रात फिर आयी थी याद तेरी
रोती रही, गिड़गिड़ाती रही
हिचकियों की आवाज़ें
मेरे कानों में गूँजती रही
ज़ेहन की देहरी से लगी तेरी याद
रात भर सिसकती रही,
अरसा गुज़र गया है
उस वक़्त को बीते हुए,
पर आज भी तेरी याद
मेरा पीछा नहीं छोड़ती,
जब भीड़ में होता हूँ,
तो ये तनहा कर देती है,
जब तनहा हूँ तो
गुज़रे लम्हों का एक
मज़मा सा लगा देती है,
और फिर मुझे उसी अतल
गहराई में धकेल देती है
जहाँ अतीत और वर्तमान
के बीच सब धुंधला सा जाता है,
और मैं गुमराह राही सा अनजान
ये सोच ही नहीं पाता कि
कौन सा रास्ता अतीत के
काले अंधेरों में जाकर गुम हो जाता है
और कौन सा वर्तमान के उजियारे में,
तंग आ गया हूँ अब मैं
इसकी पिघला देने वाली
मनुहारों से बचने के लिए,
अपने ज़ेहन कि कोठरी के
दरवाज़े मज़बूती से बंद कर दिए,
रात फिर आयी थी याद तेरी
रोती रही, गिड़गिड़ाती रही
हिचकियों की आवाज़ें
मेरे कानों में गूँजती रही
ज़ेहन की देहरी से लगी तेरी याद
रात भर सिसकती रही,
© इमरान अंसारी
खूबसूरत रचना......!!
जवाब देंहटाएंबीते दिनों की यादें जेहन में घर बना लेते हैं ....
शुक्रिया रंजना जी |
हटाएंमर्मस्पर्शी...यादों का सिलसिला नज़्म बन के उतरा...सुंदर अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ऋता जी |
हटाएंजो भीड़ में तनहा क्र दे और तनहाई में मजमा लगा दे वही तो इश्क का जादू है...कोई कोई ही इसकी कद्र कर पाता है
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने अनीता जी शुक्रिया |
हटाएंयह तो कुछ इस गजल की तरह बात हो गयी शायद सुनी हो आपने ..:-) मेरी पसंदीदा गज़लों में से एक है
जवाब देंहटाएंशाम ढले इस सुने घर में, मेला लगता है
हम भी पागल हो जाएंगे ऐसा लगता है
दीवारों से मिलकर रोना .....
हाँ , सुनी है खूबसूरत है शुक्रिया आपका |
हटाएंये मुई यादें ..न खुद चैन से जीती है और न ही जीने देती है..बस एक लम्बी आहहहह ....
जवाब देंहटाएंसही कहा अमृता जी शुक्रिया आपका |
हटाएंबहुत ख़ूबसूरत एवं भावपूर्ण प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कैलाश जी |
हटाएंयादें है ..जाती नहीं...अगर बंधन स्नेह का हो. बहुत बढ़िया रचना इमरान भाई. बिलकुल जज़्बात में डूबी हुई.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया निहार भाई |
हटाएंजब उनकी याद है तो तन्हाई कैसी ... यादें सहारा हैं जीवन का ... बंधन है सांसों का ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना ...
शुक्रिया दिगंबर जी |
हटाएंजाने अनजाने, वे भूलें , कुछ पछताए, कुछ रोये थे !
जवाब देंहटाएंहमने ही ,नज़रें फेरीं थीं , उसने तो, वफादारी की थी !
सुन्दर ……… शुक्रिया सतीश जी |
हटाएंबहुत खुबसूरत
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर आने अपनी कीमती टिप्पणी से हौसलाअफ़ज़ाई करने का तहेदिल से शुक्रिया |
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