आज फिर आई थी बारिश
हर बार की तरह..........
मेरी खिड़की के दरवाज़ों पर,
बहुत देर तक खटखटाती रही
अन्दर तक आ जाने के लिए,
और मैं, किसी ख्याल में ग़ुम
अपने ज़ेहन की कोठरी में
किसी याद से बंधा पड़ा था,
जब तक मैं खिड़की पर आया
तो काफी देर इंतज़ार करके
वो मायूस होकर लौट गई थी ,
जाते-जाते खिड़की के काँच पर
मेरे लिए अँगुली से लिखा
एक संदेसा छोड़ गई थी,
इन सीलन भरी कोठरियों में
तुम्हारा दम घुट जाता होगा,
मेरी बौछारें तुम्हें जिंदा रखेंगी,
कब तक मुझसे बचते रहोगे
फिर आऊँगी अगले बरस,
तुम्हें अन्दर तक भिगोने को,
कहती थी पगली कि तुम्हें
उस 'जहाँ' कि सैर कराऊँगी
जहाँ सिर्फ बारिश ही नहीं बल्कि
अल्लाह कि नेमतें बरसती हैं,
आज फिर आई थी बारिश
हर बार की तरह..........
बहुत सुन्दर कविता इमरान जी .. आपकी इस रचना की प्रविष्टि कल रविवार ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी .. कृपया पधारें ..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया शालिनी जी हमारे ब्लॉग की पोस्ट यहाँ शामिल करने का।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कैलाश जी।
हटाएंवाह !!! बहुत लाजबाब प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: गुजारिश,
वाह इमरान भाई! सुभान-अल्लाह! बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ। पढ़के मन को सुकून सा मिला।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मधुरेश जी।
हटाएंहाँ! हम खुद में ही ऐसे कैद रहते हैं कि बरसते नेमत से भी खुद को बचाते रहते हैं.. बहुत अच्छी लगी रचना और भाव..
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया अमृता जी।
हटाएंआहा ...एक बार बस उस बारिश का अनुभव हो जाए...यानि जन्म-जन्मान्तर की तृप्ति. बहुत बढ़िया इमरान भाई.
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया निहार भाई ।
हटाएंबहुत खूब....
जवाब देंहटाएंआज यहाँ भी बारिश आई है...
शुक्रिया दी.....बारिश के मज़े लो :-)।
हटाएं
जवाब देंहटाएंबारिश का मज़ा ही अलग है,
बहुत सुंदर, आभार
यहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_5.html
सही कहा शुक्रिया आपका ।
हटाएंये बारिश लाई थी उसका ही पैगाम ... पर दिल की मायूसी ने उसे देखा नहीं ...
जवाब देंहटाएंगहरे एहसास ने शब्द ढूंढ लिए ... लाजवाब ...
बहुत शुक्रिया दिगंबर जी ।
हटाएंवैसे तो जब से उत्तराखंड की बारिश टीवी पर देखी सुनी है तब से बारिश से दर लगने लगा है बावजूद इसके कि मुझे बारिश बेहद पसंद है मगर सही है बारिश कि बुँदे जब सुखी मिट्टी मेन गिरकर मिट्टी कि सौंधी सुगंध उड़ती है तो मन मयूर झूम ही जाता है इसलिए कभी कभी खुद को भूलकर इस बारिश का स्वागत कर ही लेना चाहिए क्या पता कल हो न हो। सुंदर रचना बधाई... :)
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया पल्लवी जी।
हटाएंजहाँ सिर्फ बारिश ही नहीं बल्कि
जवाब देंहटाएंअल्लाह कि नेमतें बरसती हैं.
अद्भुत भाव...भावविभोर करती बहुत सुन्दर रचना...
बहुत शुक्रिया संध्या जी।
हटाएंwah wah bahut bahut khoob.....jahan ki kothri,kya baat hein.
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया सुनील भाई।
हटाएंकहती थी पगली कि तुम्हें
जवाब देंहटाएंउस 'जहाँ' कि सैर कराऊँगी
जहाँ सिर्फ बारिश ही नहीं बल्कि
अल्लाह कि नेमतें बरसती हैं,
क्या बात है !!!!! बहुत खूब !!!!!
बहुत ही सुंदर...प्रकृति ने मनुष्य को खुश होने के हर साधन जुटाए हैं...बस हम उन्हें समझ नहीं पाते!!
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया ऋता जी ।
हटाएंअपनी दीवारों से बाहर निकाल कर मन को मुक्त करने का आमंत्रण देती है वर्षा- सुन्दर संदेश !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया प्रतिभा जी ।
हटाएंhmmmm...rchnaaa bdii dilkash lgii..pr rhii thi.ki..naam jana pehchanaa lgaa...are naam to jana pehchaana hi he...haan tasweer bdal di....hmmm
जवाब देंहटाएंbahut hii achhii rchnaa...
kaafi waqt ke baad is aur aanaa huyaa...aapki utkrisht rchnaaprmke bahut acha lga
take care
अच्छा लगा तुम्हारा ब्लॉग पर आना........इंशाल्लाह आगे भी आमद- दरफत बनी रहेगी ।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ......!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया रंजना जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर शब्द
जवाब देंहटाएंपर हम उत्तराखंड वालो बारिश का नाम सुन डर लग रहा हैं।
हाँ, जो कुछ हुआ उसे देखकर ऐसा होना संभव है परन्तु नियति अटल है और हमे उसे स्वीकार करना ही पड़ता है ।
हटाएंउस पगली पर भरोसा रखना इमरान जी
जवाब देंहटाएंवो बारिशे और दुआएँ फिर बरसेंगी
बहुत प्यार भरी रचना !
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तेरी ज़रूरत है !!
बहुत शुक्रिया टीना ।
हटाएंबेहतरीन रचना
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