दिसंबर 09, 2014

रात

दोस्तों,
आप सबको सलाम अर्ज़ है । गुस्ताखी की माफ़ी के साथ अर्ज़ है कि लाख कोशिशों के बावजूद वक़्त नहीं निकल पा रहा हूँ ताकि आप सब दोस्तों के ब्लॉग तक पहुँच सकूँ । कभी कुछ लिखने का मौका मिलता है तो बस उसे पोस्ट कर देता हूँ । इंटरनेट की सुविधा न होने की वजह से और मोबाइल पर वक़्त न मिल पाने की वजह से ऐसा हो रहा है । कोशिश रहेगी की जल्द-अज़-जल्द इस मुश्किल का कोई हल निकाल सकूँ । इस उम्मीद में कि आप सबको स्नेह और प्यार बना रहे । एक ताज़ा नज़्म पेश-ए-खिदमत है , इस उम्मीद में कि आपको पसंद आएगी :-
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हर रात जब मैं अँधेरा
ओढ़कर सोता हूँ,
चाँद दबे पाँव आकर
मेरी पेशानी को चूमता है,

रात भर आवारा हवा
शराबी की तरह बहकती है,
मदहोश करती खुशबू से
रात की रानी महकती है,

दरिया पर हिचकोले लेता
पानी सितार बजाता है,
उसी धुन पर पायल बजाती
मस्त होकर चाँदनी थिरकती है,

नीले आसमां पर ज़री से टके
ये सितारे हीरों से चमकते हैं,
अपनी खुदी से रोशन जुगनू
यहाँ से वहाँ मारे-मारे फिरते है,

देखो ज़रा तुम भी कभी,अपनी
गफलत की नींद से जागकर,
ख्वाबों से सजी इन रातों में
कैसे ये जगत सारा झूमता है,

हर रात जब मैं अँधेरा
ओढ़कर सोता हूँ,
चाँद दबे पाँव आकर
मेरी पेशानी को चूमता है,

© इमरान अंसारी