प्रिय ब्लॉगगर साथियों,
माफ़ी चाहूँगा की पिछले कुछ दिनों से व्यस्तता के चलते आप सबके ब्लॉग पर आना नहीं हुआ........समय मिलते ही आपके सभी के ब्लॉग पर उपस्थित होऊँगा...........आज एक हलकी फुलकी सी नज़्म लिखी है....... थोडा सा मुस्कुराते हुए भी बात पर गौर ज़रूर किजिएगा........मकसद है इसमें भी :-))
एक बात आज पहली बार अपने ब्लॉग पर बिना किसी तस्वीर के पोस्ट डाल रहा हूँ बतौर एक प्रयोग....... उम्मीद है आपको पसंद आये.......अपनी बेबाक राय निष्पक्ष दें.......इंतज़ार रहेगा ।
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उस रोज़ यूँ ही बाज़ार में घूमते-घूमते
बुक स्टाल पर खड़ी हो गई जाकर,
यूँ ही किताब के पन्ने पलटते हुए
एक नज़्म पर आँखें जमी रह गईं थी,
एक ही साँस में पूरी नज़्म पढ़ डाली थी तब,
जैसे अन्दर तक भिगो गई थी नज़्म
किताब का उन्वान देखा 'सागर का साहिल'
किसी शायर 'साहिल' की नज्में थीं उसमें,
घर आते ही पूरी किताब ख़त्म कर डाली,
देखते ही देखते 'साहिल' ने अलमारी पर
और दिल पर भी कब्ज़ा कर लिया,
उसकी नज्में ही बिछाने और ऒढने लगी
न जाने कब 'साहिल' जिंदगी का साहिल बन गया,
उसे देखने की, उससे बातें करने की
एक हूक सी दिल में उठने लगी
यहाँ वहाँ भागदौड़ करके आखिर
साहिल का पता ढूँढ ही निकाला
इतवार के रोज़ सुबह ही तैयार होकर
अपने 'साहिल' से मिलने के लिए पहुँची
पुराने शहर की एक तंग से गली में मकान था
रास्ते पर यहाँ वहाँ कूड़ा बिखरा पड़ा था
घर पहुँच कर पता चला 'वो' अकेले रहते हैं
और अक्सर घर पर नहीं पाए जाते है,
शायद नुक्कड़ की चाय की दुकान पर मिलें,
वहाँ पहुँची तो पता चला की उधर टेबल पर बैठे हैं
जो उधर देखा तो यकीन नहीं हुआ की यही है
मैला कुचैला सा सफ़ेद कुरता पायजामा
बिखरे बेतरतीब बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी
पास जाकर पूछा 'साहिल' साहब आप ही हैं ?
पान की एक लाल-लाल पीक थूक कर
और उसी रंग के दाँत दिखाकर
उन्होंने फ़रमाया ' जी, हाँ ........मैं ही हूँ'
कहिये आप की क्या खिदमत करूँ,
मुझसे और कुछ भी कहते-सुनते न बना
चुपचाप वहाँ से लम्बे डग भरती हुई भागी
रास्ते भर यही सोचती रही की इतना विरोधाभास
इतनी रूमानी ग़ज़लें लिखने वाला शायर
खुद इस तरह की जिंदगी जीता है
खुद अकेले रहने वाला शख्स
जिंदगी भर साथ की बाते करता हैं
कुदरत की खूबसूरती की तारीफें करने वाला
खुद इतनी गंदगी में कैसे जी लेता है
सोचते-सोचते "ग़ालिब" साहब का ख्याल आया
फिर न जाने क्यूँ खुद ही हँसी छूट गई
ख्यालों और हकीक़त में यही फासला है,
रचना और रचनाकार में भी भेद होता है,
कथनी और करनी का भी यही फर्क है शायद,
chaliye imraan ji ..aise na jane kitne anubhav ..soch ki abo-hawa badal detey hai...koi baat nahi...yahi to jindagi hai darasal :)
जवाब देंहटाएंबिअल्कुल सच कहा आपने .. कभी कभी बहुत बड़ा विरोधाभास होता है सच्चाई और ख्याल में ... बेहतरीन नज़्म!
जवाब देंहटाएंयह विरोधाभास हर ओर दिखता है..... समय रहते समझ सकें तो बेहतर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना इमरान भाई. लिखना आसान होता है करना करना मुश्किल.नेकी की बात करना आसान होता है लेकिन नेक कार्य...
जवाब देंहटाएंतस्वीर के बिना भी पोस्ट वैसे ही दमदार है जैसे आपके पोस्ट विगत में हुआ करते थे.
हकीकत से दोचार होते ही स्वप्न टूट जाते हैं..यह जिन्दगी भी एक तिलिस्म है यहाँ जो दिखता है वह अक्सर होता नहीं...
जवाब देंहटाएंफर्क तो होता है ... पर हो सकता है जैसे नज़्म का दिल देखा उस शायर का दिल भी देखा होता ... ज़रूरी तो नहीं जो बहर से दिखता है वो सच हो ...
जवाब देंहटाएंनज़म बाखूबी बाँध के रखती है ...
हमारे जीवन में अक्सर ऐसे अवसर आते है, जब हम किसी व्यक्ति के प्रति उसकी लिखी या कही, सुनी, बातों के आधार पर अपने मन में उसकी एक छवि बना लेते हैं। लेकिन जब कभी हक़ीक़त से सामना होता है तो खुद पर ही हंसी आ जाती है। क्यूंकि अक्सर "सबसे ज्यादा खुश दिखने वाला इंसान ही अंदर से सबसे ज्यादा दुखी होता है।" :)
जवाब देंहटाएंमुस्कुराहट के साथ-साथ एक मिश्रित भाव में हँसी भी फूट कर कुछ सोचने लगी है..बढ़िया कहा है.. बिना फोटो के शब्द ही दृश्य हो जाते हैं..
जवाब देंहटाएंUmda Vichar... Badhiya Vyakt Kiya Hai Aapne...
जवाब देंहटाएं'Kathni Aur Karni Me Fark Shyad Nhi Yakinan Hai,Bhaiya'
Aur Ye Humare Bolne Se Kuch Nahi Hoga...Logbaag Khud Ye Samjh Jaaye To Behtar...
hahahah...sateek.
जवाब देंहटाएंbut imran bhai apse milkar unki ye galat fahmi dur ho jati...
ki rachnakar aur rachna dono ati sunder hein..
अक्सर खुशफहमियों के बने रहने में ही उनका लुत्फ़ है
जवाब देंहटाएंवरना काँच का क्या है...छूटा और टूटा....
आप सभी लोगों का तहेदिल से शुक्रिया यहाँ तक आने का और अपनी कीमती टिप्पणी देने का ।
जवाब देंहटाएंखुश रहने के लिये खुश होना पड़ता है
जवाब देंहटाएंविचारणीय बात कही है
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करे
http://jyoti-khare.blogspot.in
हम्म
जवाब देंहटाएंपर क्या पता उस शायर का मन अपनी रचना सा हो
वैसे भी बिना जिए जो अनुभव कर ले वो शायर
आपका न आना वाकई में अखरता है
शुभ स्वागत मेरे ब्लॉग पर।।
बिल्कुल सही कहा आपने ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार
सोचने का सामान दे रही है आपकी रचना ....!!
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