अपनी हसरतों के गारे से
उम्मीदों की ईंटों की चुनाई कर
यकीन की बुनियाद पर 'रिश्तों'
की ईमारत तामीर की थी मैंने,
इश्क के छप्पर तले
कई सुनहले दिन और
कई खवाबों भरी रातें
कितने सुकूँ से बीती थी,
पर एक रात जब खुद को
दुनिया के गम से महफूज़ समझ
मैं गफलत की नींद सो रहा था
तभी वक़्त का ज़लज़ला उठा
जिसने यकीन की बुनियाद को
जड़ से हिला कर रख दिया
पल भर में ईमारत धूल में मिल गई
और मैं मलबे के नीचे कहीं दब गया,
बामुश्किल बाहर आ सका, मेरे आलावा
मेरा कुछ भी बाकी न बचा,
भीड़ अपनी-अपनी इमारतें बचाने में लगी रही
शिकायतों और सलाहों से भरी आवाजें गूँजती
वजह बुनियाद का कमज़ोर होना था
या फिर कच्चे गारे की वो चुनाई
जो एक ही बारिश में दरक गई थी,
समझाया लोगों ने कि यूँ मायूस न हो
फिर से कोशिश करो और एक
नई बुनियाद पर नयी ईमारत तामीर होगी,
और मैं अपने ज़ख्मों को कुरेदता
दिल में ये सोचता रहा कि हम
इन्हें बनाते रहेंगे और वक़्त गिराता रहेगा
यहाँ बनी सभी कच्ची-पक्की इमारतें
एक न एक दिन धूल में मिल जानी हैं,
तब से ये आसमान ही मेरे सर की छत है
और ये ज़मीं मुझे अपने आगोश में लेकर
दुनिया के हर फ़िक्र-ओ-गम से महफूज़ रखती है,
जब खोने को कुछ बाकी न बचा
तब मुझे वो मिला जो कभी नहीं खोता…….
पिंजड़ों में परवाज़ें नहीं हुआ करती
उसके लिए पंखों का खुलना ज़रूरी है,
बहुत बढ़िया उम्दा प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : फूल बिछा न सको
वाह इमरान भाई, बहुत अच्छा लिखा है. आसमानी छत के हकीक़त को जानते हुए भी इंसान छोड़ कहाँ अपनी ख्वाहिशों के उड़ान लेने से. बिना तदबीर किये चुपचाप बैठे रहे, ये भी तो मुमकिन हो नहीं पाता.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया निहार भाई
हटाएंबेहद सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शौर्य जी
हटाएंबहुत बेहतरीन लिखा .....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रंजना जी
हटाएंगफलत की नींद में जो सोया उसने ही कुछ खोया..फिर जब खोने को कुछ नहीं होता तब ही वह असली धन भी मिलता है..बहुत सुंदर भाव !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनीता जी
हटाएंसच कहा पंखों का खुलना ... आकाश का होना जरूरी है भरपूर उड़ान के लिए ... पर भी आशियाना तो जरूरी है सुकून के लिए ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति है ...
बहुत बहुत शुक्रिया दिगंबर जी
हटाएंभावपूर्ण ....समय रहते ये समझा जाय, ज़रूरी है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मोनिका जी
हटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट..इसके लिए...''हैट्स ऑफ''
जवाब देंहटाएंज़हेनसीब :-))
हटाएंदुनियां यही है ..
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना !
मिर्जा गालिब याद आये...
जवाब देंहटाएंरहिए अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो।
हम-सुखन कोई न हो और हम-जबाँ कोई न हो।।
बे-दरो दीवार-सा इक घर बनाया चाहिए।
कोई हमसाया न हो और पासबाँ कोई न हो।।
पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार।
और अगर मर जाइए तो नौहाख्वाँ कोई न हो।।