बहुत सख्त हो कर भी टूट जाता है दरख़्त
बचता है वही जो अन्दर से कुछ नरम हो,
कोई किसी का दुश्मन न रहे जहाँ में
काश के दुनिया में एक ऐसा धरम हो,
मिलेगी तुझे भी पाक सुराही से शराब
शर्त है ये मगर की प्यास तेरी चरम हो,
बच जाता है वो शख्स गुनाहों से अक्सर
बाकी जिसके अन्दर थोड़ी सी शरम हो,
अपनी तलाश निकालती है गौतम*को बाहर
दुनिया की ऐश से भरा चाहें उसका हरम हो,
सवालिया निशान लगते हैं तेरे वजूद पर भी
दिखा अपना जलवा दूर दुनिया का भरम हो,
मंजिल खुद तुम्हें ढूँढ लेगी एक रोज़ 'इमरान'
तेरे मौला का बस एक तुझ पर जो करम हो,
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*गौतम* - यहाँ आशय गौतम बुद्ध से है ।
बहुत सार्थक और ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कैलाश जी
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आशा जी |
हटाएंशर्म के मारे अब बचे कितने !
जवाब देंहटाएंग़ज़ल अच्छी लगी !
कम ही सही मगर हैं तो अभी भी ……शुक्रिया ।
हटाएंखूबसूरत रचना।..बधाई।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया देव बाबू |
हटाएं"रोशनी गर खुदा को हो मंजूर
जवाब देंहटाएंआंधीयों में चिराग जलते है"
खुदा गवाह है... :))
वाह पल्लवी जी …शुक्रिया |
हटाएंबहुत खुबसूरत ग़ज़ल !!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रंजना जी |
हटाएंवाह बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शौर्य जी |
हटाएंबहुत ही सुन्दर और सच्चे शब्द इमरान भाई. बेहतरीन संदेशप्रद ग़ज़ल बनी है.
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया निहार भाई |
हटाएंबहुत सुंदर जज्बात..उसी का करम चाहिए और बाकी सब हो जाता है..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी |
हटाएंशुक्रिया यशोदा जी हमारे ब्लॉग की पोस्ट यहाँ शामिल करने का |
जवाब देंहटाएंखुद पाने की ललक ऐसी ही होती है..... सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंवाह ... बेहतरीन गज़ल ....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... हर शेर अपने मतलब को स्थापित कर जाता है ... स्पष्ट बात को रखता हुआ हर अशआर ... मज़ा आ गया इमरान जी ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर और नेक अहसासात !!!
जवाब देंहटाएंईद का इससे खुबसूरत तोहफ़ा और क्या हो सकता है ? शुक्रिया कुबूल करें... मुबारबाद भी..
जवाब देंहटाएंबच जाता है वो शख्स गुनाहों से अक्सर
जवाब देंहटाएंबाकी जिसके अंदर थोड़ी सी शर्म हो....!
बहुत सही कहा...
लेकिन इंसान बाज नहीं आता...!
न गुनाहों से तौबा...
न बची है शर्म....!
तो क्या करें हम.....??