दोस्तों,
आप सबको सलाम अर्ज़ करता हूँ और इस बात के लिए माफ़ी का तलबगार हूँ कि एक लम्बे अरसे से ब्लॉगर से गैरहाजिर रहा । कुछ मसरूफियत की वजह से गुज़रे दिनों न ही कुछ लिख पाया और न ही कुछ पढ़ पाया । आइन्दा दिनों में पूरी कोशिश रहेगी कि आप सबके ब्लॉग पर नियमित आना हो और ये निरंतरता बनी रहे |
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अहसास कहीं हैं खोये हुए
लफ्ज़ मेरे जैसे सोये हुए,
बैठा हूँ कब से इंतज़ार में
मैं हाथ में कलम लिए हुए,
लफ्ज़ मेरे जैसे सोये हुए,
बैठा हूँ कब से इंतज़ार में
मैं हाथ में कलम लिए हुए,
कागज़ पर नक्श बनते हैं
और बन-बन के बिगड़ते हैं,
लाख सम्भालूँ इन्हें मगर
फिर भी ज़ेहन से फिसलते हैं,
एक जो तेरा इशारा मिले
तो फिर कोई ग़ज़ल लिखूँ मैं,
एक जो तेरा सहारा मिले
तो फिर कोई नज़्म बुनूँ मैं,
© इमरान अंसारी
फिर से जगेंगे सोये हुए...मिल ही जायेंगे खोये हुए..
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंअब लौट आये हैं आप तो कलम खुद-ब-खुद रफ़्तार ले लेगी. भावों का सरल बहाव अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@बधाई/उफ़ ! ये समाचार चैनल
नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं
बहुत सुन्दर मन के एहसास की अभिव्यक्ति .... !!
जवाब देंहटाएंइमरान जी अब तो साथी भी है .. सहारा भी है ... एहसास भी है आपके साथ (शादी की मुबारक बाद) ....
जवाब देंहटाएंअब तो कलम से जज्बात निकलेंगे ...
Ohho to ye Naye safar ka aagaz hai :)
जवाब देंहटाएंImraan ji account hair,par main us par bilkul bhi active nhi hui ek arsey se!!
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंअब नज्म बुनने की जरुरत नहीं है जी , वो तो खुद-ब-खुद छलकेगा .. बस आप समेटते रहें और हमारी प्याली में उड़ेलते रहें..
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत...
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