अरमानों को मोड़कर
हसरतो को जोड़कर,
एक कश्ती बनाई थी मैंने
और ये सोच कर पानी में बहा दी
कि एक रोज़ इसे साहिल मिलेगा,
मेरे दिल के किनारे से छूटी ये
कभी तो तेरे दिल के किनारे लगेगी,
वक़्त के तूफान को पर ये मंज़ूर न था
हालातों के एक ही भंवर ने
आँसूओं का वो सैलाब पैदा किया
जिसमें गर्क हो गई कश्ती मेरी,
मजबूत कश्ती समझा था मैं जिसे
वो तो फ़क़त कागज़ की नाव थी,
और कागज़ों की नावों के मुक़द्दर में
साहिल नहीं हुआ करते हैं,
उनके नसीब में तो मझधार में
डूब जाना ही लिखा होता है,
© इमरान अंसारी
सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंकभी कभी कागज़ की कश्तियां भी किनारा ढूंढ लेती हैं ... और बड़ी कश्तियां डूब जाती हैं भंवर के फेर में ... समय की बात है .. प्रयास जरूरी है ...
जवाब देंहटाएंशब्दों का बहुत सुंदर संयोजन और प्रस्तुति.... !!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंजीवन में अक्सर हम नादानी कर बैठते हैं फिर उम्र भर पछताते है ...वह शेर सुना है न
जवाब देंहटाएंसिर्फ एक कदम उठा था ग़लत रहे शौक़ में
मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूंढती रही
यूँ भी होता है ..... मन से लिखा है ....
जवाब देंहटाएंविरहानुभूति को बहुत सुन्दर रचना में ढाला है आपने.
जवाब देंहटाएंकागज़ों की नावों के मुक़द्दर में
जवाब देंहटाएंसाहिल नहीं हुआ करते हैं,
उनके नसीब में तो मझधार में
डूब जाना ही लिखा होता है,
................. कागज़ की नाव के मुकद्दर में साहिल हो के न हो,
पर एक उम्मीद अवश्य होती है
और उम्मीद की हथेलियाँ
बनाती हैं फिर से एक कश्ती
एक सच ये भी है जिंदगी का ......
behatarin
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