जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……
जब माँ के आँचल में छुप जाता था
जब न किसी गम से मेरा नाता था,
जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……
जब आगे निकल जाने की होड़ न थी
जब दुनिया की ये पागल दौड़ न थी,
जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……
जब पल में रूठना और पल में मनाना था
जब दोस्ती का खुबसूरत वो ज़माना था,
जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे………
जब मोहल्ले से आती शिकायतें थी
जब हुआ करती मासूम शरारतें थी,
जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……
जब तोड़ते पेड़ों से बेर, अमरुद और आम थे
जब रखते एक दूसरे के कैसे-कैसे नाम थे,
जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……
जब धूप, बारिश, आँधी सब झेला करते थे
जब सुबह से शाम तक बस खेला करते थे,
जिंदगी का वो हसीं दौर लौटा दे
ए ! वक़्त मुझे मेरा बचपन लौटा दे……
जब धूप बारिश आंधी सब झेला करते थे
जवाब देंहटाएंजब सुबह से शाम तक बस खेला करते थे.....!!!
पढ़ते-पढ़ते बचपन के बीते दिन याद आने लगे...बहुत सुंदर रचना..
अब तो बच्चों का जैसे बचपन ही ख़त्म हो गया है लगता है...
शुक्रिया अदिति जी। ....सही कहा आपने अब तो बच्चों पर इतना बोझ डाल दिया गया है कि बचपन कहीं उसके नीचे दब गया है |
हटाएंबचपन की शरारतों से भरी खुबसूरत रचना !!
जवाब देंहटाएंसच बचपन के वो दिन अब सिर्फ ख्वाबों में.… काश ! इसे लौटाया जा सकता .......
बचपन -- यादों में ही सही बार-बार सुखद अहसास बिखेर कर हमारे वजूद को सहला जाता है.. उम्दा ..
जवाब देंहटाएंरचना सक्षम है बचपन की उन गलियों में वापस लौटाने के लिए जहां की यादें हमेशा बसी रहती हैं दिल में ... वो सुख के पल हमेशा साथ रहते हैं ... बहुत ही उम्दा ...
जवाब देंहटाएंजब धूप, बारिश, आँधी सब झेला करते थे
जवाब देंहटाएंजब सुबह से शाम तक बस खेला करते थे,
वाह क्या बात है !!!बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति,,
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !
RECENT POST : समझ में आया बापू .
बचपन हर कोई लौटा लाना चाहता है पर ये कहाँ मुमकिन है .... सुंदर निश्छल भाव
जवाब देंहटाएंजी मोनिका जी पूर्ण तरह से मुमकिन तो नहीं परन्तु इंसान के लिए इतना तो है ही कि उसके अंदर जो छिपा, दबा या कभी कभी रूठ हुआ बचपन है वो बाहर निकाल सके , थोड़ा माइंड सेट की बात है , इसलिए, कभी कभी जिम्मेदारियों, एट्टीट्यूड , ईगो सब हटा कर देश और दुनिया से कुछ समय के लिए संपर्क काट दें और बच्चो के बीच बच्चो की तरह मस्त हो जाए , भूल जाए में कौन हूँ, इसके सिवाय की में वही हु जो कुछ साल पहले खुद से बिछड़ गया था, आज मिला हूँ और अक्सर मिलता रहूँगा
हटाएंummId hai aap ko bansoi kaa arth samjh aa gayaa hogaa.
जवाब देंहटाएंVinnie,
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काश यह इच्छा पूरी हो जाए ..
जवाब देंहटाएंबचपन के दिन भी क्या दिन थे...सुंदर भावमाला...
जवाब देंहटाएंबहुत ही मासूम इल्तिजा ...कोई भला कैसे ठुकरा सकता है
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना...
आप की ये रचना आने वाले शुकरवार यानी 13 सितंबर 2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... ताकि आप की ये रचना अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है... आप इस हलचल में शामिल अन्य रचनाओं पर भी अपनी दृष्टि डालें...इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है...
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हम आज भूल रहे हैं अपनी संस्कृति सभ्यता व अपना गौरवमयी इतिहास आप ही लिखिये हमारा अतीत के माध्यम से। ध्यान रहे रचना में किसी धर्म पर कटाक्ष नही होना चाहिये।
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हटाएंए काश कि ऐसा हो पाता....
जवाब देंहटाएंहम लौट के फिर से जा सकते...
उस मोड़...गली...चौराहे पर....
जब हाथ पकड़ कर दौड़े थे...
कुछ दूर गए...फिर बैठ गए...
हम-तुम...तुम-हम....
खूबसूरत.....
बहुत बढ़िया लिखा है इमरान भाई आपने. सच तो यही है कि जीवन के हर बढ़ते साल के साथ जटिलताएं और भी बढती जाती है. सब कुछ अगर मिल जाता है तो जीवन की उन्मुक्तता कभी फिर से मिल नहीं पाती है. ऐसे में बचपन की कल्पना मात्र ही सुखद ऐसे दे जाता है. अति उत्तम.
जवाब देंहटाएंइमरान जी .. आपने तो हर दिल की तमन्ना को अपने शब्द दे दिए ... बेहतरीन रचना !
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंकाश। ...... ऐसा होता...... इस भाव को गढ़ने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदोबारा बचपन की जीने की इच्छा सबको होती है --हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंlatest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
आप सभी लोगों का तहेदिल से शुक्रिया हौसलाफजाई करने का |
जवाब देंहटाएंएक बचपन का जमाना था, जिस में खुशियों का खजाना था..चाहत चाँद को पाने की थी, पर दिल तितली का दिवाना था..खबर ना थी कुछ सुबहा की, ना शाम का ठिकाना था..थक कर आना स्कूल से, पर खेलने भी जाना था..माँ की कहानी थी, परीयों का फसाना था..बारीश में कागज की नाव थी, हर मौसम सुहाना था..हर खेल में साथी थे, हर रिश्ता निभाना था..गम की जुबान ना होती थी, ना जख्मों का पैमाना था..रोने की वजह ना थी, ना हँसने का बहाना था..क्युँ हो गऐे हम इतने बडे, इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था
जवाब देंहटाएंमाना बचपन अच्छा था पर इतना भी अच्छा ना था। माँ पिता टीचर बड़ा भाई । फर्ज़ का कर्ज़ चुकाना था । आज्ञान अंधेरा ज्यादा था । आगे भी मुझको जाना था । कदम कदम पर हिलकी आती । बड़ा ही कठिन जमाना था ॥
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना.. पढ़कर मैं भी अपने बचपन में लौट आया हूँ.. 💁
जवाब देंहटाएंइस रचना पर तहे-दिल से शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंसंदीप ठाकरे, बुरहानपुर
इस रचना पर तहे-दिल से शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंThank You so much for this wonderful creation .....
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर....!
जवाब देंहटाएंWow
जवाब देंहटाएंBachpan ka samay hamare upar ma-baap-guru ka karj he..ab to karj ka farj ada karne ka vakt he....
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