सितंबर 19, 2012

परवाज़



खुले हों जो पँख परिंदे के तो परवाज़ कहाँ रूकती है 
पर हम खुद को पिंजरों में गिरफ्तार किये बैठे हैं,

वो राह तो सीधी ही मंजिल तक चली जाती है 
पर हम अपने ही बुने जालों में फँसे बैठे हैं,

चढ़ी थी जहाँ हमारी मुहब्बत की दास्ताँ परवान 
उन्ही राहों को आज भी राहगुज़र बनाये बैठे हैं,

जब तक बुझ नहीं जाती प्यास हमारी रूह की 
तब तक हम अलख जगाये तेरे दरबार में बैठे हैं,

बख्श देगा, ए ! मेरे मौला मेरे गुनाहों को तू 
इसी उम्मीद पे तेरे दर पे सर झुकाए बैठे हैं,

देगा एक दिन तू अपने जलवों का नज़ारा मुझे 
बस इसी एक दुआ को हम हाथ उठाये बैठे हैं,