न तो इस किनारे ही जीवन है
और न ही उस किनारे पर
अरसे से रुके हुए थमे हुए ये
किनारे कभी कहीं नहीं पहुँचते,
दोनों ही किनारों के बीच रहकर
नदी के प्रवाह सा बहता है जीवन
जैसे साक्षी भाव बहता है भीतर
सुख और दुःख दोनों से परे
बैठ पकड़ कोई भी किनारा
बस सड़ता जाता है जीवन
बहता हुआ स्वीकृति के भाव से
एक रोज़ जा मिलता है सागर में ,
© इमरान अंसारी
जीवन का सुंदर सत्य सरलतम शब्दों में..
जवाब देंहटाएंजीवन बहती धारा, एक रोज सागर में समाना ही उसकी नियति और लक्ष्य भी है … बहुत सुन्दर रचना … शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसागर में मिलना ही नियति है ..... सुंदर गहरे भाव
जवाब देंहटाएंरचना पसंद आई , मंगलकामनाएं आपको !!
जवाब देंहटाएंशाश्वत सत्य.. हमारा अहंकार ही तो किनारा है जो सागर से दूर ही करता है. जो बहने के लिए खुद को छोड़ देता है वही सागर हो जाता है.
जवाब देंहटाएंसही कहा..जीवन तो बहने में ही है. ठहरे तो सब छूट गया.
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