मिसरा एक सूफी कव्वाली का 'चल यार मनाएं' सुना था कहीं । उसके गिर्द एक सूफियाना क़लाम बुना है, इसमें सिर्फ इस एक मिसरे के सिवा बाकि सब इस 'इमरान' ने ही कहा है | यहाँ 'यार' 'गुरु' को कहा गया है, इसे ख्याल में रखें और सब कुछ भूल कर कुछ देर को डूब जाएँ इस समंदर में |
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चल री सखी ! चल यार मनाएंगे
जिसके रंग में रंगे हम जोगी
साथ उसके ही रास रचाएंगे,
चल री सखी ! चल यार मनाएंगे
नज़रों ने किया घायल जिसकी
उसको ही हम दिलदार बनाएंगे,
चल री सखी ! चल यार मनाएंगे
आई है जिससे ज़िंदगी में बहार
वफ़ा का उसको हार पहनाएंगे,
चल री सखी ! चल यार मनाएंगे
छुपाने से कहीं खो न जाएँ ख़ज़ाने
पाई दौलत दोनों हाथों से लुटाएंगे,
चल री सखी ! चल यार मनाएंगे
जहाँ खोजी ख़ुशी वहाँ मिले गम
अब न यूँ बाकि उमर गवाएंगे,
चल री सखी ! चल यार मनाएंगे
ख़ाली झोली कुछ नहीं अपने पल्ले
रोज़ फ़क़ीर मगर त्योहार मनाएंगे,
चल री सखी ! चल यार मनाएंगे
खुद भी जिसमें होश बाकि न रहे
करके ऐसा रक़्स उसको रिझाएंगे,
चल री सखी ! चल यार मनाएंगे
आनंद देते सुंदर भाव हैं। इसे तरन्नुम में गा सकते तो कितना अच्छा होता..!
जवाब देंहटाएंआप गुनगुना सकते हैं जनाब किसने रोका है :-)
हटाएंएक मस्त धुन के साथ रचना कानों में बजती गई पढ़ते हुए
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया आपको रचना पसंद आई हमने कोशिश की है इसे धून में पिरोया जा सके :-)
हटाएंछुपाने से कहीं खो न जाये खजाने
जवाब देंहटाएंपाई दौलत दोनों हांथों से लुटाएंगे
जितनी लुटाओगे वो दुगुनी पाओगे
डूबते उबरते सोच में गुम हूँ मैं
बहुत शुक्रिया दी ..... सूफियों की मस्ती ऐसे ही गम कर देती है :-)
हटाएंहाँ सच में धुन में बजती रचना ...सूफियाना अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया मोनिका जी |
हटाएंवाह ... बहुत ही उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सदा जी |
हटाएंआनंद से भरा .....भावपूर्ण सुन्दर....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कौशल जी |
हटाएंकाफी उम्दा प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-02-2014) को "अब छोड़ो भी.....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1511" पर भी रहेगी...!!!
- मिश्रा राहुल
शुक्रिया राहुल जी हमारे ब्लॉग की पोस्ट को यहाँ शामिल करने के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर गीत ,बिलकुल लयबद्ध !
जवाब देंहटाएंNew post Arrival of Spring !
सियासत “आप” की !
शुक्रिया कालीपद जी |
हटाएंबहुत खूब ... जीवन के दर्द को भूल के मस्त हो के झूमने वाले लम्हों के लिए लिखे बोल हैं ये ... बहुत ही लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया दिगम्बर जी |
हटाएंबहुत ही प्यारी और सूफियाना मीठी रचना ......!!
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया रंजना जी |
हटाएंजीवन के दर्द को भूलने से ही नहीं आते ऐसे बोल..ये तो तब उमड़ते हैं जब भीतर कुछ मिल जाता है...जब भीतर घुंघरू बजने लगते हैं...मुबारक हो यह मस्ती का आलम...
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया अनीता जी सही कहा आपने कुछ ऐसा मिल जाता है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता :-)
हटाएंमन में आनंद का संचार कर रही है आपकी यह रचना इमरान भाई. ऐसे ही लिखते रहें. शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त रचना भी है और दिल से गया गायन भी ....बहुत बधाई आपको ...!!
जवाब देंहटाएंलाली देख कर मैं भी हो गयी लाल... हाँ! री सखी..
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