जुलाई 01, 2014

दुःख



हाँ, दुखी हूँ मैं 
करता हूँ इसे स्वीकार 
किया सुख को अंगीकार 
तो इसे कैसे करूँ इंकार 

उदासी की काली चादर 
ढक लेती जब मन को,
विषाद के घनीभूत क्षण 
कचोटते है तब मन को,

निकल भागने को बेचैन 
हो उठता व्याकुल मन,
स्वयं को ही शत्रु मान
आत्मघात को आतुर मन, 

मेरा ये दुःख भी तो 
सुख की ही उत्पत्ति है 
क्या पलायन करने में 
दुःख की निष्पत्ति है ?

जितना है जो संवेदनशील 
होता उसे दुःख का संज्ञान 
जड़ है जो, नहीं होता उसे 
जीवन में दुःख का भान,

दुःख को जीना ही होगा 
यदि इसके पार जाना है,
काँटों पर चलना ही होगा 
यदि विश्राम को पाना है ,

हाँ, दुखी हूँ मैं 
करता हूँ इसे स्वीकार 
किया सुख को अंगीकार 
तो इसे कैसे करूँ इंकार 

© इमरान अंसारी 


20 टिप्‍पणियां:

  1. मर्मस्पर्शी..... संवेदनशील भाव

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  2. इस दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा
    जीवन है गर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा....:-)

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  3. जितना है जो संवेदनशील
    होता उसे दुःख का संज्ञान
    जड़ है जो, नहीं होता उसे
    जीवन में दुःख का भान,
    बिलकुल सही कहा

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  4. जब दुख को अंगी कार किया तब सुखों को अंगीकार करना अधिकार बनता है...
    सुन्दर अभिव्यक्ति !!

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  5. गहन भाव ....बहुत सुंदर रचना ॥!!

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  6. सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं..एक चाहिए तो दूसरा साथ आएगा ही..सुख की कामना ही दुःख का कारण है...जीवन का सत्य दिखाती सुंदर पंक्तियाँ

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  7. बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@दर्द दिलों के
    नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं

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  8. सुख दुःख जो भी आये उसे अंगीकार कर लेना चाह्हिये ... क्योंकि सुख या है तो दुःख भी आएगा ...
    मर्म्स्पर्शीय ...

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  9. कलम की धार पैनी होती जा रही है . भाव अपने धारा में बहा रहा है.. यूँ ही लिखते रहे.. शुभकामनाएं..

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  10. सुन्दर प्रस्तुति

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  11. सुख स्वीकार किया है तो दुःख से परहेज़ क्यों...यह समय चक्र के दो पहिये हैं एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  12. संवेदनाओं से जो दुःख जन्मता है, उसी से वास्तविक ज्ञान की अभिवृद्धि भी होती है, और इंसान ख़ुदा के और करीब महसूस करता है. आशा है आपका ये दुःख भी उसी मार्ग पर होगा। परन्तु इसके साथ आपके सुख/आनंद की भी कामना करता हूँ. अच्छी अभिव्यक्ति है इमरान भाई!

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  13. बेहद सवेदंशील रचना

    दुख को जीना ही होगा
    यदि इसके पार हैं जाना

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  14. यही तो दो किनारे है जिसमे बीच से हर जीवन को चलना है. दोनों अनुभवों से सीख लेते हुए जीवन जीते जाना ही सच्चा सुख देता है. अच्छी लगी आपकी यह कविता .

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  15. दुःख को जीना ही होगा. ……… best

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  16. जीवन है तो ये भी सही...मगर .चिरकालिक तो कुछ भी नहीं जीवन में. समय का यह चक्र जब गुजरता है तो फिर वही भाग आता है जिससे इस जीवन की संपूर्णता है. बहुत बढ़िया लिखा है इमरान भाई आपने.

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  17. बेनामीफ़रवरी 10, 2016

    उम्दा और सारगर्भित रचनाएँ

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...