एक दरिया है ये जज़्बातों का जिसमे लफ़्ज़ों की किश्तियाँ तैरती हैं........... जज़्बात मेरे.....तुम्हारे और हम सबके......एक ज़रिया जिससे जज़्बातों का ये सैलाब एक दिल से दूसरे दिल की दहलीज़ तक पहुँच जाए......लफ़्ज़ों की किश्ती पर सवार ......आओ डूब जाएँ जज़्बात के इस दरिया में.......
इमरान जी बहुत ही खूबसूरत रचना है आपकी। लफ्जों के बंधन को बहुत ही खूबसूरती से पेश किया है। आप ऐसी ही सुन्दर रचनाओं को शब्दनगरी पर भी लिख सकते हैं। वहां पर भी हैं पथ्थर के लफ्ज़ मिटा ना पाओगे जैसी रचनाएं पढ़ व् लिख सकते हैं।
बंधन किसे प्रिय होता है...खींचो अहसास और प्रेम के धागे से, स्वयं खिंचे चले आयेंगे...
जवाब देंहटाएंमुक्त होना ही अंतिम सत्य है ......सुन्दर
जवाब देंहटाएंकतराते हुए भी तो आ ही जाते हैं तब तो हमसे बतियाते हैं..
जवाब देंहटाएंशब्द तो मुक्त हैं...हम ही उन्हें बाँधते हैं..कभी सफल...कभी असफल !
जवाब देंहटाएंशब्द को बांधना आसान नहीं... बहुत सुंदर....!
जवाब देंहटाएंसरल नहीं है शब्दों को बांधना .... सच कहा आपने
जवाब देंहटाएंbandhan mae hi mukti hae........
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - फिर से होली आई.
कभी-कभी ऐसा ही लगता है -लगता है शब्द ज़ुबान पर आया,अब आया . पर लाख कोशिश करो आता नहीं बस आभास देता रहता है ..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .. बंधन में कौन चाहता है रहना ... फिर शब्द तो मासूम होते हैं ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब राक्स्हना .. होली कि हार्दिक बधाई इमरान जी ...
शब्द तो जीवन हैं , मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंह्रदय कवि का हो तो शब्द को कौन बाँध सका है. भावना की लहर रुकने कहाँ देती है चाहे कतराना कितना भी हो. अति सुन्दर रचना इमरान भाई.
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंइमरान जी बहुत ही खूबसूरत रचना है आपकी। लफ्जों के बंधन को बहुत ही खूबसूरती से पेश किया है। आप ऐसी ही सुन्दर रचनाओं को शब्दनगरी पर भी लिख सकते हैं। वहां पर भी हैं पथ्थर के लफ्ज़ मिटा ना पाओगे जैसी रचनाएं पढ़ व् लिख सकते हैं।
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