समंदर के किनारे
दूर तक फैली रेत पर
ताड़ के पेड़ से पीठ टिका
मैं देखता रहा सोचता रहा
विराट में छुपे कितने संकेत,
हज़ारो मील दूसरे किनारे पर
अपने अस्तित्व को समेटे
गहराई में कहीं विलीन होते
पिघलते हुए लाल सूरज को,
बच्चों का पेट भरने निकले
दिन भर की मशक्कत से लौटते
घोसलों तक पहुँचने की जल्दी में
परवाज़ें भरते हुए परिंदों को,
समंदर के बीचो-बीच से कहीं
जोश और तरंग से उठती
सब बहा ले जाने की उम्मीद में
साहिल पर दम तोड़ती लहरों को,
रेत में भी जड़ों को समेटे
गीली हवाओं में सिहरते
आनंद से झूमते और गाते
स्वयं में ही लीन इन पेड़ों को,
कहीं जन्म-जन्म के वादे करते
एक दूसरे में सिमटते हुए लोग
तो कहीं अकेले बैठे आँसू बहाते
सूनी आँखों से तकते हुए लोग,
समंदर के किनारे
दूर तक फैली रेत पर
ताड़ के पेड़ से पीठ टिका
मैं देखता रहा सोचता रहा
विराट में छुपे कितने संकेत,
© इमरान अंसारी
imraan ji.....ye samndar...jeevan ka saaransh hi hai!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया पारुल जी |
हटाएंकाफी उम्दा प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-01-2014) को "तलाश एक कोने की...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1497" पर भी रहेगी...!!!
- मिश्रा राहुल
बहुत बहुत शुक्रिया राहुल जी हमारे ब्लॉग कि पोस्ट को यहाँ शामिल करने का |
हटाएंऔर उन सूक्ष्म संकेतों को बेहद खूबसूरत शब्दों में पिरो कर हमें भी सोचने पर मजबूर कर दिया है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अमृता जी |
हटाएंअनावृत आवृत ...बहुत सुन्दर ......
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कौशल जी स्वागत है आपका |
हटाएंप्रभावी अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मोनिका जी |
हटाएंखूबशूरत,प्रभावी प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: आप इतना यहाँ पर न इतराइये.
्बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंभावों के समंदर में अपने साथ बहा ले जाती बहुत प्रभावी रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .....!!
जवाब देंहटाएंहृदय छूती पंक्तियाँ .........!!बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंजब पहली बार समन्दर के बीच में गया था तो जहाज के डेक पर मित्रों के साथ मस्ती के मूड गया था लेकिन कुछ ही मिनटों में शून्य में खो गया. प्रकृति के अनंत स्वरुप और उसकी विशालता में कितना कुछ है. बहुत सुन्दरता से बांधे हैं आपने भाव इस रचना में.
जवाब देंहटाएंप्राकृति के इन अनोखे रंगों को एकटक देखना और कल्पनाओं के सागर में गोते लगाती लाजवाब भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंसमुन्दर के किनारे जाने पर प्रकृति के जितने रूपों से आपका परिचय हुआ...अत्यंत भावपूर्ण शब्दों में उसे पिरोया है...विराट के संकेत कितने मोहक हैं न..
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंएक एक शब्द अपने आप को जीता हुआ
बहुत खूबसूरत रचना ।
माफ़ी मागना चाहुगी नियमित आना नही हो पता ..इतने सारे काम और इतना कम समय ...उपर से उत्तराखंड की दूरस्थ पहाड़िया ..समझ नही आता की ये रोकती हैं या दुस्साह स बढाती हैं ...Network problem ..