आज भी जा बैठती हूँ
सागर के उसी साहिल पर
जहाँ बैठे घंटो हम दूर
अस्त होते सूरज को
निहारा करते थे,
इन लहरों पर कितनी ही
प्यार भरी अठखेलियाँ
किया करते थे हम दोनों,
इसी सागर पर किश्ती
पर बैठे हमने कितनी ही
मौजों का सामना किया
एक दूसरे का हाथ थामे,
एक दिन एक बड़ी सी
मौज तुम्हे सागर के
दूसरे किनारे तक ले गई
क्योंकि एक दिन तुम्हे
महत्वकांक्षा के जहाज पर
बैठकर इस सागर के
सीने को कुचलना था,
जानती हूँ उस किनारे से
इस किनारे तक तैर के आना
अब तुम्हारे लिए मुमकिन नहीं
और जहाज़ पर बैठना मेरे लिए,
फिर भी मैं इस इंतज़ार में
रोज़ इस साहिल पर आती हूँ
कि शायद कोई मौज तुम्हें
उस किनारे से बहाकर फिर
इस किनारे तक ले आये,
बहुत खूबसूरती से इंतजार को बयान किये हो भाई
जवाब देंहटाएंआधी बात तो चित्र ने ऐसे कह ही दिया और बाकी जो शब्दों ने कहा वो दिल को छू दिया..बहुत ही सुन्दर लिखा है..
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत दिल के जज्बातों का सफ़र .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंस्नेह सच्चा हो तो सागर हो या परलोक, आस का दीया जलता ही रहता है. वो मिलन मूर्त हो या अमूर्त. विरह का बहुत सुन्दर वर्णन.
जवाब देंहटाएंफिर भी मैं इस इंतज़ार में
जवाब देंहटाएंरोज़ इस साहिल पर आती हूँ
कि शायद कोई मौज तुम्हें
उस किनारे से बहाकर फिर
इस किनारे तक ले आये,
......... वाह बहुत खूब ... अनुपम भाव संयोजन
प्रतीक्षा का अपना आनन्द है...क्या हर किसी को यहाँ ऐसी ही किसी शै का इंतजार नहीं जो उसे पता है मिलने वाली नहीं...
जवाब देंहटाएंइंतज़ार की एक कहानी बुनती हुई लाजवाब नज़्म ...
जवाब देंहटाएंचाहत को रोकना मुश्किल होता है ... जानते हुए भी की लौटना संभव नहीं होता उस पार से ... वो साहिल पे इंतज़ार करती है ...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंबहोत खूब इमरान...!!!
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंfirst of all a lot of thanks to you to add me in your top 10 list. due to some busy schedule, i could not read your blog, this post is outstanding....................
जवाब देंहटाएंआप सभी कद्रदानों का तहेदिल से शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंवाह! इसके बाद की दो कविताएँ भी पढ़ीं। यह अधिक अच्छी लगी।
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